रविवार, 19 फ़रवरी 2012


काली रात के सिरहाने रखा चांद
दिखाई देता है
जैसे सिवान से देखने पर
मेरे झोपड़े में जलता दिया
फर्क बस इतना है दोनों में
कि झोपड़े का दिया कभी बुझ जाए
तो जी बैठने लगता है
कि जाने क्‍या गुल खिलाए
इस बार
घर में घुस आया अंधेरा

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...