बुधवार, 20 नवंबर 2019

हम शिक्षा का लक्ष्य पूरा करने में फिसड्डी साबित हो रहे हैं

नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे तो अपने एक भाषण में कहा था कि 'चीन अपनी जीडीपी का 20 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है, लेकिन भारत सरकार नहीं खर्च करती.' हालांकि, यह झूठ था लेकिन यह बयान बहुत चर्चित हुआ था क्योंकि यह उनके शुरुआती झूठ में से एक था.

मोदी जिस दौरान यह बात उठा रहे थे, इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उस दौरान यानी 2012-13 में भारत सरकार अपनी कुल जीडीपी का 3.1 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च कर रही थी. विश्व बैंक के मुताबिक, 2013 में भारत अपनी जीडीपी का 3.8 प्रतिशत खर्च कर रहा था. मोदी जी के आने के बाद यह घट गया.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 2017-18 के आर्थिक सर्वे में यह बात सामने आई कि भारत सरकार ने शिक्षा पर खर्च घटा दिया है. 2014-15 यह 3 प्रतिशत से नीचे आकर 2.8 फीसदी रह गया. 2015-16 में यह और घटकर 2.4 फीसदी हो गया. 2016-17 में इसमें मामूली बढ़ोत्तरी की गई और यह 2.6 फीसदी हो गया.

मनमोहन के समय में शिक्षा पर जो खर्च कुल जीडीपी का 3 प्रतिशत से ज्यादा ही रहा, मोदी जी ने उसे घटाकर 3 प्रतिशत से नीचे कर दिया.

एचआरडी मंत्री रहते हुए प्रकाश जावड़ेकर ने इसी मार्च में कहा था कि भारत सरकार का शिक्षा पर खर्च जीडीपी का 4.6 प्रतिशत हो गया है. लेकिन यह मंत्री जावड़ेकर का बयान भर है. जब बजट में शिक्षा पर आवंटन बढ़ा नहीं तो खर्च कुल जीडीपी का 2.6 प्रतिशत से 4.6 कैसे हो गया?

मानव संसाधन मंत्रालय की वेबसाइट पर आखिरी डाटा 2012 और 2013 का पड़ा है.

इन लोगों का डाटा के साथ खेल करने का ​रिकॉर्ड इतना खराब है कि जबतक विश्वसनीय आंकड़ा जारी न हो, भरोसा नहीं कर सकते. आंकड़ा दबाना और झूठ फैलाना इस सरकार का प्रिय शगल है.

अमेरिका अपनी जीडीपी का 5.8 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है. ध्यान रहे कि उसकी जनसंख्या हमसे बहुत कम है और इकोनॉमी हमसे बहुत बड़ी है. अमेरिका का शिक्षा पर पिछले 22 सालों में सबसे कम खर्च भी 4 प्रतिशत से ऊपर रहा है.

यूनीसेफ के मुताबिक, चीन 2012 से अपनी जीडीपी का 4 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है और उसने छह साल लगातार इस खर्च को बरकरार रखकर अपना नेशनल टॉरगेट पूरा कर लिया है.

विश्वबैंक के मुताबिक, कुछ देशों का कुल जीडीपी का शिक्षा पर खर्च देख लें- अफगानिस्तान- 4.1, अर्जेंटीना- 5.5, आस्ट्रेलिया- 5.3, बेल्जियम- 6.5, भूटान- 6.6, बोत्सवाना- 9.6, बोलिविया- 7.3, ब्राजील- 6.2, बुरुंडी- 4.8, कनाडा- 5.3, क्यूबा- 12.8, डेनमार्क- 7.6, फिनलैंड- 6.9, आइसलैंड- 7.5, इजराइल- 5.8, केन्या- 5.2, नेपाल- 5.2, न्यूजीलैंड- 6.4, नार्वे- 8, ओमान- 6.8, साउथ अफ्रीका- 6.2, सउदी अरब- 5.1 वगैरह-वगैरह.

कहने का मतलब है कि ज्यादातर देशों का शिक्षा पर खर्च हमसे बेहतर है. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो उनके हर भाषण में एक शब्द जरूर आता था नॉलेज इकॉनमी. वे कहते थे कि यह ज्ञान का युग है, हमें नॉलेज इकॉनमी तैयार करनी है, क्योंकि यह ज्ञान का युग है. मनमोहन सरकार ने करीब 1500 नये विश्वविद्यालय खोलने की चर्चा छेड़ी थी. वे बार बार शोध को बढ़ावा देने की बात करते थे.

अभी छह साल से न तो नॉलेज इकॉनमी टर्म सुनाई दिया है, न ही नये विश्वविद्यालय खोलने की कोई चर्चा हुई है, न ही मोदी जी जीडीपी का 20 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च कर पाए जो वादा किए थे. छह साल से एक जेएनयू बंद करने का अभियान छेड़े हैं और आश्चर्य है कि वह भी अभी तक बंद नहीं करा पाए.

बीजेपी सरकार को जेएनयू से लड़ते हुए छह साल बर्बाद हो चुके हैं. अब सरकार को चाहिए कि जेएनयू के बच्चों से लड़ने की जगह अशिक्षा से लड़े. भारत वह देश है ​जहां पर अभी भी करीब 8 से 9 करोड़ बच्चे शिक्षा से बाहर हैं. सरकार को अब अपनी प्राथमिकताएं बदल देनी चाहिए. 

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