शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011


तुम्हें चाहना कुछ ऐसा है...



तुम्हें चाहना कुछ ऐसा है...
जैसे रोज़ सुबह उठ करके
जाकर दूर कहीं वादी में 
कुदरत के आँचल से महकी 
कुछ एक सांसें खुद में भरना 
झरनों से संगीत मांगना 
किसी पेड़ की छांव बैठकर 
खुद ही में खुद को तलाशना 
किसी ईष्ट में ध्यान लगाना 
अपने ही भीतर जा करके 
खुद अपने से आँख मिलाना 
जैसे सब उलझनें सुलझना 
जैसे सब गिरहों का खुलना 
जैसे सारे बंध टूटना
जैसे राहों का मिल जाना 
जैसे दीवारों का ढहना 
जैसे रोज़ सुबह का आना 
आसमान में चाँद का खिलना 
आँखों में ख्वाबों का उगना 
सांसों में फूलों का खिलना 

सुन्दर से यह सुन्दरतम है 
तुम्हें चाहना कुछ ऐसा है....



सोमवार, 14 फ़रवरी 2011


बीबीसी रेडियो भारत को कहेगा अलविदा
समाप्त होगा आठ दशकों का सफर

नयी दिल्लीः हिंदी जगत के लिए बेहद दुःखद खबर है कि ब्रिटिश ब्राडकास्ट कारपोरेशन यानि बीबीसी की हिंदी रेडियो सेवा एक अप्रैल से बंद होने जा रही है. इसने कई भाषाओं में जारी अपनी प्रसारण सेवा में कटौती करने फैसला लिया है. बंद की जाने वाली सेवाओं में शार्टवेब पर उपलब्ध हिंदी सहित दुनिया भर की करीब एक दर्जन से ऊपर सेवाएं बंद हो जाएंगी. भारत में बीबीसी हिंदी सेवा करीब आठ दशक (१९३२) से चल रही थी.
भारत के दूर-दराज के इलाकों में जहां सूचना के नये माध्यम टीवी, इंटरनेट आदि उपलब्ध नहीं हैं, वहां आज भी रेडियो ही एकमात्र साधन हैं. बीबीसी इन श्रोताओं के लिए अब तक सबसे विश्वसनीय माध्यम है. मसला यह नहीं है कि बीबीसी सेवा बंद हो रही है, मसला यह है कि क्या भारत में उसके विकल्प के तौर पर कोई ऐसा सेवा है जो उसकी भरपाई कर पाएगी? हो सकता है कि यह खबर हिंदी क्षेत्र की जनता द्वारा आसानी से पचा ली जाये, लेकिन इस सेवा का लाभ उठाने वाले लोग जरूर निराश होंगे, जब उन्हें भारत में इस तरह के दूसरे माध्यम नहीं उपलब्ध होंगे.
खबरें हैं कि बीबीसी सेवा में यह बदलाव सरकारी फंडिंग में कटौती के कारण किया जा रहा है. ब्रिटिश सरकार का विदेश मंत्रालय, जो इस सेवा के लिए फंडिंग करता है, ने इसके मद में 16 फीसदी की कटौती कर दी है, जिसके चलते बीबीसी सेवा के भाषाई प्रसारणों में कटौती की जा रही है. दूसरे, कि एफएम चैनलों और 3जी मोबाइल के युग में बीबीसी शार्टवेब सेवा का टिके रहना मुश्किल था. नये माध्यमों के साथ उसकी प्रतिस्पर्धा में वह बेहद अक्षम साबित हो रहा था. मीडिया समीक्षक सुधीश पचैरी का भी यही कहना है कि ’उसके अपने पुराने फार्मेट में बने रहने में तमाम तरह की दिक्कतें थीं. बीबीसी भले ही इम्पीरियल दौर की उपज हो, लेकिन वह मानक सेवा रही है. उसके पत्रकारों ने काफी लोकप्रियता और विश्वसनीयता अर्जित की. बीबीसी ने भाषाई तौर पर भी बहुत अच्छा योगदान दिया. शुद्ध स्वरूप में सही उच्चारण की हिंदी बीबीसी ने स्थापित की. उसका जाना हमें निश्चित तौर पर खलेगा.मैं इस हादसे को स्वीकार नहीं कर पा रहा.’ हालांकि, उनका यह भी कहना है कि शून्य कहीं नहीं रहता. किसी न किसी रूप में उसकी भरपाई हो जाएगी. यह चाहे बीबीसी खुद करे या हमारे यहां के चैनल करें.
बीबीसी का बंद होना वाकई एक हादसा है. बीबीसी में कार्यरत एक उद्घोषक का कहना है कि इससे हिंदी पट्टी के लोगों की बड़ी क्षति होगी. संघ लोकसेवा आयोग और अन्य क्षेत्रों की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए यह बहुत ही उपयोगी है, क्योंकि भारत में हिंदी में इस तरह की खबरों के लिए कोई और माध्यम उपलब्ध नहीं हैं. दूसरे, भारत में रेडियो प्रसारण पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में है. बीबीसी के बंद होने से वह अकेली सेवा बचेगी, जिससे सूचना प्रसारण एकपक्षीय होगा. आपातकाल का दौर हो या बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना, दोनों में बीबीसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. स्वायत्त  और वैश्विक संगठन होने के कारण वह कम से कम भारत की घरेलू खबरों में निष्पक्ष और तटस्थ रहता ही था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बीबीसी पर अपेक्षाकृत ज्यादा विश्वसनीय है.
बीबीसी संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी का कहना है कि बीबीसी सेवा के बंद होने से सबसे ज्यादा नुकसान युवा पीढ़ी का होगा. जो लोग सूचना के लिए सिर्फ रेडियो पर निर्भर हैं, उन्हें विश्वस्तरीय खबरें नहीं मिल सकेंगी. भारत में समस्या है कि यहां रेडियो प्रसारण पर सरकार का एकाधिपत्य है. आल इंडिया रेडियो के अलावा और कोई चैनल खबरें नहीं दे सकता.
यह सही है कि भारत में 60 सालों में कोई स्वतंत्र और विश्वसनीय सूचना माध्यम विकसित नहीं किया गया. यही कारण है कि यहां कि जनता आल इंडिया रेडियो की जगह बीबीसी की खबरों को तरजीह देती रही है. हालांकि, अब जब दर्जनों की संख्या में खबरिया चैनल हैं, लेकिन उनके बीच खबरों की विश्वसनीयता या गुणवत्ता को लेकर कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. दूसरे वे शहरों और कुछ छोटे शहरों तक ही सीमित हैं.
बीबीसी की बंगला और उर्दू सेवा अभी भी चलती रहेगी. इस पर बीबीसी के एक वरिष्ठ संवाददाता का सुझाव है कि बीबीसी को हिंदी उर्दू की जगह उन्हें मिलाकर हिंदुस्तानी सेवा में तब्दील किया जा सकता है, जैसा कि उसकी शुरूआत के समय था. वे कहते हैं कि हालांकि नीतियां तो यहां नहीं तय होतीं, लेकिन संभावना है कि बीबीसी इसका कोई विकल्प पेश करे. इसकी हिंदी पोर्टल सेवा अभी भी बनी रहेगी. उनका कहना है कि हो सकता है कि बीबीसी हिंदी में न्यूज चैनल शुरू करे.
बहरहाल, आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठेगा, कोई नहीं जानता. हो सकता है कि सुधीश पचैरी का विश्वास सही ठहरे कि शून्य कहीं नहीं रहता. लेकिन बीबीसी हिंदी प्रसारण सेवा का आठ दशक का शानदार सफर अब समाप्त हो जाएगा.

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...