उमड़ा प्रेम तुम्हारा
जी चाहा तुमको यह बात बताऊं
कैसे सागर उमड़ रहा है
भीतर, यह दिखलाऊं
तुम हो लेकिन दूर प्रिये
कैसे संभव हो पाता
आंखों से आंखों की भाषा में
तुमको समझाऊं
मैंने हाथ बढ़ा अंबर में
कोमल सुंदर से अक्षर में
लिखा सुर्ख-सा.. प्यार
तुमने देखा, हंसीं, सिहर-सी गयीं
पनीली आंखों में
खुशी का न था पारावार!
वह जो भाया तुम्हें
उसी की भांति
ले रहा हूँ मैं भी आकार।
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