गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

जिसका सूरज नहीं डूबता था, वह गांधी के प्रति नफरत के गंदले में डूब गया

विंस्टन चर्चिल एक ऐसे साम्राज्य का शासक था जिसके बारे में कहते हैं कि उसका सूरज कभी नहीं डूबता था. लेकिन चर्चिल महात्मा गांधी से नफरत करता था. उसकी गांधी के प्रति यह नफरत भारतीयों के प्रति नफरत का प्रतिबिंब थी. उसने गांधी को हिकारत से “भूखा नंगा फकीर” कहा. कैबिनेट में उसके सीनियर रह चुके Leo Amery के मुताबिक, एक बार उसने भारतीयों को “पाशविक धर्म के अनुयायी पाशविक लोग” कहा था.

महात्मा गांधी ने जब भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की और 'करो या मरो' जैसा निर्णायक नारा दिया तो गांधी को हिंसा फैलाने के आरोप में जेल में डाल दिया गया.

इसके बाद चर्चिल ने Leo Amery को पत्र लिखा, “भारत सरकार के दस्तावेज खंगालो और गांधी के खिलाफ ऐसे सबूत एकत्र करो कि वह जापान के साथ मिलकर षडयंत्र कर रहा है.” Leo Amery ने जवाब दिया, “ऐसे कोई सबूत मौजूद नहीं है. सिवाय इसके कि दो जापानी बौद्ध भिक्षु एक बार उनके वर्धा आश्रम में आए थे.”

गांधी पर हिंसा फैलाने का आरोप झूठा था, जिसके विरोध में गांधी ने जेल में ही अनशन शुरू कर दिया. इस पर चर्चिल को संदेह था कि यह गांधी असल में अनशन नहीं करता, यह चोरी से कोई सप्लीमेंट लेता है. इसमें तथ्य नहीं था, यह उसकी नफरत थी.

उसने ​वायसराय लिनलिथगो को तार भेजा, “हमने सुना है कि गांधी अनशन के दौरान ग्लोकोज लेते हैं. क्या इसकी पुष्टि की जा सकती है?”

दो दिन बाद वायसराय का जवाब आया कि यह संभव नहीं है. “गांधी पिछले फास्ट के दौरान खुद सतर्क थे कि कहीं उनके पानी में ग्लोकोज न मिलाया हो. उनकी देखरेख करने वाले डॉक्टर ने उन्हें मनाने की कोशिश भी की लेकिन उन्होंने ग्लूकोज लेने से मना कर दिया.”

गांधी के अनशन को तीसरा हफ्ता शुरू हो गया. चर्चिल ने फिर तार भेजा कि “गांधी 15 दिन तक जिंदा कैसे है. यह एक फ्रॉड है, जिसका खुलासा होना चाहिए. कांग्रेस के हिंदू डॉक्टर चुपके से उसे ग्लूकोज दे रहे होंगे.”

वायसराय ने अपना घोड़ा खोल दिया लेकिन कोई सबूत नहीं मिला. वायसराय ने फिर ​चर्चिल को लिखा, 'यह आदमी दुनिया का सबसे बड़ा फ्रॉड है'. लेकिन हमें कोई सबूत नहीं मिला. चर्चिल का साम्राज्य साबित नहीं कर पाया कि गांधी का अनशन एक धोखा है.

जो ​चर्चिल कहता था कि गांधी से कोई बातचीत सिर्फ मेरी लाश की कीमत पर हो सकती है, वह गांधी को ज्यादा समय कैद में भी नहीं रख पाया. भारत आजाद हो गया.

1951 में चर्चिल की वॉर मेमोरी The Hinge of Fate प्रकाशित हुई. उन्होंने इसमें गांधी पर ग्लूकोज लेकर अनशन करने का आरोप फिर दोहराया. इस बार आजाद भारत ने उन्हें जवाब दिया कि ​चर्चिल की औकात नहीं है कि वे गांधी को पहचान पाएं.

चूंकि विंस्टन चर्चिल भारतीयों को तुच्छ समझता था, इसलिए गांधी और नेहरू जैसे नेताओं के प्रति उसकी नफरत वक्त बेवक्त बाहर आती रहती थी.

1945 में लंदन में संयुक्त राष्ट्र की असेंबली का पहला सत्र आयोजित हुआ. इंडियन डेलीगेशन की अगुआई कर रही थीं नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित. सत्र के दौरान चर्चिल उनके बगल बैठे थे. अचानक चर्चिल ने विजयलक्ष्मी पंडित से पूछा, 'क्या आपके पति को हमने नहीं मारा? सच में हमने नहीं मारा?'

विजयलक्ष्मी पंडित के पति रणजीत सीताराम पंडित की जेल में मौत हो गई थी. चर्चिल इसी बारे में बात कर रहा था. विजयलक्ष्मी पंडित सकपका गईं, लेकिन थोड़ा सोचकर बोलीं, 'नहीं, हर आदमी अपने निर्धारित वक्त तक जिंदा रहता है.'

हालांकि, इस जवाब के बाद दोनों में मित्रवत व्यवहार हुआ. बाद में चर्चिल ने विजयलक्ष्मी पंडित से कहा, 'तुम्हारे भाई जवाहर लाल ने मनुष्य के दो दुश्मनों पर विजय पा ली है, नफरत और डर, जो कि मनुष्य के बीच सर्वोच्च सभ्य दृष्टिकोण है और आज के माहौल से गायब है.'

इसके कुछ समय बाद नेहरू महारानी के राज्याभिषेक में शामिल होने लंदन गए. समारोह खत्म हुआ तो संयोग से वहां नेहरू और च​र्चिल ही बचे, बाकी लोग चले गए. चर्चिल नेहरू की तरफ घूमे और कहा, 'मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, यह अजीब नहीं है कि दो लोग जिन्होंने एक दूसरे से बेहद नफरत की हो, उन्हें इस तरह से एक साथ फेंक दिया जाए?'

नेहरू ने जवाब दिया, 'लेकिन मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, मैंने आपसे कभी नफरत नहीं की.'

चर्चिल ने फिर कहा, 'लेकिन मैंने की, मैंने की.'

फिर उसी शाम डिनर पर चर्चिल ने नेहरू के लिए कहा, 'यहां एक ऐसा आदमी बैठा है जिसने नफरत और डर को जीत लिया है.'

1945 में चर्चिल को ब्रिटेन की जनता से सत्ता से उखाड़ फेंका. 47 में भारत आजाद हो गया.

Judith Brown किताब Nehru: A Political Life कहती है कि आजादी के बाद 1948 में जब चर्चिल की नेहरू से मुलाकात हुई तो ​चर्चिल ने भारत की आजादी का विरोध करने के लिए नेहरू से माफी मांगी थी.

जब तक ​चर्चिल को समझ में आया कि भारत की आजादी की लड़ाई की अगुआई करने वाले गांधी और नेहरू क्या चीज हैं, तब तक देर हो चुकी थी.

भारत के लोगों और गांधी से नफरत करने वाला चर्चिल हार गया. नफरत से भरे एक पिद्दी के हाथों जान गंवा कर भी गांधी जीत गया. गांधी के हत्यारे को दुनिया हत्यारे के रूप में ही जानेगी. भारत गांधी के देश के रूप में जाना जाएगा.

इसलिए गांधी से नफरत करने वालों से अपील है कि गांधी से नफरत मत करो, हार जाओगे. गांधी के प्रति अपने अंदर नफरत भर तो लोगे, लेकिन गांधी के बराबर आत्मबल कहां से लाओगे?

भारत के राष्ट्रपिता को नमन!

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(संदर्भ: इतिहासकार रामचंद्र गुहा, बिपनचंद्र, प्रोफेसर विश्वनाथ टंडन, टेलीग्राफ)

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