मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

जाते हुए सूरज को देखते हुए


जाते हुए सूरज को देखना 
देखना है 
खुद को गुज़रते हुए 
अपने ही सर पे पांव रख कर 
इसी तरह तो गुज़रा हूँ कई कई बार 
मौत पर सवार होकर
लाचार 
हर बार 
रोता जार-जार 
हर बार जीती है मौत 
और हारा हूँ मैं 
जाते हुए सूरज की तरह 

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

साहिल पे


साहिल पे खड़े होकर 
उफक देखते हुए 
वह अक्सर लिखा करती है 
पानी की सतह पे 
कोई  कविता 
कभी कभी मेरी हथेली पर भी 

अक्सर ही समंदर 
मुझे लगता है अपनी हथेली सा 
जिसमे हरदम देखती रहती है वह 
अपना चेहरा 
साहिल पे खड़े होकर 
उफक देखते हुए 

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...