गौरतलब-
श्री एल के आडवानी ने २७ मार्च को यह पीस अपने ब्लॉग पर पोस्ट की है.
टेलपीस
संसदीय लोकतंत्र के स्थायित्व के अनेक नाजुक मुद्दों से भारत को अभी भी जूझना है। इसमें से एक वंशानुगत सत्ता से निकला है। स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारत ने 550 से ज्यादा रियासतों को समाप्त कर दिया था और कुछ वर्षो के पश्चात् पूर्व राजाओं के प्रिवीपर्स समाप्त कर समाजवादी होने की जोरदार घोषणाएं की गई। लेकिन राजनेताओं के ‘राजसी‘ परिवार पूरे देश में जोर-शोर से नए उत्साह से अपने को स्थापित कर रहे हैं। कभी एक समय पर पाकिस्तान के 20 सत्तारुढ़ परिवार भारत में चुटकुलों का मसाला होते थे क्योंकि वे लोकतंत्र का ढोंग करते थे। अब सभी राजनीतिक दलों में गांव स्तर से राज्य स्तर तक ‘सत्ताधारी‘ परिवार मिल जाएंगे। अधिकांश तथाकथित युवा सांसद और विधायक जिन्हें राजनैतिक दलों में युवा और ताजा चेहरे के रुप में प्रस्तुत किया जाता है वे सत्ता में बैठे लोगों के बेटे, दामाद, बेटियां, बहुयें, पोते, रिश्तेदार इत्यादि हैं…..
यह विशेष उल्लेखनीय है, कम्युनिस्ट और वामपंथी दलों के सिवाय भारत में लगभग सभी अन्य दल पारिवारिक कम्पनी है। पिछले 12 वर्षों से सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष हैं और दिल्ली के सिंहासन के पीछे की असली शक्ति हैं, जन्म से इटली मूल की हैं; लोकसभा की स्पीकर मीरा कुमार और राज्यसभा के चेयरमैन हामिद अंसारी भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत अधिकारी हैं; और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारतीय आर्थिक सेवा के सेवानिवृत अधिकारी हैं! किसने कल्पना की होगी कि एक बिलियन से ज्यादा जनसंख्या वाले भारत में, 60 वर्षों के संसदीय लोकतंत्र के बाद भी जनता में से नेतृत्व का इतना अभाव होगा?
माधव गोडबोले
पूर्व गृहसचिव और सचिव न्याय,
भारत सरकार, आई.ए.एस. (सेवानिवृत्त)-1959-1996
(स्वंय सेवानिवृति ली)
की नवीनतम पुस्तक
इण्डियाज़ पार्लियामेण्टरी डेमोक्रेसी ऑन ट्रायल-प्रकाशित 2011-से साभार