बुधवार, 12 जनवरी 2011


दिल्ली 

ऐसी रौनक 
ऐसी चकमक 
धन अकूत उडती है रंगत 
पैसा तन में पैसा मन में 
पैसा ही पैसा रग रग में 
न कोई तेरा न कोई मेरा 
न इनका न उनका कोई 
भागमभाग  अजब सी हरदम 
अराजकता की हद तक हलचल 
ढूंढे कोई यहाँ ज़िन्दगी 
किधर पड़ी वो चीख रही है 
हालत पूछे कौन किसी की 
भीड़ करोडों की है लेकिन 
भीतर तक सब 
खाली खाली
महानगर में महाशून्यता 

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