रविवार, 24 जुलाई 2011

74 का हुआ 'बेतार का खबर'


देश में ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिसने कभी बेतार का खबर, मेरा मतलब है रेडियो सुना हो। और सुनने के साथ-साथ हर किसी का अपना कोई कोई बहुत ही रोचक किस्म का अनुभव रेडियो के साथ निश्चित ही जुड़ा हुआ होगा। अगर मैं अपनी बात करूं तो मेरे दादा से लेकर मुझ तक, यानी मेरं परिवार में फिल्मी गानों से हर किसी का परिचय रेडियो के माध्यम से ही हुआ। आपके साथ भी कमोबेश ऐसा ही हुआ होगा। आज भी रेडियो ऐसा माध्यम है जो आपको फिल्मी गॉसिप से लेकर शहर में जाम तक के बारे में बताता है। शॉर्ट वेब प्रसारण को अगर आज के लोकप्रिय एफएम की जननी कहा जाये तो अतिशयोक्ति बिल्कुल नहीं होगी। आज भी अगर हम रेडियो की बात करते हैं तो शहर-दर-शहर, गली-दर-गली गूंजने वाली विविध भारती प्रसारण सेवा दिमाग में कौंध जाती है। कुछ खास तरह के प्रोग्राम उस पर भी अमीन सयानी की छनकती आवाज ही जसे रेडियो का पर्याय बन गयी थी। 
रेडियो के इतिहास पर निगाह डालें तो 1896 में मारकोनी ने पहली बार विद्युत चुंबकीय तरंगो द्वारा एक दो मील की दूरी तक एक सिग्नल भेजने में सफलता प्राप्त की थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इसका वास्तविक विकास हुआ और 1920 में अमेरिका ने रेडियो पर संगीत कार्यक्रमों का मजा लेना शुरू कर दिया था। 1921 में यूरोप में रेडियो प्रसारण शुरू हो गया। 
भारत में पहली बार रेडियो का प्रसारण जून, 1923 में मुंबई रेडियो क्लब द्वारा किया गया। इसके बाद 1926 में एक एग्रीमेंट के तहत इंडियन ब्रॉडकॉस्टिंग कंपनी को रेडियो स्टेशन शुरू करने अनुमति मिली। लेकिन भारत में रेडियो की विधिवत शुरुआत 23 जुलाई, 1927 से मानी जाती है, जब मुंबई में पहला रेडियो स्टेशन शुरू हुआ। इसी क्रम में 26 अगस्त, 1927 को कोलकाता स्टेशन की शुरुआत हुई। 1930 में इंडियन ब्रॉडकॉस्टिंग कंपनी दिवालिया हो गई, इस कारण सरकार ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया और इसका नाम बदलकर इंडियन स्टेट ब्रॉडकॉस्टिंग कंपनी कर दिया गया। आठ जून, 1936 को इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो कर दिया गया। धीरे-धीरे करके भारत के प्रमुख शहरों में रेडियो केंद्र खोले गये। 1936 में दिल्ली, 1937 में पेशावर और लाहौर, 1938 में लखनऊ और मद्रास आदि नये केंद्र खोले गये। इस तरह रेडियो के केंद्रों को एक-एक बढ़ाया गया और साथ साथ कुछ और बदलाव होते रहे। 1956 में ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर आकाश वाणी कर दिया गया, तब से इसे इसी नाम से जाना जाता है। 
आजादी के सबसे महत्वपूर्ण बात यह हुई कि मनोरंजन के साथ-साथ जीवन के विभिन्न पहलुओं, समाज, संस्कृति, स्वास्थ्य आदि को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चलाने के लिए आकाशवाणी सेवाओं का इस्तेमाल किया गया और इन कार्यक्रमों को जमकर सफलता भी मिली। 1959 में टेलीविजन के शुरुआत होने के पहले तक भारत में रेडियो ही सबसे अधिक पहुंच वाला सर्वसुलभ जनमाध्यम था। रेडियो ने एक ओर तो किसानों को जागरूक किया, वहीं दूसरी ओर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियों का जरिया बना। 
रेडियो की शुरुआत भले ही समाचार प्रसारण से शुरू हुई हो, लेकिन इसकी लोकप्रियता में चार चांद लगा, जब 1857 में इसकी मनोरंजन सेवाएं शुरू हुईं। फिर तो भारतीय संगीत ध्वनि तरंगों के सहारे कश्मीर से कन्या कुमारी गूंजने लगा। केएल सहगल, मुन्नी बेगम, मुबारक बेगम मोहम्मद रफी जसे फनकार ध्वनि तरंगों की ताल पर हिंदुस्तान की वादियों में गूंजने लगे। 
आकाशवाणी की सबसे लोकप्रिय सेवा रही है विविध भारती। इसे तीन अक्टूबर, 1957 को शुरू किया गया। श्रीलंका रेडियो सिलोन की तर्ज शुरू की गई यह सेवा अब तक भारत की सबसे लोकप्रिय रेडियो सेवा रही है। इस पर प्रसारित होने वाले एक-एक कार्यक्रम लोगों की जुबान पर चढ़े हुए होते थे। यहां तक कि कार्यक्रम का प्रसारण सुनकर लोग समय का अंदाजा लगाते थे। इसके कई प्रोग्राम तो अभी तक प्रसारित हो रहे हैं जसे- हवा महल, भूले बिसरे गीत, वंदनवार, छायागीतजयमाला आदि। इसके अलावा बाइस्कोप की बातें, सेल्युलायड के सितारे, संगीत के सितारे और हलो फरमाइश जसे कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय कार्यक्रमों में से हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हिस्दुस्तान के लोगों ने विविध भारती की आंख से संगीत और सिनेमा देखा सुना। मुंबई सिने जगत को रेडियो के माध्यम से गांव-गांव पहुंचाया गया। 
हालांकि, अब एफ रेडियो के बढ़ते चलन के कारण तो एकमात्र मनोरंजन प्रसारण विविध भारती बचा है और ही वे मजेदार और जायकेदार बातें। लेकिन इसका दूसरा पहलू इससे कहीं ज्यादा मजबूत है। तब जनमाध्यम के रूप में सिर्फ रेडियो था तो आज अनेक माध्यम हैं, फिर भी एफएम रेडियो की लोकप्रियता जनता के सर चढ़कर बोल रही है। नये जमाने के साथ रेडियो का पुनरावतार हुआ है। अब वह नई पीढ़ी की फटाफट जिंदगी के साथ कदम ताल कर रहा है। एफएम रेडियो ने अपनी एक नयी भाषा गढ़ ली है। वह युवाओं को लक्ष्य करके प्रोग्राम प्रस्तुत करता है और मोबाइल के ईयरपीस के जरिए युवाओं के कानों में गूंज रहा है। रेडियो बदलते समय के साथ लोकप्रियता के नये आयाम गढ़ रहा है। 74 सालों के लंबे सफर में इतना बदलाव तो होना ही था।



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