शनिवार, 28 मई 2011

भोर पहर

भोर पहर 
उतरती है धूप
गमले में लहराती 
किलकती पत्तियों पर 
लगता है उतरा है जीवन 
किसी की रगों के भीतर 
और खिल-खिल गया है 
पंखुड़ियों पर

भट्टा परसौल के नागरिकों के नाम

  
यह कोई कविता नहीं 
ये तो उनकी आंखों से टपके 
कतरे हैं लहू के 
गोलियों से छलनी हुए जो लोग 
बटोर कर लाया हूं अभी
पड़े थे उनकी पुस्तैनी  ज़मीन पर 
कंचों  की तरह, लावारिस 

वह जो आई थी 
नयी बहू, इसी लगन पाख में 
सत्ता ने रौंद डाला 
उसके सपनों की हसीन बस्ती 
कहा, अतिक्रमण है, रौंदो इन्हें
उसने कहा- मेरा सपना है 
सिन्दूर है मेरी मांग का 
और उम्र की कुछ-एक मुस्कराती पंखुडियां 
रहने दो इसे 
मगर तब तक चिपक चुका था  
 उसके माथे पर 
विदेशी कंपनियों का विज्ञापन 
उसकी हथेली पर 
रखा जा चुका था मुआवजा 
हो चुका था अधिग्रहण 
उसकी कोख का 
        
वहीं पर हमारे पुरखे भी 
पाथा करते थे उपले 
जहां गांव की सब बूढ़ी औरतें 
लगाती रहीं ताउम्र 
कंडियों के ढेर 
कंडियां और कुछ नहीं होतीं 
रोटी के सिवा 
जो गढ़ी जाती हैं 
तिनके तिनके से 

गांव भर के सपने  
फूंक दिए गए बटोर कर 
उन्हीं कंडियों  में 
रख हो गयीं सब रोटियां 


वे जो भागे हैं घर छोड़ 
जीते हैं सहमे सहमे 
उन सबसे कहो 
जमा दें अपने पांव 
सटाकर अपने घर की दीवारों से 
बना लो अपने किले 
जिसे न ढहा सके सत्ता का दमन 
अन्यथा एक दिन 
वे पहुंचेंगे उन सूने स्थानों पर भी 
जहां छुपी हैं तुम्हारी धडकनें....

शुक्रवार, 27 मई 2011

अपने-अपने जंतर-मंतर



अन्ना हजारे के बाद अब योगगुरु बाबा रामदेव की योजना है कि वे चार जून को काला धन मुद्दे को लेकर जंतर-मंतर पर आमरण अनशन करेंगे। उनका दावा है कि अन्ना हजारे अपनी पूरी टीम के साथ इस अनशन में तो रहेंगे ही, देश-विदेश से उनके कई समर्थक भी इसमें हिस्सा लेंगे। हो सकता है कि बाबा रामदेव काले धन के मुद्दे पर जनता में एक स्थायी-अस्थायी आवेग भरने में सफल रहें। मगर, सवाल सिर्फ जनता में कुछ-एक दिन के लिए उग्रता जगाने का नहीं, बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने का है। भ्रष्टाचार इस देश में आज पैदा हुआ कोई नया सवाल नहीं है। वह 60 सालों में तमाम जीपें और तोपें निगल चुका है। अब दरकार इस बात की है नागरिक समाज का जो भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ लामबंद होता है, वह खुद कितना विश्वसनीय है और उसके पास भ्रष्टाचार से निपटने का कोई कार्यक्रम है कि नही? अन्ना हजारे के आंदोलन की तात्कालिक सफलता का कारण यह रहा कि उनकी अपनी छवि संदेह से परे है। उनका अतीत और उनकी प्रतिबद्धता लोगों को आकर्षित करती है। दूसरे, उनके पास एक मजबूत टीम है जो लंबे समय से आंदोलन की पूरी रूपरेखा तैयार कर रही थी। उनका अपना एक तैयार कार्यक्रम था जो देश के सामने पेश किया जा चुका था और उस पर संज्ञान लिए जाने की बात भी लोगों के बीच पहुंच चुकी थी। अन्ना हजारे के आंदोलन के पहले एक मुफीद पृष्ठभूमि तैयार हुई थी जिसका फायदा मिला।
इसके उलट बाबा रामदेव की घोषणा का वैसा असर नहीं दिख रहा। इसके कई कारण हो सकते हैं। बाबा रामदेव की पार्टी बनाकर देशभर में उम्मीदवार उतारने की महत्वाकांक्षा लोगों के निगाह में उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है जो उनके आंदोलन की विश्वसनीयता को क्षीण करेगी, क्योंकि भारत की जनता को राजनीति और राजनेताओं के सिवा हर चीज पर विश्वास है। वह हत्या के आरोपी किसी बाबा को आंख मूंद कर भगवान मानती है, लेकिन नेता से कोई उम्मीद नहीं रखती।
अब यह देखने की बात है कि बाबा रामदेव यदि राजनीतिज्ञ की छवि के साथ भ्रष्टाचार से लड़ने के उतरते हैं तो जनता पर उसका क्या असर पड़ता है? आखिर भ्रष्टाचार कोई फूंक कर उड़ा देने वाली वस्तु नहीं है। वह ऐसा ताकतवर भूत है जो साठ साल से लोकतंत्र के इस बागीचे में लोहिया और जयप्रकाश जसे नेताओं के आगे थोड़ा विचलित चाहे हुआ हो, परंतु अभी तक स्वच्छंद विचरण कर रहा है।
यह सही है कि बाबा रामदेव के पहले से लाखों समर्थक हैं जो उनके जीवनरक्षा के साथ देशभक्ति की दीक्षा कई सालों से ले रहे हैं, इसलिए अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन, सवाल यह है कि अगर रामदेव के समर्थन में अन्ना हजारे की तुलना में ज्यादा भीड़ जुटती है तो भी क्या गारंटी है कि वे भ्रष्टाचार मिटाने की दिशा में कोई सफल अध्याय जोड़ेंगे ही? सिवाव इसके कि वे अन्ना हजारे के नेतृत्व में चल रही लड़ाई को और कमजोर ही करेंगे। ऐसा इसलिए तब यह लड़ाई द्विध्रुवीय या बहुध्रुवीय होगी। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सबके अपने-अपने जंतर-मंतरभ्रष्टाचार की एकताज् को डिगा नहीं सकेंगे।
दूसरा एक पक्ष यह भी है कि काले धन के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय लगातार संज्ञान ले रहा है और हसन अली के मामले में सरकार को डांट भी पड़ चुकी है कि वह कार्रवाई को और तेज क्यों नहीं करती। ऐसे में जो मामला सुप्रीम कोर्ट में हो उसे लेकर अनशन की प्रासंगिकता कम समझ में आने वाली है। क्या ऐसे मामलों को लेकर आंदोलन छेड़ा जाना चाहिए? बाबा रामदेव को न्यायालय पर भरोसा जताते हुए कुछ महीने रुकना चाहिए था। उनके आमरण अनशन के कार्यक्रम के पीछे हो सकता है कि उनकी सदिच्छा हो, लेकिन अनशन के लिए उन्होंने जो समय चुना है, वह मुफीद नहीं है। बेहतर होता कि वे अन्ना हजारे के साथ लोकपाल बिल की सफलता का प्रयास करते। मुझ जसे ज्यादातर लोगों को तो यही लगता है कि अगले चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने की महत्वाकांक्षा बाबा रामदेव को जंतर-मंतर तक खींच रही है।

राहुल गांधी से कहो क्या चाहिए


सुबह के ग्यारह बज रहे थे और बैंक में काफी भीड़ थी। लोग आपस में धक्का-मुक्की कर रहे थे। काउंटर खुले थे और कामकाज करीब-करीब नहीं हो रहा था। एक काउंटर पर एक कर्मचारी लोगों को पैसे बांट रहा था और दूसरा बैठा भीड़ से हंसी-ठहाका कर रहा था। यह मेरे गृह जनपद गोंडा जिले के एक कस्बे में स्थित ग्रामीण बैंक का दृश्य था, जहां मैं अपने दादा जी के साथ बैंक से पैसा निकालने गया था और इंतजार में लगी लाइन का हिस्सा था।
उन दोनों कर्मियों को देखकर मुङो भी वहां मौजूद बाकी लोगों की तरह गुस्सा रहा था कि ये सरकारी कर्मचारी होते ही कामचोर हैं। हर कोई परेशान था। ज्येष्ठ की दोपहरी तप रही थी और लोग पसीने -पसीने थे। एक बुजुर्ग महिला, जिसकी उम्र करीब 90 साल के आसपास थी, बैठी हांफ रही थी। उसे उसका पोता गोद में लेकर आया था। वह चार सौ रुपये का निकासी फार्म भरकर बैठी थी और वहां आने को लेकर पछता रही थी। एक महिला जिसकी हाल ही में शादी हुई थी, लोग उसे घूर रहे थे और वह खड़ी-खड़ी कुढ़ रही थी। एक लड़की जो अपने बात-व्यवहार से पढ़ी-लिखी और शहरी लग रही थी, वह दूर से ही से चिल्लाई- क्या सर! कुछ काम धाम भी होगा या नहीं? गप्प मार रहे क्लर्क ने कहा- मैडम सिस्टम खराब है। वह लड़की बोली- मुङो पता है किसिस्टमज् खराब है। पूरे देश कासिस्टमज् खराब है तो आपकी क्या बात? क्लर्क बोलाआज आप जाइए। कल आइएगा। मैनेजर साहब होंगे। आप अपनी शिकायत दर्ज कराइएगा। मैं भी आपका साथ दूंगा। वह लड़की खड़ी उसे घूरती रही और कहीं नहीं गई। अब तक मैं भीड़ से गप्प मार रहे क्लर्क के और नजदीक गया। उससे थोड़ी सी बातचीत के बाद पता चला कि उसने शराब पी रखी है। वह भीड़ को देखकर जसे घबरा रहा था और हर व्यक्ति को यही बता रहा था कि सिस्टम खराब है। अंतत: उसने अनुपस्थित बैंक मैनेजर को फोन  मिलाया और कहा कि साहब बिना कंप्यूटर के काम नहीं चल सकता। कम से कम इसे अब ठीक करा दीजिए। उसने झल्ला कर फोन रख दिया। अब तक नशा उसपर पूरी तरह तारी हो चुका था। उसने सामने खड़ी भीड़ से कहा- देख रहे हो? यह दशा है। दफ्तर में छह साल से एक कंप्यूटर नहीं लगा है और राहुल गांधी अभियान चला रहे हैं। वोट पाने और पार्टी बढ़ाने का अभियान। आएं तो बता देना कि तुम्हें क्या चाहिए। इस दौरान मैं सोच रहा था कि नशे में शायद आदमी ज्यादा प्रसंगश: बातें करता है।

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...