सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

क्या मध्य प्रदेश पुलिस का एनकाउंटर फर्जी है?

मध्य प्रदेश में हुआ 8 लोगों का एनकाउंटर प्रथमदृष्टया फर्जी है. पुलिस की मुठभेड़ कहानी पर तमाम सवाल उठ रहे हैं.
जब कैदी जेल में थे, निहत्थे थे, सुरक्षा के अंदर थे, तब वे आराम से जेल में सेंध लगाते हैं और एकमात्र पुलिसकर्मी की हत्या करके भागने में सफल हो जाते हैं. पुलिस उन्हें भागने से नहीं रोक पाई, लेकिन एनकाउंटर तुरंत कर दिया, सफलतापूर्वक. वह भी सभी आठ कैदियों का.
ये वे कैदी हैं जो 2013 में खंडवा जेल से भी फरार हुए थे. दोबारा उन्हीं लोगों की सुरक्षा में सिर्फ एक गार्ड रखा गया था?
भागे हुए कैदियों के पास हथियार, जींस, टीशर्ट आदि चीजें कहां से आईं? सेंट्रल जेल में कैसी व्यवस्था थी कि कैदी सुरक्षाकर्मी को मारकर चलते बने और उन्हें रोकने वाला नहीं था?
कैदियों ने सेंध लगाई और सिर्फ सिमी के तथाकथित आतंकी भागे जो कि मुसलमान थे. बाकी सब कैदी  क्या वहां पर कल्पवास करने गए हैं? 8 लोग भाग रहे थे, सुरक्षाकर्मी मारा जा चुका था, लेकिन अन्य कैदियों ने भागने की क्यों नहीं सोची? क्या बाकी का हृदयपरिवर्तन हो गया था कि उन्होंने जेल में ही रहने का फैसला किया?
राज्य सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि सिमी के आरोपियों के पास गन नहीं थी. आइजी साब कह रहे हैं कि आरोपियों ने पुलिस पर फायरिंग की और जवाबी कार्रवाई यानी एनकाउंटर में मारे गए. ऐसा कैसे हुआ कि एक ही घटना के दो वर्जन हैं?
मध्य प्रदेश के पत्रकार प्रवीन दुबे ने अपनी फेसबुक वॉल पर एक लंबी पोस्ट लिखी है— ''शिवराज जी...इस सिमी के कथित आतंकवादियों के एनकाउंटर पर कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है....मैं खुद मौके पर मौजूद था..सबसे पहले 5 किलोमीटर पैदल चलकर उस पहाड़ी पर पहुंचा, जहां उनकी लाशें थीं...आपके वीर जवानों ने ऐसे मारा कि अस्पताल तक पहुँचने लायक़ भी नहीं छोड़ा...न...न आपके भक्त मुझे देशद्रोही ठहराएं, उससे पहले मैं स्पष्ट कर दूँ...मैं उनका पक्ष नहीं ले रहा....उन्हें शहीद या निर्दोष भी नहीं मान रहा हूँ लेकिन सर इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया..? मेरी एटीएस चीफ संजीव शमी से वहीं मौके पर बात हुई और मैंने पूछा कि क्यों सरेंडर कराने के बजाय सीधे मार दिया..? उनका जवाब था कि वे भागने की कोशिश कर रहे थे और काबू में नहीं आ रहे थे, जबकि पहाड़ी के जिस छोर पर उनकी बॉडी मिली, वहां से वो एक कदम भी आगे जाते तो सैकड़ों फीट नीचे गिरकर भी मर सकते थे..मैंने खुद अपनी एक जोड़ी नंगी आँखों से आपकी फ़ोर्स को इनके मारे जाने के बाद हवाई फायर करते देखा, ताकि खाली कारतूस के खोखे कहानी के किरदार बन सकें.. उनको जिंदा पकड़ना तो आसान था फिर भी उन्हें सीधा मार दिया...और तो और जिसके शरीर में थोड़ी सी भी जुंबिश दिखी उसे फिर गोली मारी गई...एकाध को तो जिंदा पकड लेते....उनसे मोटिव तो पूछा जाना चाहिए कि वो जेल से कौन सी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए भागे थे..?अब आपकी पुलिस कुछ भी कहानी गढ़ लेगी कि प्रधानमन्त्री निवास में बड़े हमले के लिए निकले थे या ओबामा के प्लेन को हाइजैक करने वाले थे, तो हमें मानना ही पड़ेगा क्यूंकि आठों तो मर गए... शिवराज जी सर्जिकल स्ट्राइक यदि आंतरिक सुरक्षा का भी फैशन बन गया तो मुश्किल होगी...फिर कहूँगा कि एकाध को जिंदा रखना था भले ही इत्तू सा...सिर्फ उसके बयान होने तक....चलिए कोई बात नहीं...मार दिया..मार दिया लेकिन इसके पीछे की कहानी ज़रूर अच्छी सुनाइयेगा, जब वक़्त मिले...कसम से दादी के गुज़रने के बाद कोई अच्छी कहानी सुने हुए सालों हो गए....आपका भक्त''
इन सवालों के बीच मीडिया अन्य मसलों की तरह इस मामले मे भी तमाशा कर रहा है. जो लोग एनकाउंटर में मारे गए, वे शायद आतंकवाद की कई घटनाओं के आरोपी थे. पुलिस अपने बयान में उन्हें आरोपी कह रही है. मुख्यमंत्री शिवराज चौहान आतंकवादी कह रहे हैं.
समाचार एजेंसी ANI उन्हें सिमी आतंकवादी लिख रही है. PTI सिमी एक्टीविस्ट लिख रही है. बीबीसी इन्हें सिमी कार्यकर्ता और कैदी लिख रहा है. पंजाब केसरी लिखता है 'सिमी के आठ खुंखार आतंकवादी'. भास्कर पर भी यही कॉपी है. दोनों में 'खुंखार' शब्द लिखा है. एक मूर्ख ने पहले कॉपी तैयार की है. दूसरे ने चांप दिया है. दोनों खबर का एंगल एक है. दैनिक जागरण, आजतक, जनसत्ता और ​हिंदुस्तान आदि के लिए वे लोग आतंकवादी थे.
नवभारत टाइम्स एक खबर में संदिग्ध आतंकवादी लिख रहा है. दूसरे में आतंकवादी लिख रहा है. लेकिन इसी खबर में कार्यकर्ता भी लिख रहा है. नवभारत टाइम्स यह भी लिख रहा है कि आतंकियों पर 5-5 लाख का इनाम घोषित किया गया है. पता नहीं जिंदा थे तब किया गया था या मुर्दों पर इनाम रखा गया है. एनडीटीवी इन्हें कैदी, सिमी के सदस्य, सिर्मी कार्यकर्ता और आतंकी सब ​लिख रहा है.
किसी आतंकवादी से किसी को कैसी सहानुभूति? वह बम दगाएगा तो हम आप में से कोई भी मर सकता है. लेकिन जब सैकड़ों युवकों को कोर्ट ने सालों बाद निर्दोष छोड़ा हो, उनके खिलाफ बिना सबूत के उनके जीवन बर्बाद किए गए हों, तब मीडिया विचाराधीन कैदियों को इतने आत्मविश्वास से आतंकवादी कैसे कह रहा है?
तो सार यह है कि बिना कानून और अदालत से दोष सिद्ध हुए भी मीडिया आपको किसी काल्पनिक या संदेहास्पद अपराध का अपराधी घोषित कर सकता है. जिस तरह अंडरट्रायल कैदी को पागल हो चुका भारतीय मीडिया आतंकवादी लिखता है, उसी तरह पागल हो चुकी सरकारें एनकाउंटर करवाती हैं.
15-20 साल जेल में सड़कर फिर कोर्ट से निर्दोष साबित हुए युवकों की कहानियां आपने नहीं सुनी हैं? सैकड़ों का जीवन बर्बाद किया जा चुका है.
हालांकि, यह जांच का विषय है कि एनकाउंटर फर्जी है या सही. लेकिन यदि नौ लोगों का एनकाउंटर हो सकता है तो कल को आपका भी हो सकता है. हर फर्जी एनकाउंटर भारतीय संविधान और कानून का भी एनकाउंटर है.

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