रविवार, 14 नवंबर 2010

मुझे मोहब्बत है उजालों से

वह कभी-कभी
रातों को उठकर कहती थी
तुम्हारी आवाज की
सुनहरी सलवटें बहुत हसीन लगती हैं
जब मिलकर मेरी आवाज से
शून्य हो जाती हैं
गूंजती हैं खलाओं में
भरती हैं सूरज में रोशनी
उड़ाती हैं कायनात में संगीत
कानों से लगकर
गुदगुदी मचाती हैं

मुझे पसंद हैं ऐसी आवाजें
जो बेबाक हैं
प्यार में भी
अदावत में भी
मुझे पसंद हैं ऐसी आवाजें
जो बहें तो जमाना बह चले
जो हंसें तो जमाना हंस पड़े
जो दबें तो जमाना चीख उठे

एक रात उसने कहा
बहुत उदासी है
उठो न!
कुछ ऐसा रचो
कि उज्जर हो जाएँ
ये निराश उदास काली रातें
आओ पैदा करें एक आवाज
जो जज्ब कर ले
जमाने की स्याहियां
मुझे मोहब्बत है
उजालों से।

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