रविवार, 6 नवंबर 2016

सैकड़ों शहादतें कैसे रुकेंगी? मीडिया पर प्रतिबंध लगा दो

सीमा पर आज फिर दो जवान शहीद हो गए. इस साल अब तक कुल 76 जवान शहीद हो चुके हैं. पिछले तीन महीनों में 42 भारतीय जवान शहीद हो चुके हैं. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कम से कम 100 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन हुआ है और 8 जवान शहीद हुए हैं.
1988 से सितंबर, 2016 तक कुल 6,250 भारतीय रक्षाकर्मी आतंकी वारदातों में शहीद हुए हैं. वहीं जवाबी कार्रवाई में कुल 23,084 आतंकियों को भारतीय जवानों ने मार गिराया. इन घटनाओं में करीब 15000 लोग मरे हैं.
56 इंची सीने का दावा करने वाले नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद दो साल के भीतर 156 जवान शहीद हुए हैं.
यदि ये आंकड़े सही हैं तो पिछले ढाई साल में करीब ढाई सौ जवान शहीद हो चुके हैं. सरकार को इस बारे में स्पष्ट आंकड़ा जारी करके बताना चाहिए कि अब तक कुछ कितने जवान शहीद हुए.
आतंकी वारदातों में मारे गए जवानों की सालाना औसत मृत्यु दर पर नजर डालें, तो यह आंकड़ा कांग्रेस की मनमोहन सरकार से जरा भी कम नहीं है.
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं में वृद्धि हुई है. कश्मीर में आतंकी वारदात की संख्या वाजयेपी और मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार के दौरान बढ़ी हैं.
5 जनवरी 2015 से 15 जनवरी 2016 के बीच आतंक सम्बंधी 146 घटनाएं हुईं, जिसमें 169 लोग मारे गए. इनमे 39 सुरक्षाकर्मी और 22 नागरिक भी शामिल हैं. इसी दौरान राज्य में सीमा पर फायरिंग की 181 घटनाएं हुईं हैं जिसमें 22 लोगों की मौतें हुईं जिनमें 8 सुरक्षाकर्मी और 75 अन्य लोग मारे गए.
मोदी सरकार कहती है कि हम मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं तब आप कूदने लगते हैं, लेकिन पहले भी मुंहतोड़ जवाब ही दिया जाता रहा है. 2008-09 में भी युद्ध होने की कगार पर मामला पहुंच गया था. पहले की सरकारों ने सीमा पर सैनिकों के हाथ में दही नहीं जमाया था. सीमा के भीतर भी और बाहर भी सेना वह सब करती रही है जो करने की उसे जरूरत महसूस हुई. मोदी सेना को भी लेकर चुनाव प्रचार करते हैं, पहले ऐसा नहीं होता था.
प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी कहते थे कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए 56 इंची सीना चाहिए. एक सैनिक के सिर के बदले 10 सिर लाने की बात भी कहते थे. हालांकि, एक प्रधानमंत्री के तौर पर यह बात अहमक किस्म की है. तारीफ तो तब होगी जब वार्ता और कूट​नीति के सहारे इन घटनाओं पर रोक लगाई जाए. वे यह दोनों काम नहीं कर सके. उन्होंने यह जरूर किया कि सेना को चुनावी मंडी में ले जाकर सरे बाजार दुकान सजा बैठे हैं.
मनमोहन थे, तब भी सैनिक मर रहे थे. मोदी हैं तब भी सैनिक मर रहे हैं. सीमा पर गोलियां तब भी चलती थीं, अब भी चलती हैं. अंतर बस इतना आया कि पाकिस्तान ही आतंकी भेजता है और वही जांच दल भी भेजता है. जज, ज्यूरी और जल्लाद सब वही है.
स्पष्ट खुफिया रिपोर्ट होने के बाद भी पठानकोट हमला नहीं रोका जा सका. इस हमले को ​लेकर नियुक्त जांच समिति ने सरकार और सुरक्षा एजेंसियों पर गंभीर सवाल उठाए, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई हुई हो, ऐसा हमें मालूम नहीं है.
अब अगर एक एनडीटीवी को प्रति​बंधित करने या रवीश कुमार को काला पानी भेज देने से हमारी सुरक्षा पुख्ता होती हो तो ऐसा जरूर करना चाहिए. या ऐसा करना चाहिए कि समूचे मीडिया को प्रतिबंधित कर देना चाहिए.
'अंधेर नगरी, चौपट राजा' में भारतेंदु ​हरिश्चंद्र इसका पटाक्षेप इस पंक्ति से करते हैं कि 'जहाँ न धर्म न बुद्धि नहिं, नीति न सुजन समाज, ते ऐसहि आपुहि नसे, जैसे चौपटराज'.

बाकी, बागों में बहार तो हइए है...



*(सारे आंकड़े मीडिया रिपोर्ट्स से)

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