रविवार, 14 नवंबर 2010

 दास कबीर, करके प्रेम बचे तुम कैसे....?

दास कबीर
हमें हैरत है
करके प्रेम बचे तुम कैसे....?

आकर देखो इस धरती पर
प्रेम में रहना, प्रेम बरतना
प्रेम सोचना, प्रेम निभाना
सारा कुछ कितना मुश्किल है
मूँछों वाले, पगड़ी वाले
ठेकेदार तब नहीं थे क्या,
तुम जैसे बिगड़े लोगों से
उनकी इज्जत लुटी नहीं क्या,
मूँछें उनकी झुकीं नहीं क्या?


अपनी चदरी जस की तस
रक्खा तो कैसे
इस दुनिया में ढाई आखर
बाँचा कैसे
इसकी कीमत हमसे पूछो
मनोज से बबली से पूछो
शारून से गुडिय़ा से पूछो
पूजा से मुनिया से पूछो
हम सबको तरकीब सुझाओ
बचने की कुछ जुगत बताओ
बहुत बड़े शातिर बनते हो
हिम्मत है, इस युग में आओ!


वैसे हमने ठान लिया है
गर्दन उड़े जले तन चाहे
प्रेम तो तब भी करना होगा
कत्ल करें वे प्रेम करें हम
लेकर कफन उतरना होगा
अपना घर फूँकने की खातिर
लिए लुकाठा खड़े हुए हम
आओ हम तुम साथ चलेंगे
देखेंगे घर फूँक तमाशा....।

कोई टिप्पणी नहीं:

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...