शनिवार, 9 जुलाई 2011

...कि आई अब मारन की बारी

टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले का जिन्न अभी बोतल में वापस नहीं लौटा है, बल्कि केंद्रीय कैबिनेट से एक और मंत्री पद झटक कर वह और ताकतवर हो गया है। इस बार उसने कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन को दबोचा है। मारन ने अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दिया और इसके साथ ही अब अटकलें मारन के भाविष्य पर से हटकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के साथ द्रमुक के रिश्ते पर केंद्रित हो गई हैं।
बुधवार को सीबीआई ने उच्चतम न्यायालय को सौंपी स्टेटस रिपोर्ट में कहा था कि दयानिधि मारन ने दूर संचार मंत्री रहते हुए 2004 से 2007 के बीच एक टेलिकॉम कंपनी को अपने शेयर बेचने को विवश किया। उन पर आरोप है कि उन्होंने चेन्नई की दूरसंचार कंपनी एअरसेल दबाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप कंपनी के प्रवर्तक सी शिवशंकरन को कंपनी की हिस्सेदारी एक मलेशियाई कंपनी (मैक्सिस ग्रुप) को बेचनी पड़ी। इस आरोप को साबित करती हुई सीबीआई की रिपोर्ट को वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने अदालत के सामने पढ़कर सुनाया, जिसमें कहा गया है कि एअरसेल का प्रवर्तक लाइसेंस के लिए दर दर भटकता रहा लेकिन उन्हें अपने शेयर बेचने पर मजबूर किया गया। बाद में मैक्सिम ग्रुप ने एअरसेल का अधिग्रहण कर लिया तो उसे मात्र छह महीने के भीतर टूजी लाइसेंस दे दिए गए।
गैर सरकारी संगठन सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशन ने भी सुप्रीम कोर्ट के सामने ऐसे दस्तावेज सौंपे थे जिसमें मारन पर मैक्सिम ग्रुप का पक्ष लेने और उसे फायदा पहुंचाने का आरोप साबित किया गया था।
मारन के विरुद्ध दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि मैक्सिम ग्रुप पर इस कृपा के बदले मारन की कंपनियों को 700 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश मिला।
एअरसेल ने 2004 से 2006 के बीच टूजी लाइसेंस के लिए 14 बार अर्जियां दी थीं और सब की सब पेंडिंग पड़ी थीं। कंपनी की ओर से सी शिवशंकरन मारन को इस सिलसिले में पत्र लिखते रहे और मारन एक के बाद खोट निकालते रहे, लेकिन एअरसेल द्वारा अपनी हिस्सेदारी बेचने के बाद मलेशियाई कंपनी को सभी 14 लाइसेंस छह महीने के भीतर हासिल हो गये।
इसके बाद मैक्सिम ग्रुप की ओर से मारन समूह की सन डायरेक्ट में धड़ल्ले से निवेश हुए और दो साल में ही यह 599 करोड़ रुपये पहुंच गया। इसी तरह मारन समूह की रेडियो कंपनी को भी 111 करोड़ का निवेश मिला। इस निवेश में मलेशियाई कंपनी द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों का उल्लंघन किया गया और कंपनी 74 प्रतिशत की निवेश की सीमा को पार कर 99 प्रतिशत रकम लगा दी।
और अब आखिर में राजा की ही तरह मारन अध्याय का भी अंत हो गया। देश निजी हितों  में काम करने वाले एक मंत्री से फिलहाल छुटकारा पा गया। हालांकि, उन पर अभी तक किसी तरह का केस दर्ज नहीं हुआ है। उनका हश्र कानिमोझी और राजा की ही तरह होगा या उससे इतर, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि न्यायालय ने भी इस संबंध में अभी तक कोई निर्देश नहीं दिया है।
गौरतलब है कि द्रमुक को राजा के इस्तीफे, उनकी और कानिमोझी की गिरफ्तारी पर जिस तरह की परेशानियां हुई थीं, मारन के मामले में वैसी नहीं दिख रही हैं। द्रमुक के एक और मंत्री की कुर्बानी अब यह तय करेगी कि उसके और यूपीए के रिश्ते का ऊंट किस करवट बैठता है?
इस मसले पर अन्य राजनीतिक दलों की ओर तीखी प्रतिक्रिया रही है। भाजपा का कहना है कि मारन का इस्तीफा काफी देर से आया। इसे और पहले जाना चाहिए था। इस्तीफे में इतनी देर होना वर्तमान प्रधानमंत्री की क्षमता का परिचायक है। प्रधानमंत्री पर कमजोरी का यह कोई नया आरोप तो नहीं है, लेकिन इससे यह बात और भी पुख्ता हो जाती है कि प्रधानमंत्री का कथित ईमानदार आभामंडल भ्रष्टाचारियों के समूह से घिरा है और वे इस बारे में उतने ही लाचार हैं कि ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। वे हवा के रुख पर बह रहे हैं और वह रुख तय करने कांग्रेस पार्टी का आलाकमान है। मारन के मामले में उनका बयान दिलचस्प होगा, जसा कि राजा को लेकर हो चुका है। इसके आगे दो बातों पर हमारी निगाहें टिकी रहेंगी- पहली यह कि मारन जेल जाते हैं या नहीं? और दूसरी, उनके इस्तीफे के बाद कैसा राजनीतिक समीकरण बनता है? द्रमुक के सितारे गर्दिश में हैं, क्या कांग्रेस अभी भी उससे गलबहियां के मूड में है या मोह भंग हो चुका है?

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