बुधवार, 20 नवंबर 2019

स्वास्थ्य और शिक्षा लोगों का बुनियादी अधिकार है, जिम्मेदारी ले सरकार

दुनिया के लगभग सभी विकसित देश अपने लोगों को मुफ्त शिक्षा मुहैया कराते हैं. जिन विकसित देशों में शिक्षा मुफ्त नहीं है, वहां पर सरकारें यथासंभव अनुदान देकर शिक्षा को सुलभ बनाने की कोशिश करती हैं.

इस मामले में जर्मनी टॉप पर है जहां पर सरकारी संस्थानों में उच्च शिक्षा या तो मुफ्त है या फिर नॉमिनल चार्ज देना होता है.

नार्वे में ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टरेट बिल्कुल मुफ्त है.

तमाम अच्छे और प्रगतिशील कानूनों को सबसे पहले लागू करने वाला देश है स्वीडन. यहां भी शिक्षा मुफ्त है. यह सिर्फ नॉन यूरापियन लोगों पर कुछ नॉमिनल चार्ज लगाता है. यहां पीएचडी करने पर आपको बाकायदा सेलरी मिलती है.

आस्ट्रिया में भी शिक्षा मुफ्त है. नॉन यूरोपियन के लिए कुछ नॉमिनल चार्ज है.

फिनलैंड में हर स्तर की शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है, भले ही आप कहीं के भी नागरिक हों. 2017 से इसने नॉन यूरोपियन पर कुछ चार्ज लगाया है.

चेक रिपब्लिक मुफ्त शिक्षा देता है भले ही आप कहीं के भी नागरिक हों.

फ्रांस में उच्च शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है. कुछ पब्लिक विश्वविद्यालयों में नॉमिनल चार्ज लगता है.

बेल्जियम और ग्रीस में भी नॉमिनल चार्ज पर शिक्षा मुहैया कराई जाती है.

स्पेन भी सभी यूरोपीय नागरिकों के लिए फ्री शिक्षा मुहैया कराता है.

इसके अलावा डेनमार्क, आइसलैंड, अजेंटीना, ब्राजील, क्यूबा, हंगरी, तुर्की, स्कॉटलैंड, माल्टा आदि देश स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक, सभी तरह की शिक्षा मुफ्त में मुहैया कराते हैं.

फिजी में स्कूली शिक्षा मुफ्त है. ईरान के सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षा फ्री है.

रूस में मेरिट के आधार पर छात्रों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है. फिलीपींस ने 2017 में कानून बनाकर शिक्षा फ्री कर दिया है.

श्रीलंका में स्कूली शिक्षा और मेडिकल फ्री है. थाईलैंड 1996 से मुफ्त शिक्षा मुहैया करा रहा है. चीन और अमेरिका जैसे देश जहां फ्री शिक्षा नहीं है, वे भी इस तरफ आगे बढ़ रहे हैं.

जिन विकसित देशों में शिक्षा और ​स्वास्थ्य मुफ्त हैं, वहां की सरकारें और लोग इसे मुफ्तखोरी नहीं कहते. वे इसे हर नागरिक का मूलभूत अधिकार कहते हैं. सबसे बड़ी बात कि वे स्वनामधन्य विश्वगुरु भी नहीं हैं.

ऐसा इसलिए है ​क्योंकि ये विकसित देश हैं और इनके लोगों का दिमाग भी विकसित है. वे अपने ही विश्वविद्यालयों में काल्पनिक गद्दार नहीं खोजते. वे अपने विपक्षियों और आलोचकों को देश का दुश्मन नहीं समझते. वे पढ़े लिखे हैं और पढ़ाई का महत्व समझते हैं.

भारत में नेहरू भी पढ़े लिखे आदमी थे इसलिए तमाम विश्वविद्यालय और संस्थान खुलवाए. अनपढ़ों को पढ़े लिखे लोगों से तकलीफ होती है इसलिए वे नये विश्वविद्यालय और नये कॉलेज खोलने की जगह देश के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय को बंद करने का अभियान चलाते हैं और कहते हैं कि हम विश्वगुरु बनेंगे.

यह दुखद है कि पिछले छह साल से एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के खिलाफ सरकार और सत्ता में बैठे लोगों की ओर से कुत्सित अभियान चलाया जा रहा है.

आज नहीं तो कल, यह होना है कि सभ्य देशों की तरह हमारी भी सरकार कम से कम गरीब लोगों की शिक्षा और स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लें और बुनियादी अधिकार की तरह यह सेवाएं उन्हें मुफ्त में मुहैया कराएं.

कोई टिप्पणी नहीं:

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...