शनिवार, 30 जुलाई 2011

कविता लिखकर क्या होगा

मैंने सोचा
कविता लिखकर क्या होगा 
मेरे कविता लिखने से 
कुछ  उखड़ेगा?

मनीराम राम मर गया 
लगाकर फांसी
राम फेर को था बुखार 
टें हो गया दवा दारू बिन 
तब भी मैं कविता लिखता था 
उसका कुछ भी तो नहीं हुआ 
धनी राम के घर दो दिन से 
चूल्हा नहीं जला है 
क्या मेरी कविताएं उसकी खातिर 
कुछ भी कर सकती है ?
एक जून की रोटी 
उसको दे सकती है ?

कविताओं का क्या होगा 
धरे धरे अलमारी में सड़ जाएंगी 
चूहे चीकट कुतर कुतर कर खाएंगे
टुटहा  घर है 
एक रोज़ गिर जाएगा 
कविता सविता माटी में मिल जाएगी 

तब तक हाथ झाड़ता मघई आया 
बोला भैया इधर लिखा कुछ ताज़ा?
लाओ सुनाओ 
मन बहलाओ 
इस दुनिया में बड़ा नरक है 
घर से बहार तक झंझट है 
ज़रा देर को सबसे मुक्ति दिलाओ 

हम सब अनपढ़ 
तुम्ही से तो आसा है 
बदलो यह, कोई और जमाना लाओ 

वह अपने घर चला गया जब
मैंने कलम उठाई 
और लिखी एक कविता 

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