नरेंद्र मोदी, मनमोहन सिंह न सही, अपनी पार्टी के पितामह अटलबिहारी वाजपेयी का ही अनुसरण करते तो संसद की भाषाई मर्यादा बचा ले जाते.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मध्य प्रदेश में शनिवार को दिया भाषण सुना, तो उसी हफ्ते मनमोहन सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस याद आई जिसमें उन्होंने कहा कि मैंने कभी कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया भी होगा तो मैं उसे दोहराना नहीं चाहूंगा. उन्होंने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी को अपने प्रधानमंत्री पद की गरिमा बनाए रखनी चाहिए और विपक्षी नेताओं के साथ सार्वजनिक मंच से गाली गलौज नहीं करनी चाहिए.
इदौर में 21 नवंबर को मनमोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी के पुराने वादों की याद दिलाते हुए अच्छे दिनों की समीक्षा की. उन्होंने भाजपा की सरकार की असफलता गिनाने के लिए सिर्फ आंकड़ों की बात की.
एक पत्रकार ने पूछा कि मोदी जी भाषणों को देखते हुए क्या आपको लगता है कि वे अपने पद की मर्यादा रख पा रहे हैं? इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा, 'सम्मानपूर्वक मेरा मानना है कि मोदी जी प्रधानमंत्री के पद का ठीक इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. प्रधानमंत्री को ये नहीं शोभा देता कि वे दूसरे नेताओं के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर गाली गलौज करें. वे गैरबीेजेपी राज्यों में जाते हैं तो नेताओं पर खूब बरसते हैं. यह उचित बात नहीं हैं. इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं कहूंगा.'
एक पत्रकार ने पूछा कि आपने प्रधानमंत्री रहते हुए अपने अंतिम संबोधन में कहा था कि यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे तो यह एक त्रासदी होगी, अब आप क्या कहेंगे, यह त्रासदी थी या नहीं? इस पर मनमोहन सिंह ने कहा, 'मुझे नहीं याद आ रहा है कि मैंने 2014 में इतने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया था. अगर मैंने इस्तेमाल किया तो मैं इसे दोहराना नहीं चाहूंगा.'
मनमोहन सिंह की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश की रैलियों में और कड़े शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने शनिवार को कहा, 'कांग्रेस के पास चर्चा मुद्दे नहीं हैं, इसलिए ये लोग मेरी मां को गाली देने की राजनीति पर उतर आए हैं. कुछ बुराइयां उनके खून में समा गई हैं.'
मोदी ने कहा कि कांग्रेस इस चुनाव में न चार पीढ़ियों का हिसाब देने को तैयार है, न मध्य प्रदेश में 55 सालों के शासन का हिसाब देने को तैयार है, न शिवराज सिह चौहान द्वारा किए गए कामों पर चर्चा करने को तैयार है. वे अपनी चार पीढ़ी और एक चायवाले के चार साल के शासन की तुलना को भी तैयार नहीं हैं.
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, 'जिसके पक्ष में सत्य न हो, न्याय न हो, कुसंस्कार हो, अहंकार हो, वह मुद्दे छोड़कर तेरी मां मेरी मां पर आ जाता है. आजादी के बाद इतने सालों तक जिस पार्टी ने शासन किया, उसके नेता मोदी के साथ भिड़ने की बजाय, मां को गाली दे रहे हैं. मोदी से मुकाबला करने की ताकत नहीं, और आप मां को घसीटकर ले आते हैं.'
मोदी ने कहा, 'कांग्रेसी नामदार हैं, हम कामदार. नामदार चाहे जिसे गालियां दे सकते हैं, भले ही गलती उनकी हो. प्रदेश का बच्चा-बच्चा शिवराज को मामा बोलता है. कांग्रेसी उन्हें शकुनि मामा, कंस मामा कहने लगे. अच्छा होता अगर कांग्रेस के राजा-महाराजा और नामदार शिवराज को गाली देने से पहले क्वात्रोची मामा को याद कर लेते. भोपाल के गुनहगार एंडरसन मामा को याद कर लेते, जिन्हें नामदार के पिताजी की सरकार ने चोरी से भगा दिया था.'
मोदी ने दिल्ली की राजनीति में प्रवेश से पहले जिन मुद्दों और जनआकांक्षाओं को अभिव्यक्ति देते हुए विकास के नारे से अपनी शुरुआत की थी, वे अब उन्हीं की जुबान पर नहीं आ रहे हैं. क्वात्रोची और एंडरसन को कांग्रेसियों का मामा बताना कम से कम एक प्रधानमंत्री के मुंह से शोभा नहीं देता. उनके हर भाषण में अब गुस्सा और अपशब्द होते हैं.
मोदी पहले भी ऐसा बोलते रहे हैं. ‘मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा, मैं तो फक़ीर हूं’, ‘वे मुझे मार डालेंगे, मुझे थप्पड़ मार देना’, ‘मुझे लात मार कर सत्ता से हटा देना’, ‘मुझे फांसी पर चढ़ा देना’, ‘मुझे उलटा लटका देना’, ‘मुझे चौराहे पर जूते मारना’…. ये सब मोदी के ही जुमले हैं जो उनके अलग भाषणों में सुने जा चुके हैं.
उनको मनमोहन सिंह पर 'रेनकोट पहनकर नहाने' वाला कटाक्ष भी प्रधानमंत्री के पद के अनुरूप बेहद छिछला था. वे 'पचास करोड़ की गर्लफ़्रेंड' कहते हुए जरा भी नहीं हिचकिचाते. बल्कि इसे चुनावी इजहार मानकर संतोष कर लेते हैं कि उन्होंने महान भाषण दिया है.
चुनावी राजनीति में भाषा का पतन नरेंद्र मोदी से ही नहीं शुरू हुआ है. राहुल गांधी या दूसरे किसी भी पार्टी के नेता अपनी भाषाई मर्यादा के लिए नहीं जाने जाते. लेकिन प्रधानमंत्री पद से मोदी जैसी भाषा अभूतपूर्व है. वे यह परंपरा डाल रहे हैं कि किसी पद की कोई गरिमा नहीं है और चुनावी मुकाबले में अपशब्दों की अहम भूमिका होगी.
मनमोहन सिंह में एक बात गौर करने लायक है कि जब वे प्रधानमंत्री नहीं हैं, तब भी वे जब भी बोलते हैं तो एक विकास के विजन के साथ बोलते हैं. वे कभी भी व्यक्ति पर केंद्रित नहीं होते, किसी व्यक्ति के बारे में सवाल करने पर संक्षिप्त और सभ्य उत्तर देते हैं या फिर सवाल को टाल जाते हैं. जबकि मोदी पत्रकारों से कभी मुखातिब ही नहीं होते और अपने एकतरफा भाषणों में वह बोलते हैं जो उन्हें पसंद होता है.
मोदी अपने पांच राज्यों के चुनाव में सिर्फ व्यक्तियों पर बात कर रहे हैं. वे नेहरू, इंदिरा, सोनिया और राहुल पर न सिर्फ निजी हमले कर रहे हैं, बल्कि भाषाई मर्यादा को बार बार तोड़ रहे हैं.
इसके उलट जिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को लोग 'पप्पू' कहते हैं, मध्य प्रदेश में ही उन्होंने कहा, 'मोदी जी अपने भाषण में गलत शब्द का प्रयोग करेंगे, झूठ बोलेंगे नफ़रत भरी बात करेंगे. क्योंकि मोदी जी जानते हैं कि जो भरोसा जनता ने मोदी जी पर किया था वो टूट गया है.'
क्या मोदी जी को अपने गिरते ग्राफ से बौखलाहट होने लगी है? यह एक कारण हो सकता है लेकिन उनका पिछला भाषाई रिकॉर्ड भी बहुत खूबसूरत नहीं है. बस प्रधानमंत्री बनने के बाद उनसे उम्मीदें बढ़ी थीं. काश वे अपने पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह से ही सीखते कि पद की गरिमा के अनुरूप ही शब्दों का चुनाव करना चाहिए.
मोदी जब प्रधानमंत्री बनकर संसद पहुंचे थे तो पहले दिन संसद की चौखट पर सिर रखकर उसे प्रणाम किया था. यह भी पहली बार था. लेकिन संसद की उस पूजनीय पवित्रता को उन्होंने ही भंग कर दिया जो पिछले 70 सालों में कभी नहीं देखी गई थी. स्तरहीन भाषा का प्रयोग संसदीय परंपरा की अजीबोग़रीब गिरावट है जिसकी भरपाई मुश्किल है. देश के युवा को प्रधानमंत्री से सीखने के लिए क्या है, सिवाय इस स्तरहीन भाषा के? नरेंद्र मोदी, मनमोहन सिंह न सही, अपनी पार्टी के पितामह अटलबिहारी वाजपेयी का ही अनुसरण करते तो संसद की भाषाई मर्यादा बचा ले जाते.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मध्य प्रदेश में शनिवार को दिया भाषण सुना, तो उसी हफ्ते मनमोहन सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस याद आई जिसमें उन्होंने कहा कि मैंने कभी कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया भी होगा तो मैं उसे दोहराना नहीं चाहूंगा. उन्होंने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी को अपने प्रधानमंत्री पद की गरिमा बनाए रखनी चाहिए और विपक्षी नेताओं के साथ सार्वजनिक मंच से गाली गलौज नहीं करनी चाहिए.
इदौर में 21 नवंबर को मनमोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी के पुराने वादों की याद दिलाते हुए अच्छे दिनों की समीक्षा की. उन्होंने भाजपा की सरकार की असफलता गिनाने के लिए सिर्फ आंकड़ों की बात की.
एक पत्रकार ने पूछा कि मोदी जी भाषणों को देखते हुए क्या आपको लगता है कि वे अपने पद की मर्यादा रख पा रहे हैं? इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा, 'सम्मानपूर्वक मेरा मानना है कि मोदी जी प्रधानमंत्री के पद का ठीक इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. प्रधानमंत्री को ये नहीं शोभा देता कि वे दूसरे नेताओं के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर गाली गलौज करें. वे गैरबीेजेपी राज्यों में जाते हैं तो नेताओं पर खूब बरसते हैं. यह उचित बात नहीं हैं. इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं कहूंगा.'
एक पत्रकार ने पूछा कि आपने प्रधानमंत्री रहते हुए अपने अंतिम संबोधन में कहा था कि यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे तो यह एक त्रासदी होगी, अब आप क्या कहेंगे, यह त्रासदी थी या नहीं? इस पर मनमोहन सिंह ने कहा, 'मुझे नहीं याद आ रहा है कि मैंने 2014 में इतने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया था. अगर मैंने इस्तेमाल किया तो मैं इसे दोहराना नहीं चाहूंगा.'
मनमोहन सिंह की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश की रैलियों में और कड़े शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने शनिवार को कहा, 'कांग्रेस के पास चर्चा मुद्दे नहीं हैं, इसलिए ये लोग मेरी मां को गाली देने की राजनीति पर उतर आए हैं. कुछ बुराइयां उनके खून में समा गई हैं.'
मोदी ने कहा कि कांग्रेस इस चुनाव में न चार पीढ़ियों का हिसाब देने को तैयार है, न मध्य प्रदेश में 55 सालों के शासन का हिसाब देने को तैयार है, न शिवराज सिह चौहान द्वारा किए गए कामों पर चर्चा करने को तैयार है. वे अपनी चार पीढ़ी और एक चायवाले के चार साल के शासन की तुलना को भी तैयार नहीं हैं.
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, 'जिसके पक्ष में सत्य न हो, न्याय न हो, कुसंस्कार हो, अहंकार हो, वह मुद्दे छोड़कर तेरी मां मेरी मां पर आ जाता है. आजादी के बाद इतने सालों तक जिस पार्टी ने शासन किया, उसके नेता मोदी के साथ भिड़ने की बजाय, मां को गाली दे रहे हैं. मोदी से मुकाबला करने की ताकत नहीं, और आप मां को घसीटकर ले आते हैं.'
मोदी ने कहा, 'कांग्रेसी नामदार हैं, हम कामदार. नामदार चाहे जिसे गालियां दे सकते हैं, भले ही गलती उनकी हो. प्रदेश का बच्चा-बच्चा शिवराज को मामा बोलता है. कांग्रेसी उन्हें शकुनि मामा, कंस मामा कहने लगे. अच्छा होता अगर कांग्रेस के राजा-महाराजा और नामदार शिवराज को गाली देने से पहले क्वात्रोची मामा को याद कर लेते. भोपाल के गुनहगार एंडरसन मामा को याद कर लेते, जिन्हें नामदार के पिताजी की सरकार ने चोरी से भगा दिया था.'
मोदी ने दिल्ली की राजनीति में प्रवेश से पहले जिन मुद्दों और जनआकांक्षाओं को अभिव्यक्ति देते हुए विकास के नारे से अपनी शुरुआत की थी, वे अब उन्हीं की जुबान पर नहीं आ रहे हैं. क्वात्रोची और एंडरसन को कांग्रेसियों का मामा बताना कम से कम एक प्रधानमंत्री के मुंह से शोभा नहीं देता. उनके हर भाषण में अब गुस्सा और अपशब्द होते हैं.
मोदी पहले भी ऐसा बोलते रहे हैं. ‘मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा, मैं तो फक़ीर हूं’, ‘वे मुझे मार डालेंगे, मुझे थप्पड़ मार देना’, ‘मुझे लात मार कर सत्ता से हटा देना’, ‘मुझे फांसी पर चढ़ा देना’, ‘मुझे उलटा लटका देना’, ‘मुझे चौराहे पर जूते मारना’…. ये सब मोदी के ही जुमले हैं जो उनके अलग भाषणों में सुने जा चुके हैं.
उनको मनमोहन सिंह पर 'रेनकोट पहनकर नहाने' वाला कटाक्ष भी प्रधानमंत्री के पद के अनुरूप बेहद छिछला था. वे 'पचास करोड़ की गर्लफ़्रेंड' कहते हुए जरा भी नहीं हिचकिचाते. बल्कि इसे चुनावी इजहार मानकर संतोष कर लेते हैं कि उन्होंने महान भाषण दिया है.
चुनावी राजनीति में भाषा का पतन नरेंद्र मोदी से ही नहीं शुरू हुआ है. राहुल गांधी या दूसरे किसी भी पार्टी के नेता अपनी भाषाई मर्यादा के लिए नहीं जाने जाते. लेकिन प्रधानमंत्री पद से मोदी जैसी भाषा अभूतपूर्व है. वे यह परंपरा डाल रहे हैं कि किसी पद की कोई गरिमा नहीं है और चुनावी मुकाबले में अपशब्दों की अहम भूमिका होगी.
मनमोहन सिंह में एक बात गौर करने लायक है कि जब वे प्रधानमंत्री नहीं हैं, तब भी वे जब भी बोलते हैं तो एक विकास के विजन के साथ बोलते हैं. वे कभी भी व्यक्ति पर केंद्रित नहीं होते, किसी व्यक्ति के बारे में सवाल करने पर संक्षिप्त और सभ्य उत्तर देते हैं या फिर सवाल को टाल जाते हैं. जबकि मोदी पत्रकारों से कभी मुखातिब ही नहीं होते और अपने एकतरफा भाषणों में वह बोलते हैं जो उन्हें पसंद होता है.
मोदी अपने पांच राज्यों के चुनाव में सिर्फ व्यक्तियों पर बात कर रहे हैं. वे नेहरू, इंदिरा, सोनिया और राहुल पर न सिर्फ निजी हमले कर रहे हैं, बल्कि भाषाई मर्यादा को बार बार तोड़ रहे हैं.
इसके उलट जिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को लोग 'पप्पू' कहते हैं, मध्य प्रदेश में ही उन्होंने कहा, 'मोदी जी अपने भाषण में गलत शब्द का प्रयोग करेंगे, झूठ बोलेंगे नफ़रत भरी बात करेंगे. क्योंकि मोदी जी जानते हैं कि जो भरोसा जनता ने मोदी जी पर किया था वो टूट गया है.'
क्या मोदी जी को अपने गिरते ग्राफ से बौखलाहट होने लगी है? यह एक कारण हो सकता है लेकिन उनका पिछला भाषाई रिकॉर्ड भी बहुत खूबसूरत नहीं है. बस प्रधानमंत्री बनने के बाद उनसे उम्मीदें बढ़ी थीं. काश वे अपने पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह से ही सीखते कि पद की गरिमा के अनुरूप ही शब्दों का चुनाव करना चाहिए.
मोदी जब प्रधानमंत्री बनकर संसद पहुंचे थे तो पहले दिन संसद की चौखट पर सिर रखकर उसे प्रणाम किया था. यह भी पहली बार था. लेकिन संसद की उस पूजनीय पवित्रता को उन्होंने ही भंग कर दिया जो पिछले 70 सालों में कभी नहीं देखी गई थी. स्तरहीन भाषा का प्रयोग संसदीय परंपरा की अजीबोग़रीब गिरावट है जिसकी भरपाई मुश्किल है. देश के युवा को प्रधानमंत्री से सीखने के लिए क्या है, सिवाय इस स्तरहीन भाषा के? नरेंद्र मोदी, मनमोहन सिंह न सही, अपनी पार्टी के पितामह अटलबिहारी वाजपेयी का ही अनुसरण करते तो संसद की भाषाई मर्यादा बचा ले जाते.