रविवार, 19 दिसंबर 2010

आज रात तुम छत पर रहना
बदल ओढ़ के आऊंगा मैं
सारी रात तेरे दामन में
खूब झमाझम बरसूँगा
एक चाँद का सुर्ख बताशा
लाऊंगा जो तुम्हे पसंद हैं
और तारों का लडीदार
इक उजला गजरा लाऊंगा 
रात को लोरी गाते गाते 
सर पे तेरे सजाऊंगा 
नींद में जब तू बह जाएगी 
मैं सपना बन जाऊंगा 
खारी खारी शीरीं शीरीं 
रात ज़बां पर तुम रख लेना
भर ले आऊंगा अंजुरी में 
आसमान सारा पी लेना 
अगर लाज लागे तुमको तो 
उफक खींच कर तन ढँक लेना 
और देखना साथ बरसने का होता 
क्या खूब जायका!


आज रात तुम छत पर रहना 
बादल ओढ़ के आऊंगा मैं.....

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