गुरुवार, 13 जनवरी 2011

जिन सड़कों से हम गुज़रते हैं 
सुबह-शाम दफ्तर आते जाते 
उन्हीं सड़कों पर 
उसी सुबह-शाम 
हो रहा होता है 
जवान और खूबसूरत युवतियों का बलात्कार 
यह बात जानते हैं सभी राहगीर 
जनता जनार्दन 
हम-तुम वे सब 
बावजूद चुप रहते हैं 
बंद कर लेते हैं आँख, कान और ज़बान 
गाँधी जी के बंदरों की तरह 

हर सम्त देखते हैं तनी हुई पिस्तौलें 
कई खौफनाक चेहरे 
और बिखरे हुए लोथड़े 
इनसे हम डरते हैं 
और करते हैं 
अपनी अपनी बारी का इंतजार 

अपने जवान बेटे के रंगे हाथ देखते 
और बेटी की आँखों में खौफ को पढ़ते हुए 



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