इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये दानकर्ताओं ने अब तक 150 मिलियन डॉलर यानी करीब 10 अरब 35 करोड़ रुपए का राजनीतिक चंदा दिया है और इसमें से 95 फीसदी अकेले बीजेपी को गया है.
बीजेपी सरकार ने पिछले वर्ष चुनावी चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था की थी. इसे शुरू करते हुए कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के आने से चुनावों और राजनीतिक पार्टियों को होने वाली फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी. लेकिन इसके आने के साथ विश्लेषकों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए.
आज 21 नवंबर को कांग्रेस ने संसद में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर स्थगन प्रस्ताव पेश किया. कांग्रेस के कई नेताओं ने सरकार इसे 'बड़ा घोटाला' बताते हुए सरकार से इस पर जवाब मांगा. बाद में कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सदन से वाक आउट भी किया.
बीबीसी के मुताबिक, 'इन बॉन्ड के ज़रिए दानकर्ताओं ने अब तक 150 मिलियन डॉलर यानी करीब 10 अरब 35 करोड़ रुपए का चंदा दिया है और रिपोर्ट्स के मुताबिक इनमें से ज़्यादातर रक़म बीजेपी को मिली है.' कई मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि बॉन्ड के जरिये दी गई दान की रकम में से 95 फीसदी अकेले बीजेपी को गया है.
जब इलेक्टोरल बॉन्ड आने वाला था, उसी समय इस पर सवाल उठने लगे थे. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) के जगदीप छोकर जैसे लोगों ने आशंका जताई थी कि सरकार अपारदर्शिता को बढ़ाकर पारदर्शिता लाने की बात कह रही है और लोगों को बेवकूफ बना रही है.
उनका कहना था कि 'सरकार ने ऐसे नियम बना दिए हैं कि इसके जरिये उसी दल को फायदा मिलेगा जो सत्ता में है.' अब आंकड़े दिखा रहे हैं कि उनकी आशंका सही थी. अकेले सत्तारूढ़ बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये आए चंदे का 95 फीसदी मिला है.
लोकसभा में कांग्रेस के नेता सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि "इलेक्टोरल बॉन्ड एक बहुत बड़ा घोटाला है, देश को लूटा जा रहा है."
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने लोकसभा में इस मुद्दे पर कहा कि "2017 से पहले इस देश में एक मूलभूत ढांचा था. उसके तहत जो धनी लोग हैं उनका भारत के सियासत में जो पैसे का हस्तक्षेप था उस पर नियंत्रण था. लेकिन 1 फ़रवरी 2017 को सरकार ने जब यह प्रावधान किया कि अज्ञात इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाएं जिसके न तो दानकर्ता का पता है और न जितना पैसा दिया गया उसकी जानकारी है और न ही उसकी जानकारी है कि यह किसे दिया गया. उससे सरकारी भ्रष्टाचार पर अमलीजामा चढ़ाया गया है." मनीष तिवारी ने कहा कि 'चुनावी बॉन्ड जारी करके सरकारी भ्रष्टाचार को स्वीकृति दी गई है.
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, "इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये अमीर लोग सत्ताधारी पार्टी को चंदा देकर राजनीतिक हस्तक्षेप करेंगे...जब ये बॉन्ड पेश किए गए थे, तो हममें से कई लोगों ने गंभीर आपत्ति जताई थी लेकिन हमारी नहीं सुनी गई."
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा, "इलेक्टोरल बॉन्ड का 95 फ़ीसदी पैसा बीजेपी को गया, क्यों गया, ये क्यों हुआ. 2017 के बजट में अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर जो रोक लगाई थी उसे ख़त्म कर दिया गया. अरुण जेटली ने यह रोक लगाई थी कि कोई भी कंपनी अपने लाभ के 15 फ़ीसदी से अधिक ज़्यादा पैसा नहीं लगा सकती. लेकिन अब उसे हटा लिया गया है. प्रधानमंत्री को इस पर जवाब देना होगा."
उधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने ट्विटर के जरिये इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल उठाए. राहुल गांधी ने लिखा, "न्यू इंडिया में रिश्वत और अवैध कमीशन को चुनावी बॉन्ड कहते हैं."
कांग्रेस के कई नेताओं ने आरोप लगाया कि रिजर्व बैंक ने इस योजना पर आपत्ति जताई थी, लेकिन सरकार ने उसकी सलाह को नजरअंदाज किया और योजना लागू कर दी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि, रिजर्व बैंक को दरकिनार करते हुए चुनावी बॉन्ड लाया गया ताकि कालाधन बीजेपी के पास पहुंच सके.
इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह के बैंकिंग बॉन्ड होते हैं जिसके जरिये राजनीतिक दलों को फंड मिलता है. इसे लेकर पहले भी विवाद रहा है और आरोप लगता है कि पार्टियां अपनी आय और व्यय का ईमानदार ब्योरा नहीं पेश करती हैं और पार्टियों को चंदे के नाम पर काला धन खपाया जाता है.
किसी भी सियासी पार्टी को मिलने वाले चंदे इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है. यह चंदा कोई भी दे सकता है, लेकिन आम तौर पर अमीर, पूंजीपति और कारोबारी लोग बॉन्ड के जरिये किसी पार्टी को चंदा देते हैं.
नियम है कि सभी दल चुनाव आयोग में खुद को मिले चंदे की पूरी जानकारी देंगे. पार्टियां एक हज़ार, दस हज़ार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपए तक का चुनावी बॉन्ड ले सकती हैं. चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए सिर्फ सरकारी बैंक एसबीआई अधिक्रत है. ये बॉन्ड 15 दिनों के लिए वैध रहते हैं. 15 दिनों के अंदर इन्हें पार्टी के खाते में जमा कराना होता है. इसमें दान देने वाले की पहचान गुप्त रखी जाती है.
हाल ही में पत्रकार नितिन सेठी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कई रिपोर्ट लिखी हैं जो न्यूजलॉन्ड्री और हफिंगटन पोस्ट में छपी हैं. कई दस्तावेज के आधार पर इन रिपोर्टों में कहा गया है कि सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने में रिजर्व बैंक, एसबीआई और चुनाव आयोग की सलाह को नजरअंदाज किया और मनमाने तरीके से चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को प्रभाव में लाया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त मंत्रालय की कड़ी निगरानी में इस बॉन्ड सिस्टम को प्रभाव में लाया गया और विभिन्न आपत्तियों पर गौर नहीं किया गया. रिपोर्ट में दस्तावेज के सहारे कई अनियमितताएं गिनाते हुए कहा गया है कि 'चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड की अवैध बिक्री का आदेश दिया'.
अरबों रुपये का कॉरपोरेट चंदा एकतरफा बीजेपी को गया है, इसे देखते हुए भी इस पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह केंद्रीय स्तर पर सरकारी भ्रष्टाचार का नया स्वरूप है?
बीजेपी सरकार ने पिछले वर्ष चुनावी चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था की थी. इसे शुरू करते हुए कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के आने से चुनावों और राजनीतिक पार्टियों को होने वाली फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी. लेकिन इसके आने के साथ विश्लेषकों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए.
आज 21 नवंबर को कांग्रेस ने संसद में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर स्थगन प्रस्ताव पेश किया. कांग्रेस के कई नेताओं ने सरकार इसे 'बड़ा घोटाला' बताते हुए सरकार से इस पर जवाब मांगा. बाद में कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सदन से वाक आउट भी किया.
साभार: द हिंदू |
जब इलेक्टोरल बॉन्ड आने वाला था, उसी समय इस पर सवाल उठने लगे थे. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) के जगदीप छोकर जैसे लोगों ने आशंका जताई थी कि सरकार अपारदर्शिता को बढ़ाकर पारदर्शिता लाने की बात कह रही है और लोगों को बेवकूफ बना रही है.
उनका कहना था कि 'सरकार ने ऐसे नियम बना दिए हैं कि इसके जरिये उसी दल को फायदा मिलेगा जो सत्ता में है.' अब आंकड़े दिखा रहे हैं कि उनकी आशंका सही थी. अकेले सत्तारूढ़ बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये आए चंदे का 95 फीसदी मिला है.
लोकसभा में कांग्रेस के नेता सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि "इलेक्टोरल बॉन्ड एक बहुत बड़ा घोटाला है, देश को लूटा जा रहा है."
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने लोकसभा में इस मुद्दे पर कहा कि "2017 से पहले इस देश में एक मूलभूत ढांचा था. उसके तहत जो धनी लोग हैं उनका भारत के सियासत में जो पैसे का हस्तक्षेप था उस पर नियंत्रण था. लेकिन 1 फ़रवरी 2017 को सरकार ने जब यह प्रावधान किया कि अज्ञात इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाएं जिसके न तो दानकर्ता का पता है और न जितना पैसा दिया गया उसकी जानकारी है और न ही उसकी जानकारी है कि यह किसे दिया गया. उससे सरकारी भ्रष्टाचार पर अमलीजामा चढ़ाया गया है." मनीष तिवारी ने कहा कि 'चुनावी बॉन्ड जारी करके सरकारी भ्रष्टाचार को स्वीकृति दी गई है.
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, "इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये अमीर लोग सत्ताधारी पार्टी को चंदा देकर राजनीतिक हस्तक्षेप करेंगे...जब ये बॉन्ड पेश किए गए थे, तो हममें से कई लोगों ने गंभीर आपत्ति जताई थी लेकिन हमारी नहीं सुनी गई."
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा, "इलेक्टोरल बॉन्ड का 95 फ़ीसदी पैसा बीजेपी को गया, क्यों गया, ये क्यों हुआ. 2017 के बजट में अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर जो रोक लगाई थी उसे ख़त्म कर दिया गया. अरुण जेटली ने यह रोक लगाई थी कि कोई भी कंपनी अपने लाभ के 15 फ़ीसदी से अधिक ज़्यादा पैसा नहीं लगा सकती. लेकिन अब उसे हटा लिया गया है. प्रधानमंत्री को इस पर जवाब देना होगा."
उधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने ट्विटर के जरिये इलेक्टोरल बॉन्ड पर सवाल उठाए. राहुल गांधी ने लिखा, "न्यू इंडिया में रिश्वत और अवैध कमीशन को चुनावी बॉन्ड कहते हैं."
कांग्रेस के कई नेताओं ने आरोप लगाया कि रिजर्व बैंक ने इस योजना पर आपत्ति जताई थी, लेकिन सरकार ने उसकी सलाह को नजरअंदाज किया और योजना लागू कर दी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि, रिजर्व बैंक को दरकिनार करते हुए चुनावी बॉन्ड लाया गया ताकि कालाधन बीजेपी के पास पहुंच सके.
इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह के बैंकिंग बॉन्ड होते हैं जिसके जरिये राजनीतिक दलों को फंड मिलता है. इसे लेकर पहले भी विवाद रहा है और आरोप लगता है कि पार्टियां अपनी आय और व्यय का ईमानदार ब्योरा नहीं पेश करती हैं और पार्टियों को चंदे के नाम पर काला धन खपाया जाता है.
किसी भी सियासी पार्टी को मिलने वाले चंदे इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है. यह चंदा कोई भी दे सकता है, लेकिन आम तौर पर अमीर, पूंजीपति और कारोबारी लोग बॉन्ड के जरिये किसी पार्टी को चंदा देते हैं.
नियम है कि सभी दल चुनाव आयोग में खुद को मिले चंदे की पूरी जानकारी देंगे. पार्टियां एक हज़ार, दस हज़ार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपए तक का चुनावी बॉन्ड ले सकती हैं. चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए सिर्फ सरकारी बैंक एसबीआई अधिक्रत है. ये बॉन्ड 15 दिनों के लिए वैध रहते हैं. 15 दिनों के अंदर इन्हें पार्टी के खाते में जमा कराना होता है. इसमें दान देने वाले की पहचान गुप्त रखी जाती है.
हाल ही में पत्रकार नितिन सेठी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कई रिपोर्ट लिखी हैं जो न्यूजलॉन्ड्री और हफिंगटन पोस्ट में छपी हैं. कई दस्तावेज के आधार पर इन रिपोर्टों में कहा गया है कि सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने में रिजर्व बैंक, एसबीआई और चुनाव आयोग की सलाह को नजरअंदाज किया और मनमाने तरीके से चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था को प्रभाव में लाया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त मंत्रालय की कड़ी निगरानी में इस बॉन्ड सिस्टम को प्रभाव में लाया गया और विभिन्न आपत्तियों पर गौर नहीं किया गया. रिपोर्ट में दस्तावेज के सहारे कई अनियमितताएं गिनाते हुए कहा गया है कि 'चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड की अवैध बिक्री का आदेश दिया'.
अरबों रुपये का कॉरपोरेट चंदा एकतरफा बीजेपी को गया है, इसे देखते हुए भी इस पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह केंद्रीय स्तर पर सरकारी भ्रष्टाचार का नया स्वरूप है?
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