जनता के पैसे से चलने वाला दूरदर्शन मोहन भागवत को लाइव क्यों प्रसारित करता है? मोहन भागवत के प्रसारण में जनता का कौन सा हित है? वे मोहन भागवत जो मौजूदा भयावह हालात को लेकर इसी भाषण में कहते हैं कि बढ़ा चढ़ा कर पेश की गई छोटी-छोटी घटनाएं हिंदू संस्कृति को नुकसान नहीं पहुंचा सकतीं. छोटी छोटी घटनाएं होती रहती हैं लेकिन ये भारतीय संस्कृति, हिंदू संस्कृति को विकृत नहीं करतीं. उनकी निगाह में देश उत्साहित है. उनके विचार से लगातार दंगों, हत्याओं में भारतीय हिंदू संस्कृति का गौरवगान छिपा है.
दूरदर्शन ने लगातार दूसरी बार मोहन भागवत का भाषण क्यों प्रसारित किया? जनता का पैसा संघ के प्रचार पर क्यों खर्च होगा? पूरी सरकार मोहन भागवत के दरबार में नतमस्तक होकर हिसाब देने क्यों जाती है? जिन लोगों को सोनिया गांधी का सरकार पर नियंत्रण रखना बुरा लगता था, वे अब क्यों चुप हैं. सोनिया गांधी तो फिर भी चुनी हुई सांसद और पार्टी अध्यक्ष रहीं. मोहन भागवत कौन हैं? कोई ऐसा व्यक्ति जो जातीय और धार्मिक आधार पर संगठन चलाता है, वह लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार के ऊपर कैसे है? एक चुनी हुई सरकार के मोहन भागवत के आगे नतमस्तक होने का अर्थ है कि वह पूरे देश के बहुमत को ले जाकर एक ऐसे व्यक्ति और संगठन के सामने डाल देती है जिसका इस गणतंत्र और इसकी प्रक्रियाओं के साथ घात करने का इतिहास रहा है.
भागवत को इस देश में उत्साह नजर आ रहा है. उस समय जब महाराष्ट्र से दिल्ली तक हर असहमति पर कालिख पोती जा रही है. कश्मीर फिर से दंगे की चपेट में है. लंपटों की फौज सबका खाना—पीना, गाना—बजाना अपने कब्जे में लेना चाहती है. जम्मू में धर्म पूछकर हत्या हो रही है. भाजपा शासित प्रदेशों में आधा दर्जन से ज्यादा घोटाले हुए हैं जो हजारों करोड़ के हैं. मध्य प्रदेश में व्यापमं 50 लोगों को लील गया है. यूपी तालिबान हुआ चाहता है. उसी समय मुलायम और मोदी एक दूसरे की तारीफ झोंक रहे हैं. पूरे देश में गुंडाराज—दंगाराज चल रहा है. अफवाह फैलाकर, घर में घुसकर अल्पसंख्यकों की हत्या की जा रही है. कोई गाय बैल लेकर जाता हुआ आदमी मारा जा सकता है. हरियाणा में दलित परिवार को जला दिया गया. दो बच्चे जिंदा जल गए. उसी दिन भागवत कह रहे हैं कि 'देश में बहुत उत्साह है!... छोटी छोटी घटनाएं भारतीय हिंदू संस्कृति का नुकसान नहीं कर सकतीं.' हर घटना पर सत्ता पक्ष की प्रतिक्रियाएं लाशों पर तांडव करने जैसी हैं.
पिछले दो साल के माहौल को लेकर जब लोगों में भय बैठ रहा है. तीन बड़े चिंतकों की हत्या हुई, दादरी की वीभत्स घटना घटी. कई जगह अफवाहों पर दंगे हुए. 40 से ज्यादा लेखक अपना पुरस्कार लौटा चुके हैं. तब सत्ता पक्ष से कोई भी व्यक्ति देश को यह आश्वासन नहीं दे सकता है कि यह घटनाएं रोकी जाएंगी और सबको सुरक्षा दी जाएगी. उल्टे चुने हुए नेता और सांसद संदेश दे रहे हैं कि गाय को नुकसान पहुंचाने वालों की हत्या कर दी जाएगी. क्या मोदी की केंद्र सरकार ने इस देश को गुंडों के हवाले कर दिया है? अब देश में किसी को दोषी ठहराने या सजा देने के लिए कानून नहीं, उन्मादी भीड़ का इस्तेमाल होगा?
मोहन भागवत उस संगठन के मुखिया हैं जिसकी दलितों, महिलाओं, लोकतंत्र, समरसता, बहुलता आदि से शत्रुता है. इसे गंभीरता से समझने की आवश्यकता है. संघ से ही निकले इस देश के मुखिया नरेंद्र मोदी का मानना है कि दलितों का सर पर मैला ढोना आध्यात्मिक काम है! मोहन भागवत का विचार है कि इस धरती पर रहने वाले सभी अनिवार्यत: हिंदू हैं. वे डेढ़ साल से हर किसी को हिंदुआने में लगे हैं. वे आरक्षण को खत्म करना चाहते हैं. उन्हें दलितों, महिलाओं, गैरहिंदुओं की स्वतंत्र अस्मिता बर्दाश्त नहीं है. संघ का मुखपत्र 'पांचजन्य' वेदों के हवाले से गाय के नाम पर इंसान की हत्या को जायज बताता है तो मोहन भागवत इसकी निंदा तक नहीं कर सकते. संघ कहता है कि पांचजन्य हमारा मुखपत्र ही नहीं है.
संघ सिर्फ झूठ, घृणा, उन्माद और वैमनस्य का व्यापारी संगठन है. वे हिंदुओं के हितैषी बनकर न सिर्फ हिंदुओं का, बल्कि देश का ऐसा नुकसान कर रहे हैं जिसकी भरपाई में सदियां लगेंगी. देश आजाद हुआ था, तब संघ को भारत का संविधान, तिरंगा आदि मंजूद नहीं था. उन्हें गांधी, नेहरू के साथ लोकतंत्र से परहेज था, इसलिए गांधी की हत्या कर दी. अंतत: उन्होंने चुनावी प्रक्रिया में शामिल होकर धर्म की राजनीति शुरू की और अब केंद्र में पहुंच गए तो पूरे देश को तालिबानी रास्ते पर झोंक रहे हैं. वे लगातार हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कहते हैं जो इस देश के संविधान और आइडिया आॅफ इंडिया पर हमला है. वे अपनी ही देशवासियों को आपस में लड़ा रहे हैं.
आप हर दिन की छोटी छोटी घटनाओं पर गौर करें. संघ भाजपा समर्थकों के पास हत्याओं के समर्थन में तर्क हैं. वे दो साल की बच्ची को जिंदा जलाने पर शर्मिंदा नहीं हैं. वे किसी को अफवाह के आधार पर मार देने पर शर्मिंदा नहीं हैं. वे बेशर्म तर्क पेश करते हैं. मोहन भागवत से लेकर मंत्री और गली के कार्यकर्ता तक. मोहन भागवत इन्हें मामूली घटनाएं बता हरे तो जनरल वीके सिंह कह रहे हैं कि कोई कुत्ते पर पत्थर फेंके तो सरकार क्या करे? वे मौतों का उपहास करना भरपूर जानते हैं. अखलाक से लेकर दो बच्चियों को जिंदा जलाए जाने तक.
लेकिन चूंकि जब ऐसे संगठन का केंद्रीय सत्ता पर कब्जा है तो वह संसाधनों पर कब्जा करेगा और उसका दुरुपयोग भी करेगा जो कि वह कर रहा है. असल मुद्दा यह है कि जनता को यह सब समझ में आए कि उसके साथ क्या हो रहा है. मोदी और संघ का जो लोग अंध समर्थन करते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि इस देश को सदियों के संघर्ष के बाद मिली आजादी और साठ साल के लोकतंत्र पर कैसा खतरा है और किससे है?
दूरदर्शन ने लगातार दूसरी बार मोहन भागवत का भाषण क्यों प्रसारित किया? जनता का पैसा संघ के प्रचार पर क्यों खर्च होगा? पूरी सरकार मोहन भागवत के दरबार में नतमस्तक होकर हिसाब देने क्यों जाती है? जिन लोगों को सोनिया गांधी का सरकार पर नियंत्रण रखना बुरा लगता था, वे अब क्यों चुप हैं. सोनिया गांधी तो फिर भी चुनी हुई सांसद और पार्टी अध्यक्ष रहीं. मोहन भागवत कौन हैं? कोई ऐसा व्यक्ति जो जातीय और धार्मिक आधार पर संगठन चलाता है, वह लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार के ऊपर कैसे है? एक चुनी हुई सरकार के मोहन भागवत के आगे नतमस्तक होने का अर्थ है कि वह पूरे देश के बहुमत को ले जाकर एक ऐसे व्यक्ति और संगठन के सामने डाल देती है जिसका इस गणतंत्र और इसकी प्रक्रियाओं के साथ घात करने का इतिहास रहा है.
भागवत को इस देश में उत्साह नजर आ रहा है. उस समय जब महाराष्ट्र से दिल्ली तक हर असहमति पर कालिख पोती जा रही है. कश्मीर फिर से दंगे की चपेट में है. लंपटों की फौज सबका खाना—पीना, गाना—बजाना अपने कब्जे में लेना चाहती है. जम्मू में धर्म पूछकर हत्या हो रही है. भाजपा शासित प्रदेशों में आधा दर्जन से ज्यादा घोटाले हुए हैं जो हजारों करोड़ के हैं. मध्य प्रदेश में व्यापमं 50 लोगों को लील गया है. यूपी तालिबान हुआ चाहता है. उसी समय मुलायम और मोदी एक दूसरे की तारीफ झोंक रहे हैं. पूरे देश में गुंडाराज—दंगाराज चल रहा है. अफवाह फैलाकर, घर में घुसकर अल्पसंख्यकों की हत्या की जा रही है. कोई गाय बैल लेकर जाता हुआ आदमी मारा जा सकता है. हरियाणा में दलित परिवार को जला दिया गया. दो बच्चे जिंदा जल गए. उसी दिन भागवत कह रहे हैं कि 'देश में बहुत उत्साह है!... छोटी छोटी घटनाएं भारतीय हिंदू संस्कृति का नुकसान नहीं कर सकतीं.' हर घटना पर सत्ता पक्ष की प्रतिक्रियाएं लाशों पर तांडव करने जैसी हैं.
पिछले दो साल के माहौल को लेकर जब लोगों में भय बैठ रहा है. तीन बड़े चिंतकों की हत्या हुई, दादरी की वीभत्स घटना घटी. कई जगह अफवाहों पर दंगे हुए. 40 से ज्यादा लेखक अपना पुरस्कार लौटा चुके हैं. तब सत्ता पक्ष से कोई भी व्यक्ति देश को यह आश्वासन नहीं दे सकता है कि यह घटनाएं रोकी जाएंगी और सबको सुरक्षा दी जाएगी. उल्टे चुने हुए नेता और सांसद संदेश दे रहे हैं कि गाय को नुकसान पहुंचाने वालों की हत्या कर दी जाएगी. क्या मोदी की केंद्र सरकार ने इस देश को गुंडों के हवाले कर दिया है? अब देश में किसी को दोषी ठहराने या सजा देने के लिए कानून नहीं, उन्मादी भीड़ का इस्तेमाल होगा?
मोहन भागवत उस संगठन के मुखिया हैं जिसकी दलितों, महिलाओं, लोकतंत्र, समरसता, बहुलता आदि से शत्रुता है. इसे गंभीरता से समझने की आवश्यकता है. संघ से ही निकले इस देश के मुखिया नरेंद्र मोदी का मानना है कि दलितों का सर पर मैला ढोना आध्यात्मिक काम है! मोहन भागवत का विचार है कि इस धरती पर रहने वाले सभी अनिवार्यत: हिंदू हैं. वे डेढ़ साल से हर किसी को हिंदुआने में लगे हैं. वे आरक्षण को खत्म करना चाहते हैं. उन्हें दलितों, महिलाओं, गैरहिंदुओं की स्वतंत्र अस्मिता बर्दाश्त नहीं है. संघ का मुखपत्र 'पांचजन्य' वेदों के हवाले से गाय के नाम पर इंसान की हत्या को जायज बताता है तो मोहन भागवत इसकी निंदा तक नहीं कर सकते. संघ कहता है कि पांचजन्य हमारा मुखपत्र ही नहीं है.
संघ सिर्फ झूठ, घृणा, उन्माद और वैमनस्य का व्यापारी संगठन है. वे हिंदुओं के हितैषी बनकर न सिर्फ हिंदुओं का, बल्कि देश का ऐसा नुकसान कर रहे हैं जिसकी भरपाई में सदियां लगेंगी. देश आजाद हुआ था, तब संघ को भारत का संविधान, तिरंगा आदि मंजूद नहीं था. उन्हें गांधी, नेहरू के साथ लोकतंत्र से परहेज था, इसलिए गांधी की हत्या कर दी. अंतत: उन्होंने चुनावी प्रक्रिया में शामिल होकर धर्म की राजनीति शुरू की और अब केंद्र में पहुंच गए तो पूरे देश को तालिबानी रास्ते पर झोंक रहे हैं. वे लगातार हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कहते हैं जो इस देश के संविधान और आइडिया आॅफ इंडिया पर हमला है. वे अपनी ही देशवासियों को आपस में लड़ा रहे हैं.
आप हर दिन की छोटी छोटी घटनाओं पर गौर करें. संघ भाजपा समर्थकों के पास हत्याओं के समर्थन में तर्क हैं. वे दो साल की बच्ची को जिंदा जलाने पर शर्मिंदा नहीं हैं. वे किसी को अफवाह के आधार पर मार देने पर शर्मिंदा नहीं हैं. वे बेशर्म तर्क पेश करते हैं. मोहन भागवत से लेकर मंत्री और गली के कार्यकर्ता तक. मोहन भागवत इन्हें मामूली घटनाएं बता हरे तो जनरल वीके सिंह कह रहे हैं कि कोई कुत्ते पर पत्थर फेंके तो सरकार क्या करे? वे मौतों का उपहास करना भरपूर जानते हैं. अखलाक से लेकर दो बच्चियों को जिंदा जलाए जाने तक.
लेकिन चूंकि जब ऐसे संगठन का केंद्रीय सत्ता पर कब्जा है तो वह संसाधनों पर कब्जा करेगा और उसका दुरुपयोग भी करेगा जो कि वह कर रहा है. असल मुद्दा यह है कि जनता को यह सब समझ में आए कि उसके साथ क्या हो रहा है. मोदी और संघ का जो लोग अंध समर्थन करते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि इस देश को सदियों के संघर्ष के बाद मिली आजादी और साठ साल के लोकतंत्र पर कैसा खतरा है और किससे है?