गुरुवार, 17 सितंबर 2015

इस सिस्टम में बोलना मना है

महाराष्ट्र और पश्‍चिम बंगाल के बाद अब उत्तर प्रदेश सरकार सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर आने वाली नागरिक टिप्पणियों से घबरा गई है. यह फिजूल की घबराहट ऐसी बौखलाहट में बदल गई कि एक दलित चिंतक कंवल भारती को सरकार की आलोचना में पोस्ट डालने पर गिरफ्तार कर लिया गया और अब उन पर रासुका लगाने तक की धमकी दी जा रही है. लेखक ने ऐसा क्या कह दिया कि गिरफ्तारी की नौबत आ गई, यह जानने के बाद कोई भी सिर्फ हैरान हो सकता है, क्योंकि लेखक को जिस-जिस टिप्पणी के लिए गिरफ्तार किया गया, उसमें सरकार की मात्र आलोचना भर थी. इस तरह की कार्रवाई का यह पहला मामला नहीं है. इसके पहले पश्‍चिम बंगाल में ममता बनर्जी का कार्टून बनाकर मित्र को ईमेल भेजने वाले जाधवपुर विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र और उनके मित्र को जेल भेज दिया गया था. शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाल ठाकरे की मौत के बाद मुंबई ठप हो जाने को लेकर एक युवती ने फेसबुक पर टिप्पणी की, तो उसे और उस पोस्ट को लाइक करने वाली एक अन्य युवती को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इसी तरह युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को उनके कार्टूनों के आधार पर देशद्रोह के आरोप में जेल भेजा गया और उनकी वेबसाइट को बंद कर दिया गया.
इन सभी मामलों को देखकर तो यही लगता है कि इस लोकतांत्रिक मूल्यों वाले देश में सरकारें नागरिकों के मूलभूत अधिकार-बोलने की आजादी का गला घोंटने को लेकर प्रतियोगिता कर रही हैं. सहज जिज्ञासा हो सकती है कि इन टिप्पणियों में ऐसा क्या था कि सरकारें ऐसी कार्रवाई करने को मजबूर हुईं? इसका जवाब है कि उपर्युक्त सभी मामले कोर्ट में टिक नहीं सके, क्योंकि इन सभी टिप्पणियों में प्रशासन या सरकार की सामान्य आलोचना भर थी, जिसे लेकर ऐसी असहिष्णु कार्रवाइयां की गईं. आज जब दुनिया भर में सोशल साइटों और विभिन्न इंटरनेट माध्यमों पर नागरिक सक्रियताएं ब़ढ रही हैं, लोग जागरूक हो रहे हैं, वे खुलकर सार्वजनिक मंचों से सरकारों की आलोचना करने लगे हैं, क्या इससे भारत में सत्ता पर काबिज लोग भयभीत हैं? इस तरह के हर मामले में प्रशासन की जबरदस्त फजीहत हुई, लेकिन यह सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है. उस पर तुर्रा यह कि समय-समय पर सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की बातें सरकारी महकमों में उठती रहती हैं. हालांकि, यह तब है, जब आज ज्यादातर नेता, मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय के भी आधिकारिक बयान ट्विटर पर जारी किए जाते हैं. हम सभी को यह पता है कि हम जिस तकनीकी युग में प्रवेश कर चुके हैं, वहां इंटरनेट और सोशल मीडिया पर नागरिकों की सक्रियता को अब रोका नहीं जा सकता. बावजूद इसके, सरकारें ऐसी हिमाकत भरी हरकतें कर रही हैं.
दलित चिंतक और लेखक कंवल भारती ने फेसबुक पर लिखा था-आरक्षण और दुर्गा शक्ति नागपाल, इन दोनों ही मुद्दों पर अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार पूरी तरह फेल हो गई है. अखिलेश, शिवपाल यादव, आजम खान और मुलायम सिंह इन मुद्दों पर अपनी या अपनी सरकार की पीठ कितनी ही ठोंक लें, लेकिन जो हकीकत ये देख नहीं पा रहे हैं, (क्योंकि जनता से पूरी तरह कट गए हैं) वह यह है कि जनता में उनकी थू-थू हो रही है और लोकतंत्र के लिए जनता उन्हें नकारा समझ रही है. अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और बेलगाम मंत्री इंसान से हैवान बन गए हैं. ये अपने पतन की पटकथा खुद लिख रहे हैं. सत्ता के मद में अंधे हो गए इन लोगों को समझाने का मतलब है भैंस के आगे बीन बजाना.
उनकी दूसरी टिप्पणी थी-आपको तो यह ही नहीं पता कि रामपुर में रमजान सालों पुराना मदरसा बुलडोजर चलवाकर गिरा दिया गया और संचालक को विरोध करने पर जेल भेज दिया गया, जो अभी भी जेल में ही है. अखिलेश सरकार ने रामपुर में तो किसी भी अधिकारी को निलंबित नहीं किया. ऐसा इसलिए, क्योंकि रामपुर में आजम खान का राज चलता है, अखिलेश का नहीं. इन टिप्पणियों को लेकर किए गए एफआइआर में दूसरी टिप्पणी के अंतिम में एक अतिरिक्त वाक्य है-आजम खान रामपुर में कुछ भी कर सकते हैं, क्योंकि यह उनका क्षेत्र है और उन्हें खुदा भी नहीं रोक सकता है. इसे लेकर आजम खान के सचिव फसाहत अली खान ने रामपुर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि कंवल भारती ने रमजान माह में, आजम खान को खुदा भी नहीं रोक सकता, ऐसा कहकर खुदा की तौहीन की है. उनकी इस टिप्पणी से सांप्रदायिक सौहार्द बिग़ड सकता है. कंवल भारती पर दो वर्गों में वैमनस्य फैलाने के आरोप में धारा-153 ए और धार्मिक भावनाओं का अपमान करने के आरोप में धारा-295 ए लगाई गई. पुलिस ने छह अगस्त की सुबह उन्हें उनके घर से गिरफ्तार कर लिया. हालांकि उन्हें जब कोर्ट पेश किया गया, तो कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए कहा कि फेसबुक पर टिप्पणी करना कोई अपराध नहीं है.
इस मसले पर लेखकों-कलाकारों के संगठन जन संस्कृति मंच की ओर से कहा गया कि भारती ने फेसबुक पर जो कुछ लिखा, उसे देखकर इस आरोप के फर्जीपन को समझा जा सकता है. जिस प्रदेश में दलितों पर भयावह अत्याचारों के खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज कराना दूभर हो, वहां जिस तत्परता के साथ भारती जैसे जुझारू दलित चिंतक के खिलाफ झूठे आरोप दर्ज कर कार्रवाई की गई. हाल के दिनों में, सोशल मीडिया पर टिप्पणी को लेकर कार्रवाई करने के कई मामले सामने आए हैं. सरकारें मानवाधिकार हनन और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने में एक-दूसरे से हा़ेड ले रही हैं. उत्तर प्रदेश सरकार कंवल भारती से माफी मांगे और उन पर दर्ज मुकदमा वापस ले. अन्य संगठनों ने भी आंदोलन की धमकी देते हुए कंवल भारती के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस लेने की मांग की है.
इसके पहले मुंबई में युवतियों और असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी के मामले में भी कोर्ट ने गिरफ्तारी के आधार को ही बेबुनियाद बताकर उन्हें जमानत दी थी. इन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने तल्ख प्रतिक्रिया दी थी. युवतियों की गिरफ्तारी पर काटजू ने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को लिखा-हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, न कि किसी तानाशाही व्यवस्था में. हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है. युवतियों ने मुंबई बंद का विरोध किया था, जो कोई अपराध नहीं है, बल्कि जिसने अपराध नहीं किया, उसे गिरफ्तार करना धारा 341 और 342 के तहत अपराध है. जिन पुलिसकर्मियों व अधिकारियों ने दोनों युवतियों की गिरफ्तारी की है, उन्हें निलंबित कर उनपर मुकदमा दर्ज होना चाहिए. युवतियों आईटी एक्ट की धारा 66-ए के तहत गिरफ्तार किया गया था. इसके दुरुपयोग पर सवाल उठाती एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई इसके बाद सरकार ने दिशा-निर्देश जारी किया कि ग्रामीण क्षेत्र में पुलिस उपायुक्त और महानगरों में पुलिस महानिरीक्षक से नीचे रैंक के अधिकारी इस धारा के तहत गिरफ्तारी का आदेश नहीं दे सकते.
भारतीय राजनीति की इस तरह की गैर सोची-समझी कार्रवाइयों को लेकर आम नागरिक को यह जिज्ञासा हो सकती है कि यदि सरकार के कामकाज की मर्यादित आलोचना पर भी जेल हो सकती है, तो लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी का क्या अर्थ है? यदि सत्ता में बैठे लोग कानून का मखौल उ़डाते हुए इस तरह की हरकतों को अंजाम देंगे, तो कानून का लागू किया जाना कौन सुनिश्‍चित करेगा?
(यह रिपोर्ट सितंबर, 2013 में चौथी दुनिया साप्ताहिक में छपी थी.)

मीडिया और भारतीय मानस की संवेदनाएं

शीना बोरा मर्डर केस में मीडिया ने करीब पखवाड़ा भर खबर चलाई. लेकिन अच्छे दिनों की लहर में कितने हजार किसान मरे, इस पर मीडिया ने कोई चर्चा प्रसारित की, न कोई रिपोर्ट दिखाई. जब यह साल पूरा हो जाएगा तो सरकार आंकड़े जारी कर देगी कि इस साल इतने किसानों ने आत्महत्या कर ली. उसके बाद मामला खत्म हो जाएगा और क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो अगले साल के लिए आंकड़े जुटाएगा.
एक शीना बोरा, एक इंद्राणी मखुर्जी और सवा तीन लाख किसानों की आत्महत्या में आपकी हमारी दिलचस्पी से ही हमारा चरित्र तय होता है. हम हत्याओं से विचलित नहीं होते. हम प्यार, सेक्स और धोखा की कहानियों में मगन रहते हैं. इसलिए एक शीना बोरा एक महीने तक खबर बनती है लेकिन सवा तीन लाख किसानों की सरकारी हत्या पर एक दिन भी हंगामा नहीं होता. देश के नेतृत्व का चरित्र हमारा चरित्र है. उसे देखिए गौर से. हम सब सामूहिक रूप बिल्कुल वैसे ही हैं.
शीना बोहरा या इंद्राणी मामले से तीन लाख किसानों की आत्महत्या की तुलना कीजिए. सोचिए, अगर 20 साल में सवा तीन लाख किसानों की जगह सवा तीन लाख अमीर लोग मर जाएं तो क्या होगा? टेलीविजन पर आपने किसानों की आत्महत्या पर कितने दिन खबरें देखीं? शीना इंद्राणी पर? इन दोनों मसलों पर अखबारों के भी कवरेज देखिए.
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में हर महीने औसतन 69 किसान खुदकुशी कर रहे हैं. इस प्रदेश में इस साल जनवरी से मार्च तक 601 किसान आत्महत्या कर चुके थे. एक तिमाही में 601 तो तीन तिमाही में 1800. पूरे देश में यह आंकड़ा 3000 के पार होगा. यह अभी अनुमान है. आंकड़े अगली साल सरकार जारी करेगी. 2014 में देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की थी. एक साल में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा 20 प्रतिशत तक बढ़ा है. इस पर हमने कितना शोर सुना?
सोचिए, अगर 20 साल में सवा तीन लाख किसानों की जगह अमीर लोग मर जाएं तो क्या होगा? देश में गृहयुद्ध जैसी हालत हो जाएगी? हंगामा मच जाएगा. सरकार गिरने की नौबत आ जाएगी. मतलब यह देश सिर्फ अमीरों का है. मरना किसी को नहीं चाहिए. न अमीर को न गरीब को. लेकिन दोनों के मरने पर हम अलग अलग अनुपात में दुखी होते हैं. हमारी संवेदनाएं भी अमीरीपरस्त हैं.
सीरिया के एक बच्चे की लाश देखकर हम सब द्रवित हो गए. गुस्से में आ गए. क्योंकि उसकी फोटो इंटरनेट पर मिल गई. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल 'द लैंसेट' के मुताबिक, 2015 में भारत में पांच साल की उम्र पूरी करने से पहले 12 लाख बच्चों की मौत हो चुकी है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े कहते हैं कि भारत में हर साल कुपोषण के कारण पांच साल से कम उम्र वाले दस लाख बच्चे मर जाते हैं. यानी करीब साढ़े सत्ताइस सौ रोज. बच्चों की मौत के मामले में भारत पूरी दुनिया में सबसे ऊपर है. आप जानते ही हैं कि भारत आज ही कल में विश्वगुरु बनने वाला है और एक एक जोड़ा दस दस बच्चा पैदा करेगा.
अपने देश में गरीबी और तंगहाली के चलते जिन सवा तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की, उन सबके परिवार थे. अपने परिवार का पेट नहीं पाल सकने के अपराधबोध में उन्होंने आत्महत्या की. वे परिवार और भी बर्बाद हुए. अगर हम सब उनके लिए भी दुखी हुए होते तो किसानों की आत्महत्या के मामले में बढ़ोत्तरी नहीं होती! शायद आप सबकी संवेदना और गुस्से का ख्याल करके सरकारें कुछ करतीं.
इंटरनेट पर वायरल हुई तस्वीर देखकर जो आंसू बहते हैं, वे फैशनेबल आंसू हैं. वरना 20 करोड़ भूखे और हर साल दस—बारह लाख बच्चों की मौत पर हम आप इतने गुस्सा होते और इतना चीखते कि सरकारों के कान के परदे फट जाते.

क्या हम हिंदू तालिबान बनेंगे?

प्रसिद्ध तर्कवादी और कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या कर दी गई. साहित्य अकादमी प्राप्त 77 वर्षीय कलबुर्गी हम्पी विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके थे. वे धार्मिक कुरीतियों, अंधविश्वासों और सामाजिक अन्याय के आलोचक थे. उनके लेखों और बयानों पर पिछले महीनों कुछ विवाद भी हुए थे. यह हत्या धार्मिंक अंधविश्वास पर अभियान चलाने वाले नरेंद्र दभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्याओं की अगली कड़ी है. हाल ही में हिंदू अतिवादियों के हमलों से परेशान होकर तमिल साहित्यकार पेरुमल मुरुगन ने अपनी मौत की घोषणा की थी कि 'लेखक पेरुमल मुरुगन आज से मर गया'.
M M Kalburgi 
तीन प्रसिद्ध तर्कवादी विद्वानों की इन हत्याओं से कुछ गंभीर सवाल खड़े हुए हैं. हाल में ऐसे ही चार मामले बांग्लादेश में सामने आए हैं. वहां पर नास्तिक धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में लिखने वाले चार ब्लॉगरों की अतिवादियों ने हत्या कर दी. ठीक उसी तर्ज पर भारत में तीन लेखकों की हत्या की गई. क्या भारतीय लोकतंत्र पाकिस्तान और बांग्लादेश की राह पर है? क्या अब सही—गलत कहने के लिए साहित्यकारों की हत्याएं की जाएंगी? क्या हिंदुस्तान एक उदार, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र नहीं रह गया है जहां पर तमाम विरोधी विचार एक साथ मौजूद रह सकते हैं? क्या आप मुझसे या मेरे विचारों से असहमत हैं तो मुझे आपकी हत्या कर देनी चाहिए? क्या हम हिंदू तालिबान बनने की राह पर हैं जहां पर धार्मिक कुरीतियों और बुराइयों की आलोचना करने पर हमारा सर कलम कर दिया जाएगा? क्या यह सब एक स्वस्थ समाज के लिए बेहद भयावह नहीं है?

Govind Pansare
आस्था यदि राजनीतिक उन्माद में तब्दील हो जाए तो वह अतार्किक, हिंसक और क्रूर हो जाती है. तर्क हर हाल में अहिंसक, मानवीय और सौम्य हैं. नरेंद्र दभोलकर, गोविंद पानसरे, पेरुमल मुरुगन और एमएम कलबुर्गी जैसे विद्वानों ने किसी की हत्या नहीं की, किसी पर हमला नहीं किया. उन्होंने अंधविश्वास और धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार किया. इससे कुछ अतिवादी बौखला उठे. उन्होंने साल भर के भीतर तीन लेखकों की हत्या कर दी. जिस देश में छह धर्मदर्शनों में चार किसी न किसी रूप में नास्तिक हैं, जिस देश में कभी एक साथ शंकराचार्य और चावार्क हो सकते थे, वह देश अपने ही विद्वानों के तर्कवादी होने पर उनकी हत्याएं करते हुए विश्वगुरु बनने के सपने देख रहा है. बन क्या रहा है? इस असहिष्णु बर्बरता के साथ हम कहां पहुंचेंगे, जहां असहमत होने पर हत्या कर दी जाती हो?

Narendra Dabholkar
इससे भी ज्यादा स्तब्ध कर देने वाला बजरंग दल के बंटवाल सेल के सह—संयोजक भुवित सेट्टी का ट्वीट रहा. उन्होंने कलबुर्गी की हत्या के बाद ट्वीट किया, 'तब यूआर अनंतमूर्ति थे और अब कलबुर्गी। हिंदुत्व का मजाक उड़ाओगे तो कुत्तों की मौत मरोगे। डियर, के.एस. भगवान, अगला नंबर आपका है।' के.एस भगवान भी कलबुर्गी की तरह रिटायर्ड प्रफेसर हैं. उनकी इस ट्वीट से कई सवाल उठते हैं. भुवित जिस तरह कलबुर्गी की हत्या का स्वागत कर रहे हैं और दूसरे प्रोफेसर को धमका रहे हैं, क्या इस हत्या में बजरंग दल की कोई भूमिका है? क्या जिस लेखक को वे धमका रहे हैं उन्हें भी मार दिया जाएगा? क्या हम हिंदू तालिबान बनने की राह पर हैं? क्या हमारे देश में धार्मिक आलोचनाओं पर खुलेआम धमकी और हत्याएं होंगी? अगला नंबर किसका होगा? आपका या मेरा?

अच्छे दिनों में किसान

तेलंगाना के एक किसान ने बीते नौ सितंबर को हैदराबाद जाकर फांसी लगा ली. मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के गृहनगर मेडक में ही कुल 34 किसानों की आत्महत्या के मामले दर्ज किए जा चुके हैं. इनमें से पांच तेलंगाना के बनने के बाद हुईं हैं.
महाराष्ट्र के सिर्फ मराठवाड़ा क्षेत्र में इस साल 628 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. बीते अगस्त में ही यहां फसल बर्बादी के चलते 105 किसानों ने आत्महत्या कर ली. विदर्भ में किसान आत्महत्याओं की दर मराठवाड़ा से भी ज्यादा है. मराठवाड़ा में 2014 में 574 किसानों ने आत्महत्या की थी. यह वही महाराष्ट्र है जहां के नेता शरद पवार दस साल से ज्यादा कृषि मंत्री रहे और अब मोदी जी उनके सपनों का कृषि विज्ञान केंद्र बनवा रहे हैं. फरवरी में बारामती में बने इस केंद्र का उद्घादन प्रधानमंत्री मोदी ने किया था. पवार और मोदी ने एक—दूसरे को किसानों का हितैषी बताया था, लेकिन ताबड़तोड़ किसान आत्महत्याओं पर दोनों ने कुछ नहीं कहा था. चुनाव प्रचार में मोदी के लिए एनसीपी ‘स्वाभाविक रूप से भ्रष्ट पार्टी’ थी. बाद में उन्होंने कहा कि 'कोई ऐसा दिन नहीं है जब मेरी और पवार की फोन पर बात न होती हो. हम दोनों के हित एक हैं.'
विदर्भ और मराठवाड़ा में सूखे की जबरदस्त स्थिति है. केंद्र सरकार वहां पर मनोचिकित्सा केंद्र खोलने जा रही है. जैसे एक केंद्रीय मंत्री कह रहे थे कि किसान प्रेम प्रसंगों में असफल होकर आत्महत्याएं कर रहे हैं, उसी तरह सरकार भी मान रही है कि आर्थिक तंगी से मरने वाले किसान मेंटल हो गए हैं. इसलिए वह मनोचिकित्सालय खोलेगी.
सहारनपुर में गन्ने का बकाया मांगने के लिए प्रदर्शन कर रहे किसानों पर लाठी चार्ज की गई. कई किसानों को चोट आई. किसानों के कुछ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. यूपी में हमीरपुर के मझगवां में फसल सूख जाने के कारण एक किसान ने पांच सितंबर को फांसी लगा ली थी.
पिछले 19 सालों में सवा तीन लाख से अधिक किसान देश में आत्महत्या कर चुके हैं. आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में किसानों की आत्महत्याओं की दर में 20 प्रतिशत वृद्धि हुई है.
तेलंगाना के मेडक जिले का एक गांव है रयावरम. सात साल का वम्शी इसी गांव के स्कूल में पढ़ता है. उस दिन वम्शी के पिता अचानक स्कूल आये थे. बेटे को कक्षा से बुलाकर स्कूल के पास की एक चाय की दुकान पर ले गये. उसे बन खिलाया. चाय पिलायी. पांच रुपये दिये और मन लगाकर पढ़ने की सलाह दी. सात साल का वम्शी पिता के व्यवहार को समझ नहीं पा रहा था. पर उसे अच्छा लगा था कि पिता ने बन खिलाया. फिर पिता ने बेटे के सिर पर दुलार से हाथ रखकर कहा था, ‘कभी किसान मत बनना.’ वम्शी इस बात को भी समझ नहीं पाया. फिर वम्शी के किसान पिता उसे स्कूल में छोड़कर चले गये. फिर कभी नहीं लौटे. उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.
किसान बच्चों के पिता मरने से पहले कह रहे हैं, ‘कभी किसान मत बनना.’ भविष्य में कोई वम्शी किसान नहीं बनेगा. मॉनसून सत्र के दौरान मोदी सरकार ने सदन में बताया था कि 2014 में देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की है. मोदी सरकार के सत्ता में आने के एक साल के भीतर अडाणी की संपत्ति 48 प्रतिशत बढ़ गई. पिछले एक साल में किसान आत्महत्याओं की दर 20 प्रतिशत बढ़ी.
यानी किसान मरेंगे. उद्योगपति फलेंगे—फूलेंगे. अनाज उगाने वाले मरेंगे. खेती छोड़ेंगे. तब अडानी अंबानी मिलकर कार और मोटर बनाएंगे. मशीन बनाएंगे. हम सारे देशवासी मिलकर कार, मोटर और मशीन खाएंगे.

प्रधानमंत्री के नाम खुला खत

आदरणीय प्रधानमंत्री जी
नमस्कार!
कुछ दिन से बहुत परेशान हूं. दिमाग की नसें फटने लगी हैं. चुनाव से पहले आप कहते थे कि अच्छे दिन आने वाले हैं, लेकिन जबसे मैंने होश संभाला है, ऐसे दुर्दिन पहली बार देख रहा हूं. मुझे बहुत डर लगता है. आप कहेंगे क्यों? हाल में तीन बड़े लेखकों की हत्या कर दी गई. अभी अभी कन्नड़ लेखक कलबर्गी की हत्या के बाद केएस भगवान को दो बार धमकी मिली. अब ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त भालचंद नेमाडे को भी जान से मारने की धमकी मिली है. आपने जिस विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन किया, उसमें पूंजीपति थे, हमारे प्रतिष्ठित साहित्यकार नहीं थे लेकिन यह कोई मसला नहीं. हैरत यह है कि आप लगातार इन हत्याओं और धमकियों पर चुप हैं, आपकी सरकार भी, पार्टी भी और आपका संरक्षक संगठन आरएसएस भी. क्या अब हम आइएसआइएस के दौर में पहुंचेंगे? हत्याएं, खून—खराबा आदि तो पहले भी होता रहा है लेकिन इतना भयावह समय नहीं था कि बड़े बड़े लेखकों को सरेआम धमकी देकर मारा जाए. हमारी पीढ़ी जिस भारत में पैदा हुई, वह इतना भयावह नहीं था.
दूसरी डराने वाली बात तो सनातन है. आपके विकास के दावे की बात पीछे छूट गई है. अब पूरे देश में सिर्फ हिंदू—मुस्लिम, गाय—सुअर, मुर्गा—मुर्गी, बकरा—बकरी हो रहा है. कोई क्या खाएगा, यह कोई सरकार कैसे तय करेगी? सरकारें लोगों के किचन और बिस्तर में क्यों घुसना चाहती हैं? आपकी पार्टी के संतों का मन हरदम बच्चा पैदा करने में अटका रहता है. वे विकृति के शिकार हो गए हैं. यह और डरावना है. उनका इलाज कराने के साथ उनको यह समझाने की जरूरत है कि अगर 10—12 बच्चा पैदा करने वाली प्रजाति ताकतवर होती तो एक बार में 12 बच्चे देने वाला सुअर इस धरती का सबसे ताकतवर जानवर होता.
इन सबको अपनी सरकार के आंकड़े दिखाइए कि हर साल 10—12 लाख बच्चे डायरिया, निमोनिया और कुपोषण से मर जाते हैं और 20 करोड़ लोग रोजाना भूखे सोते हैं. उन सबका पेट भर गया तो देश अपने आप ताकतवर हो जाएगा.
तीसरी डराने वाली बात आपके चंडीगढ़ दौरे से जुड़ी है. आप पूरे देश में दौरे करते हैं, पर चंडीगढ़ में आपातकाल जैसी हालत क्यों हो गई? क्या चंडीगढ़ के श्मशानों और स्कूलों से भी आपको खतरा था? वहां पर इतने सारे लोगों को नजरबंद क्यों किया गया? लोगों को इस तरह नजरबंद करने की घटनाएं आपातकाल में हुई थीं, जिसकी कहानी आपकी पार्टी के पितृपुरुष आडवाणी जी अक्सर सुनाया करते हैं. किसी 77 साल के बूढ़े से आपको क्या खतरा उत्पन्न हो गया कि उसे रात को 11.30 बजे उनके घर से उठा लिया गया?
आपको बताना चाहता हूं कि मैंने आपको वोट नहीं दिया था, लेकिन आपसे यह सब कह रहा हूं क्योंकि इस लोकतंत्र के बारे में यह जानता हूं कि जनप्रतिनिधि समग्र जनता का होता है. आप उनकी भी सुरक्षा करें, जो आपकी पार्टी से नहीं हैं, जो आपकी विचारधारा से भिन्न विचार रखते हैं या जिनका खानपान आपसे भिन्न है. हमारे लेखक हमारी विरासत हैं. उन सबको मार दिया जाए तो पटेल या विवेकानंद की आसमान से ऊंची मूर्ति बनवाने का भी कोई लाभ नहीं होगा.
सोच रहा हूं क्या—क्या गिनाऊं. पूरे देश से एक ही दिन में इतनी सारी डरावनी खबरें आती हैं कि रोजनामचा बने तो हर दिन एक महाभारत लिख जाए. आप कहते थे कि आप भारत को आगे ले जाएंगे. यह तेजी से पीछे जा रहा है. हर दिन पिछले दिन से बुरा गुजरता है. महंगाई, बेरोजगारी जाने दीजिए, पहले देश जैसा था, इसे वैसा बने रहने देना ज्यादा जरूरी है. देश का ऐसा विकास न कीजिए जिसमें सब खान—पान की आदतों और आचार—विचार पर लड़ मरें. आप अपने भाषणों में इस देश से जितना प्यार जताते हैं, उसका एक टुकड़ा इस देश की जनता को दे दीजिए तो सब अपने—अपने तरीके से जी लेंगे. हो सके तो इस धरती को जीने लायक बनी रहने दीजिए. देश आपका बहुत शुक्रगुजार रहेगा.
आपका
एक नाचीज नागरिक

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...