रोज़ बदलता है दर्द का चेहरा
रोज़ बदल जाते हैं रस्ते
कायनात भी
रोज़ बदलती है रंग
चाँद बदल लेता है अपना जिस्म
और मैं
रोज़ मैं जनम लेता हूँ
अपनी सार्थकता के लिए
नए नए रूपों में
नहीं बदलता तो बस
मुक्ति का सपना
एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...