रविवार, 19 दिसंबर 2010

आज रात तुम छत पर रहना
बदल ओढ़ के आऊंगा मैं
सारी रात तेरे दामन में
खूब झमाझम बरसूँगा
एक चाँद का सुर्ख बताशा
लाऊंगा जो तुम्हे पसंद हैं
और तारों का लडीदार
इक उजला गजरा लाऊंगा 
रात को लोरी गाते गाते 
सर पे तेरे सजाऊंगा 
नींद में जब तू बह जाएगी 
मैं सपना बन जाऊंगा 
खारी खारी शीरीं शीरीं 
रात ज़बां पर तुम रख लेना
भर ले आऊंगा अंजुरी में 
आसमान सारा पी लेना 
अगर लाज लागे तुमको तो 
उफक खींच कर तन ढँक लेना 
और देखना साथ बरसने का होता 
क्या खूब जायका!


आज रात तुम छत पर रहना 
बादल ओढ़ के आऊंगा मैं.....

रात के पिछले पहर
जब ज़मीन से आसमान तक
बरस रहा था सन्नाटा
किसी के ख्याल ने
काँधे पे रख के हाथ
धीरे से कहा कान में
यार बहुत तन्हाई है
कुछ बात करो....
रोज़ आया करो ऐसे ही
भोर की उजास के साथ
जब गूंज उठती है कायनात
जब बज उठते हैं दिन
मुस्करा उठता है आसमान
भर जाते हैं हर शै में वजूद
उतर कर मेरी रगों में
भर दिया करो
सांसों में अर्थ
सोना...!

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010


सूचना युग का क्रांतिकारी जुलियन असांजे


अपने कारनामों से अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के लिए नीतिगत स्तर पर मुश्किलें खड़ी करने वाले जुलियन असांजे आस्ट्रेलियाई पत्रकार और इंटरनेट एक्टिविस्ट हैं. उन्होंने 2006 में  भंडाफोड़ करने वाली साइट विकीलीक्स की स्थापना की. दुनिया उन्हें विकीलीक्स के एडीटर इन चीफ और प्रवक्ता के तौर पर जानने से ज्यादा इस बात के लिए जानती है कि उन्होंने अमेरिका के राजनीतिक और आपराधिक कारनामों का खुलासा करने वाले लाखों गुप्त दस्तावेजों को आनलाइन करके अमेरिका को विश्वबिरादरी में रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है. अमेरिका के तमाम स्याह-सफेद सच दुनिया के सामने आ गये हैं, जिससे अमेरिका काफी असहज हो गया है. विकीलीक्स पर अबतक इराक, अफगानिस्तान और अमेरिका से जुड़े युद्धों के लाखों महत्वपूर्ण दस्तावेज सार्वजनिक हो चुके हैं. इन दस्तावेजों ने अमेरिका और नाटो के गंभीर युद्ध अपराधों को दुनिया के सामने ला दिया है. अमेरिका और उसके समर्थक देश जहां असांजे को अपना दुश्मन मानने लगे हैं, तो दुनिया भर में अचानक उनके लाखों प्रशंसक पैदा हो गये हैं. उनके कामकाज का तरीका गोपनीय और दुनिया भर को हैरान करने वाला है. 
असांजे भले ही विकीलीक्स के हालिया खुलासे से चर्चा में आये हों, उनकी लड़ाई बहुत लंबे समय से जारी है. कंप्यूटर प्रोग्रामर रहे असांजे कई देशों में रह चुके हैं. फिलहाल उनके ब्रिटेन में रहने की खबरें हैं. वे सार्वजनिक तौर पर कभी कभी दिखते हैं और स्वतंत्र प्रेस, सेंसरशिप और खोजी पत्रकारिता के बारे में बोलते रहे हैं. उन्हें विकीलीक्स के लिए किये गये कामों के लिए पत्रकारिता के क्षेत्र में तीन पुरस्कार भी 
 मिल चुके हैं. केन्या में हुई गैर-कानूनी हत्याओं पर उन्होंने तमाम खुलासों में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. सोलह साल की उम्र से ही असांजे ने छद्म नाम मेनडैक्स से हैकिंग शुरू कर दी थी. उन्होंने हैकिंग के बेसिक नियम बताते हुए कहा कि हैकिंग करने का उद्देश्य सिर्फ सूचना का आदान-प्रदान होना चाहिए, न कि कंप्यूटर को क्षति पहुंचाना या सूचनाओं को नष्ट करना. हैकिंग के आरोप में आस्ट्रेलिया की पुलिस ने 1991 में उनके घर छापा मारा और उन्हें गिरतार कर लिया. 1992 में उनपर हैकिंग के 24 मामले दर्ज किये गये और जुर्माना लगाया गया. असांजे का कहना है कि ’यह बहुत दुखद है कि लोग मुझे कंप्यूटर हैकर कहते हैं. मैंने हैकिंग पर किताब जरूर लिखी है लेकिन वह सालों पहले की बात है. अब मैं जो कर रहा हूं, उसके लिए शर्मिंदा नहीं हूं, बल्कि मुझे उसका गर्व है. हालांकि, मुझे हैकर कहे जाने का विशेष कारण है.’ 
असांजे विकीलीक्स के 9 सदस्यीय सलाहकार बोर्ड के मुखिया और प्रवक्ता हैं. साइट की स्थापना के समय उन्होंने लिखा कि शासन पद्धति को बदलने के लिए हमें साफ और निडर सोच रखनी चाहिए. उनकी टीम में पांच सदस्य हैं जो सभी  जरूरी दस्तावेजों को सार्वजनिक करते हैं. असांजे पत्रकारिता में पारदर्शिता और वैज्ञानिकता  के पक्षधर हैं. उन्होंने ’वैज्ञानिक पत्रकारिता’ जैसी शब्दावली गढ़ी. हालांकि, उनके विरोधी उन्हें हाइटेक आतंकवादी कहते हैं. उनका कहना है कि आप भौतिकी में बिना पूरे प्रयोग और आंकड़ों के लेख प्रकाशित नहीं कर सकते. यही पैमाना पत्रकारिता का भी होना चाहिए. 
विकीलीक्स किसी भी संगठन, संस्था या व्यक्ति से सूचनाएं अर्जित करती है. इसके लिए कोई भी उसकी साइट पर जाकर सीधे सूचना डाल सकता है या विकीलीक्स टीम से चैट भी कर सकता है. लेकिन यह सूचना तब तक सार्वजनिक नहीं होती है, जब तक विकीलीक्स की टीम उसकी विश्वसनीयता जांच नहीं लेती है. जरूरत होने पर कागजात की फोरेंसिक जांच भी करायी जाती है. असांजे का कहना है कि ’हम स्रोत की जांच नहीं करते, बल्कि दस्तावेजों की जांच करते हैं. अगर वे प्रमाणिक हैं तो इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां से आये हैं.’ माना जा रहा है कि अमेरिका से संबंधित गोपनीय दस्तावेज विकीलीक्स को एक अमेरिकी सैनिक ब्रेडले मैनिंग से मिले, जो बगदाद में तैनात था. 
विकीलीक्स पर कौन सा रहस्योद्घाटन कब होना है, इसे तय करने के लिए दुनिया के 120 जानेमाने पत्रकारों की टीम बनाई गयी है. अमेरिका का न्यूयार्क टाइम्स, ब्रिटेन का गार्जियन, फ्रांस का ला मांद, जर्मनी का डि स्पिगेल और स्पेन का डेर पाइस विकीलीक्स की मदद कर रहे हैं. विकीलीक्स पर कोई सूचना तभी  जारी होती है जब इनमें से किसी न किसी अखबार में प्रकाशित हो जाती है. विकीलीक्स का इन अखबारों के साथ गहरा सहयोग है. इन्होंने मिलकर ही यह टीम बनाई है. उनकी टीम के सभी सदस्य स्वयंसेवी हैं और विकीलीक्स के लिए बिना किसी पारिश्रमिक के काम करते हैं. यह टीम दस्तावेजों के आकलन समेत सभी फैसले लेती है. ला मांद के प्रबंध संपादक सिल्वी कोफमैन का कहना है कि हम जो दस्तावेज निर्धारित करते हैं, विकीलीक्स उन्हीं को प्रकाशित करता है. दुनिया के पांच बड़े अखबारों और तमाम पत्रकारों का सहयोग जुलियन असांजे की ताकत है, जिसे दबा पाना अमेरिका के लिए आसान नहीं होगा. शायद यही वजह हो कि असांजे के ठिकाने की खबर होने के बावजूद ब्रिटिश पुलिस उनकी गिरतारी नहीं कर पा रही है. 
विकीलीक्स के ताजा खुलासे के बाद अमेरिका ने और उसके सहयोगी देशों ने जुलियन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. माना जा रहा है कि अमेरिका के दबाव में आस्ट्रेलिया ने भी असांज से अपने को अलग कर लिया है. अब आस्ट्रेलियाई सरकार असांज के खिलाफ अमेरिका का साथ दे रही है. असांज ने ब्रिटेन के अखबार गार्जियन के एक कार्यक्रम में कहा कि आस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री जुलिया गिलार्ड उन्हें और उनके सहयोगियों को निशाना बना रही हैं.  इससे उनका आस्ट्रेलिया लौट पाना भी संभव नहीं है. फिलहाल असांजे को छुप-छुपकर जीवन बिताना पड़ रहा है. वे अब अपनी पहचान छुपाने के लिए अपने बालों को बार बार रंगते हैं. क्रेडिट कार्ड की जगह नगद पैसे का इस्तेमाल करते हैं. वे कहीं एक जगह नहीं ठहरते. उनकी रहनवारी आस्ट्रेलिया के साथ केन्या, तन्जानिया में भी रही है. इस बीच वे अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी आते-जाते रहे हैं. वे लगातार यात्राएं करते हैं और अलग-अलग जगहों से विकीलीक्स को संचालित करते हैं. न्यूयार्कर मैग्जीन का एक रिपोर्टर, जो उनके साथ कई हते बिता चुका है, के मुताबिक वे बिना खाये-पिये कई घंटों तक काम करते रहते हैं. वो अपने आसपास ऐसा माहौल बना लेते हैं कि उनके साथ जुड़े लोग हर हाल में उनकी मदद को तैयार रहते हैं. यह शायद उनके व्यक्तित्व का कमाल है. यह सब एक दिन में संभव नहीं हो पाया है. जुलियन ने इस काम को अपना शगल बना लिया है. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि ’अपने स्रोतों को सुरक्षित करने के लिए हमने अलग-अलग देशों से काम किया. अपने संसाधनों और टीमों को हम अलग-अलग जगह ले गये ताकि कानूनी रूप से हम सुरक्षित रह सकें. अब तक हम यह सब करना सीख गये हैं. अब तक हम न कोई केस हारे हैं और न ही अपने किसी स्रोत को खोया है.’ यह विस्मयकारी है कि विकीलीक्स के कामकाज के तरीकों से इस क्षेत्र के विशेषज्ञ भी परिचित नहीं हैं. 
आज दुनिया के सामने सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात यह है कि विकीलीक्स के पास ऐसे गुप्त दस्तावेज आते कहां से हैं? बीबीसी हिंदी सेवा के मुताबिक विकीलीक्स ने जो जानकारी सार्वजनिक की है उसका मुख्यश्रोत अमेरिकी रक्षा विभाग का नेटवर्क ’सिप्रनेट’ है. यह नेटवर्क खुफिया जानकारियों के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है. अमेरिकी अधिकारी जहां एक खुफिया विश्लेषक पर शक कर रहे हैं, वहीं विकीलीक्स का कहना है कि उसका स्रोत पता करना लगभग असंभव है. 
बहरहाल, अमेरिकी दबाव में विकीलीक्स के लिए दानखाता चलाने वाली आॅनलाइन साइट पेपाल भी अपनी सेवाएं बंद कर चुकी है. अमेरिका उनके खिलाफ कार्रवाई की रणनीति तैयार कर चुका है. उनकी गिरतारी के लिए इंटरपोल ने नोटिस जारी कर दिया है तो स्वीडन से भी अंतरराष्ट्रीय वारंट जारी हो चुका है. हालांकि, असांज भी अपनी सुरक्षा को पुख्ता करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. उनकी साइट का दावा है कि उन्होंने खोजी पत्रकारिता का जो नमूना पेश किया है, ऐसा पूरी दुनिया का मीडिया मिलकर भी नहीं कर सकता है. इस दावे से किसी को असहमति भले हो, लेकिन यह दावा सिर्फ दावा नहीं है.

देश को एक और गांधी और जय प्रकाश की जरूरत है

कारपोरेट घरानों, मीडिया और नेताओं के बीच गठबंधन के इस सुविधावादी दौर में कुछ लोग जो हर तरह के अन्याय के खिलाफ बोलने की हिम्मत रखते हैं, उन्हीं में से एक हैं वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण.  वे सुप्रीम कोर्ट के नामचीन वकीलों में शुमार हैं लेकिन उनकी शोहरत इसलिए नहीं है कि वे बहुत बड़े और तेज-तर्रार वकील हैं. बल्कि उनकी शोहरत न्यायपालिका की जवाबदेही तय करने और नागरिक अधिकारों के लिए किए जाने वाले उनके संघर्ष को लेकर है. वे करीब तीन दशक से न्यायपालिका और कार्यपालिका सहित समूची व्यवस्था से लोहा ले रहे हैं. उनके शब्दों में उनकी लड़ाई ’ऐसे लोगों से है जो व्हाइट कालर (सफेदपोश) माफिया हैं. जो घूस देकर बेईमानी करवाते हैं.’ जो अपना काम निकालने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन जहां सुविधा होती है, वहां आदर्शवाद भी बघारते हैं. प्रशांत भूषण कहते हैं मैं हर उस बात के खिलाफ हूं जो आम आदमी के अधिकारों के खिलाफ जाती हैं.
प्रशांत भूषण की पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी है, जहां से वे हर संभव और मनचाहा रास्ता चुन सकते थे. उन्होंने एक कठिन राह चुनी है. उनके पिता शांति भूषण उच्चतम न्यायालय में वकील थे. वे मोरार जी देसाई सरकार में मंत्री भी रह चुके थे. उन्होंने जब तब व्यवस्था में भ्रष्टाचार को लेकर आवाज बुलंद की. जाहिर तौर पर प्रशांत भूषण में यह गुण अपने पिता जी आया होगा. व्यवस्था के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने वाले प्रशांत भूषण ने जो रास्ता चुना है उसे लेकर उनके पास तर्क हैं. तर्क भी ऐसे मजबूत, कि उन्हीं तर्कों के दम पर वे लोकतंत्र के चारों स्तंभों  पर सवाल खड़ा करते हैं और जवाब मांगते हैं. उनका कहना है कि ’मूल बात यह है कि आपकी आत्मा क्या कहती है? अगर आपकी अंतरआत्मा यह कहती है कि यह जो बेईमानी चल रही है, जिसकी वजह से गरीब लोग पिस रहे हैं और कुछ बड़े-बड़े उद्योगपति, जिनको ’कैप्टन आफ इंडस्ट्री’ कहा जाता है, वे पूरे संसाधनों पर कब्जा करके बैठे हुए हैं और अपना व्यवसाय बढ़ाते जा रहे हैं यह ठीक नहीं है, अगर इससे आपका खून खौलता है जैसे मेरा खौलता है, तो आप सोचते हैं कि इसके खिलाफ जो कुछ कर सकते हैं, करें. इस तरह की बेईमानी, लूट, अत्याचार को रोकने के लिए जो कुछ कर सकते हैं, करें. यह अंतर आत्मा की बात है. अब मेरी क्यों बोलती है, औरों की क्यों नहीं बोलती, इसके कई कारण हो सकते हैं. एक कारण यह हो सकता है कि आपके परिवार ने आपको कैसा संस्कार दिया. दूसरा कारण यह हो सकता है कि आपकी व्यक्तिगत यात्रा कैसी रही है. इस तरह की चीजों से जब एक बार आप जुड़ गये तो जाने क्या-क्या चीजें आपको देखने को मिलती हैं. हम इस तरह के जनहित के मामलों में जैसे-जैसे शामिल होते गये, मुझे यह दिखता गया कि किस तरह से बेईमानी और अत्याचार इस देश में चल रहा है. मेरा अनुभव रहा है कि एक तरफ बड़े-बड़े कारपोरेशंस द्वारा लूट चल रही है, दूसरी तरफ जो गरीब और असहाय लोग हैं, उनपर कितना अत्याचार हो रहा है. मुझे इस पर खीझ होती है.’
इस तरह की पहली याचिका उन्होंने 1983 में दून वैली माइनिंग के मामले में दायर की थी. यह याचिका अवैध खनन को लेकर थी. इसी साल उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी. उसके बाद बोफोर्स, भोपाल गैस कांड, नर्मदा बचाओ आंदोलन आदि से जुड़े रहे. इसके अलावा वे नागरिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली कई संस्थाओं के साथ काम करते रहे हैं. उनकी अपनी पूरी एक टीम है जो उनकी इस लड़ाई में उनका साथ देती है. तमाम गैर-सरकारी संगठन और बुद्धिजीवी उनके सहयोगी हैं. उनके साथ काम करने वालों की संख्या सैकड़ों में है. वे सभी घटनाक्रम पर निगाह रखते हैं और अगर उन्हें लगता है कि अन्याय हो रहा है तो वे उसके खिलाफ लामबंद हो जाते हैं. वे न्यायालय के भीतर होते हैं, तो संगठन की ताकत और उसका काम उनके साथ होता है, और न्यायालय के बाहर जब अपनी बात कह रहे होते हैं, तो कई नागरिक संगठन और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता उनके साथ खड़े होते हैं. वे पूरे सबूत और आत्मविश्वास के साथ देश के सर्वोच्च न्यायालय से लेकर कार्यपालिका तक को आईना दिखाते हैं. वे कहते हैं कि ’अगर आप पूरे सबूत और दस्तावेज के साथ किसी न्यायाधीश या न्यायपालिका के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगायें, तो तब फिर आपके खिलाफ कुछ करना बड़ा मुश्किल हो जाता है. हालांकि, उसको भी न्यायालय की अवमानना माना जा सकता है, लेकिन कोई अवमानना का केस आपके खिलाफ चलाता नहीं. अगर आप ऐसी पोजीशन में हैं कि इन मुद्दों पर आपकी आवाज आसानी से दबायी नहीं जा सकती, तो वे लोग आपसे डरते हैं. ऐसे में आपके खिलाफ कुछ करना मुश्किल है. इसका मूलमंत्र यह है कि जो भी आप बोलें न्यापालिका या न्यायाधीश के खिलाफ, वह ठोस सबूत पर आधारित होना चाहिए. उसके प्रमाण होने चाहिए.’ वे खुद ऐसा करते भी हैं. उन्होंने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार होने बाते कहीं, तो न्यायालय ने अवमानना का नोटिस थमा  दिया. इस पर उनके पिता शांति भूषण जी ने लिखित तौर पर कोर्ट में एक हलफनामा पेश किया कि भारत में अब तक जो 16 मुख्य न्यायाधीश हुए हैं, उनमें से 8 निश्चित तौर पर भ्रष्ट थे.
इस तरह की गतिविधियों के अपने खतरे हैं. ज्यादातर ऐसा अभियान चलाने वालों को यह समय और समाज बरदाश्त नहीं कर पाता. अमित जेठवाओं, सतीश शेट्टियों के लिए यहां कोई जगह नहीं है. प्रशांत भूषण यह बखूबी जानते हैं, और इसके लिए वे तैयारी भी करते हैं. वे कहते हैं कि ’ऐसा करने से हमारे खिलाफ एक बड़ी लाॅबी तैयार जरूर होती है लेकिन फायदा यह है कि जब हम न्यायपालिका के खिलाफ बोल रहे होते हैं, तो कार्यपालिका का समर्थन प्राप्त होता है. जब हम कार्यपालिका पर सवाल उठा रहे होते हैं तो न्यायपालिका का समर्थन में होती है. इससे रास्ता आसान हो जाता है क्योंकि सब लोग मिलकर आपके ऊपर प्रहार नहीं कर पाते. और सब मिलकर भी प्रहार करें, तो जनमत तो आपके साथ ही रहता है. इस पर भी अगर आप अपना केस कोर्ट में हार गये तो जनता तो आपको हारा हुआ नहीं मानती. जनता यह मानती है कि जो आप कह रहे हैं वह सही है. अगर आप सबूत के आधार पर अपनी बात कह रहे हैं और न्यायपालिका उसे ठुकरा दे, तो जनता तो न्यायपालिका की बात नहीं मानती.
जो वे कर रहे हैं उसके लिए कुछ अलग से करने की जरूरत नहीं. वे कहते हैं कि ’मैं आराम से यह सब कर पा रहा हूं. हां, आम आदमी के लिए रास्ता बहुत कठिन है. जहां संगठन में लोग काम कर रहे हैं उन्हें सफलता भी मिल रही है. हालात काफी निराशाजनक हैं. भ्रष्टाचार, बेईमानी, चंद कारपोरेशन का नियंत्रण तेजी से बढ़ रहा है. इनसे निपटने के लिए मंजुनाथ, अमित जेठवा या सतीश शेट्टी जैसी तमाम कुर्बानियों की जरूरत है. आज देश को किसी गांधी या जयप्रकाश नारायण की जरूरत है, जो एक जनआंदोलन खड़ा कर सके.’

रविवार, 5 दिसंबर 2010

दिल्ली की लाल बत्तियों पर 

दिल्ली के बीहड़ चौराहे 
लिपटे जो लाल बत्तियों में 
करतब की अच्छी जगहें हैं  
कुछ बच्चे नन्हें नन्हें से 
हर रुकी कार के बाजू में 
आ आकर ढोल बजाते हैं 
हो सर के बल, हाथों से चल 
क्या क्या करतब दिखलाते हैं 
पावों को सर पे रखते हैं 
सर को पावों में लाते हैं 
फिर लटक कार के शीशे से 
इक रूपये को रिरियाते हैं 
इन मासूमो को लगता है 
जो लोग कार में बैठे हैं 
वे देख के इनको रीझेंगे
इन पर निहाल हो जायेंगे 
ढेरों पैसे बरसाएंगे 
इनको क्या मालूम कारों के 
भीतर का अपना कल्चर है 
वे इनपर नहीं रीझते हैं 
न इनपर ध्यान लगाते हैं 
वे ऐसी वैसी बातों में 
दिलचस्पी नहीं जताते हैं 
उनकी कारों में टीवी है 
उसमे मुन्नी के ठुमके हैं
वे बस उसमे रस लेते हैं   
बत्ती के लाल इशारे पर 
उनकी चमकीली कारों के 
पहिये आगे बढ़ जाते हैं 
कारों के संग कुछ दूर तलक 
ये बच्चे दौड़ लगाते हैं 
कारों के शीशे नहीं खुले 
गाड़ी के पहिये नहीं रुके 
दुखी दुखी मुंह लटकाकर 
वे लौट के वापस आते हैं 
वे फिर से ढोल बजाते हैं 
फिर फिर करतब दिखलाते हैं....

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...