शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

गांधी की हत्या के आरोप से सावरकर बरी हुए थे, उनकी विचारधारा नहीं

जिन दो राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से एक किसानों की कब्रगाह के रूप में जाना जाता है और दूसरा देश में सर्वाधिक बेरोजगारी ​के लिए. बावजूद इसके, केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा ने इतिहास के एक विवादित पन्ने को उलटकर उसे चुनावी मुद्दा बना दिया है.

महाराष्ट्र में भाजपा हिंदुत्व की राजनीति के पितृपुरुष विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने का वादा किया है और प्रधानमंत्री इसे लेकर मोर्चा खोल दिया है. उनका जोर सावरकर को भारत रत्न देने से ज्यादा इस बात पर है कि कांग्रेस की अगुवाई में देश ने सावरकर का अपमान किया.

आरएसएस, बीजेपी समेत हिंदूवादी संगठन सावरकर के लिए भारत रत्न जैसे सम्मान की मांग करें, यह स्वाभाविक ही है क्योंकि इस संगठन जिस उग्र हिंदुत्व की ​बुनियाद पर टिके हैं, उसके जनक सावरकर ही हैं.


कुछ लोग सावरकर को भारत रत्न देने का विरोध क्यों कर रहे हैं?

इसके पीछे कई वजहें हैं जिनमें सबसे बड़ा कारण है महात्मा गांधी की हत्या. 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी. इसके छठवें दिन सावरकर को गांधी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया. हालांकि सबूतों के अभाव में उन्हें फरवरी, 1949 में इस आरोप से बरी कर दिया गया.

सावरकर को भले ही इस आरोप से बरी कर दिया गया, लेकिन उस समय  देश के गृहमंत्री रहे सरदार पटेल इस बात को लेकर मुतमईन थे कि यह काम आरएसएस और उस विचारधारा का है. गांधी की हत्या के बाद गृह मंत्री सरदार पटेल को सूचना मिली कि ‘इस समाचार के आने के बाद कई जगहों पर आरएसएस से जुड़े हलकों में मिठाइयां बांटी गई थीं.’ 4 फरवरी को एक पत्राचार में भारत सरकार, जिसके गृह मंत्री पटेल थे, ने स्पष्टीकरण दिया था:

‘देश में सक्रिय नफ़रत और हिंसा की शक्तियों को, जो देश की आज़ादी को ख़तरे में डालने का काम कर रही हैं, जड़ से उखाड़ने के लिए… भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ग़ैरक़ानूनी घोषित करने का फ़ैसला किया है. देश के कई हिस्सों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कई व्यक्ति हिंसा, आगजनी, लूटपाट, डकैती, हत्या आदि की घटनाओं में शामिल रहे हैं और उन्होंने अवैध हथियार तथा गोला-बारूद जमा कर रखा है. वे ऐसे पर्चे बांटते पकड़े गए हैं, जिनमें लोगों को आतंकी तरीक़े से बंदूक आदि जमा करने को कहा जा रहा है…संघ की गतिविधियों से प्रभावित और प्रायोजित होनेवाले हिंसक पंथ ने कई लोगों को अपना शिकार बनाया है. उन्होंने गांधी जी, जिनका जीवन हमारे लिए अमूल्य था, को अपना सबसे नया शिकार बनाया है. इन परिस्थितियों में सरकार इस ज़िम्मेदारी से बंध गई है कि वह हिंसा को फिर से इतने ज़हरीले रूप में प्रकट होने से रोके. इस दिशा में पहले क़दम के तौर पर सरकार ने संघ को एक ग़ैरक़ानूनी संगठन घोषित करने का फ़ैसला किया है.’

निजी तौर पर सावरकर को बरी किया जाना एक बात है, लेकिन वह विचारधारा गांधी की हत्या के आरोप से बरी नहीं हुई जिसके जनक सावरकर थे और जिसने गांधी की हत्या पर मिठाइयां बांटी थीं. आरएसएस के लोगों ने ​गांधी की हत्या पर मिठाई बांटकर खुशियां मनाईं, यह बात पटेल के पत्रों से लेकर गांधी के ​सचिव प्यारेलाल तक के रिकॉर्ड में दर्ज है.

गांधीजी के निजी सचिव प्यारेलाल नैय्यर के हवाले से एजी नूरानी ने लिखा है: ‘उस दुर्भाग्यपूर्ण शुक्रवार को कुछ जगहों पर आरएसएस के सदस्यों को पहले से ही ‘अच्छी ख़बर’ के लिए अपने रेडियो सेट चालू रखने की हिदायत दी गई थी.’

इतिहासकार सुमित सरकार अपनी किताब 'आधुनिक भारत' में लिखते हैं,
‘गांधी की हत्या पूना के ब्राह्मणों के एक गुट द्वारा रचे गए षडयंत्र का चरमोत्कर्ष था, जिसकी मूल प्रेरणा उन्हें वीडी सावरकर से मिली थी.’

दूसरे इतिहासकार बिपन चंद्र अपनी किताब 'आजादी के बाद का भारत' में लिखते हैं, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सांप्रदायिकता और हिंसात्मक विचारधारा को साफ-साफ देखते हुए और जिस प्रकार की नफरत यह गांधीजी और धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध फैला रहा था, उसे देखकर यह स्पष्ट हो गया था कि यही वे असली शक्तियां हैं जिन्होंने गांधी की हत्या की है. आरएसएस के लोगों ने कई जगहों पर खुशियां मनाईं थीं. यह सब देखते हुए सरकार ने तुरंत ही आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया.’

सरदार पटेल ने आरएसएस प्रमुख गोलवलकर को आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का कारण बताते हुए पत्र लिखकर कहा था, आरएसएस के भाषण ‘‘सांप्रदायिक उत्तेजना से भरे हुए होते हैं… देश को इस ज़हर का अंतिम नतीजा महात्मा गांधी की बेशक़ीमती ज़िंदगी की शहादत के तौर पर भुगतना पड़ा है. इस देश की सरकार और यहां के लोगों के मन में आरएसएस के प्रति रत्ती भर भी सहानुभूति नहीं बची है. हक़ीक़त यह है कि उसका विरोध बढ़ता गया. जब आरएसएस के लोगों ने गांधी जी की हत्या पर ख़ुशी का इज़हार किया और मिठाइयां बाटीं, तो यह विरोध और तेज़ हो गया. इन परिस्थितियों में सरकार के पास आरएसएस पर कार्रवाई करने के अलावा और कोई चारा नहीं था.’’

पत्रकार पवन कुलकर्णी अपने एक लेख में लिखते हैं, 18 जुलाई, 1948 को लिखे एक और खत में पटेल ने हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कहा, ‘हमारी रिपोर्टों से यह बात पक्की होती है कि इन दोनों संस्थाओं (आरएसएस और हिंदू महासभा) ख़ासकर आरएसएस की गतिविधियों के नतीजे के तौर पर देश में एक ऐसे माहौल का निर्माण हुआ जिसमें इतना डरावना हादसा मुमकिन हो सका.’

पवन कुलकर्णी आगे लिखते हैं कि ‘अदालत में गोडसे ने दावा किया कि उसने गांधीजी की हत्या से पहले आरएसएस छोड़ दिया था. यही दावा आरएसएस ने भी किया था. लेकिन इस दावे को सत्यापित नहीं किया जा सका, क्योंकि जैसा कि राजेंद्र प्रसाद ने पटेल को लिखी चिट्ठी में ध्यान दिलाया था, ‘आरएसएस अपनी कार्यवाहियों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखता… न ही इसमें सदस्यता का ही कोई रजिस्टर रखा जाता है.’ इन परिस्थितियों में इस बात का कोई सबूत नहीं मिल सका कि गांधी की हत्या के वक़्त गोडसे आरएसएस का सदस्य था.’

लेकिन कुछ वर्ष पहले फ्रंटलाइन मैगजीन में छपे नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे के एक इंटरव्यू में उन्होंने कबूल किया कि उस समय अदालत में झूठ बोला गया था. यह झूठ सावरकर को बचाने के लिए बोला गया था. गोपाल गोडसे ने यह सच इसलिए बयान किया क्योंकि आरएसएस ने गोडसे बंधुओं के उस कथित बलिदान को भुला दिया.

जो आरएसएस आज प्रचारित कर रहा है कि सावरकर अदालत से बरी हो गए थे, उसी आरएसएस पर से सरदार पटेल ने प्रतिबंध इस शर्त पर हटाया था कि ‘आरएसएस पूरी तरह से सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति समर्पित रहेगा’ और किसी तरह की राजनीति में शामिल नहीं होगा. आरएसएस ने न सिर्फ सरदार पटेल से किया गया वादा तोड़ दिया, बल्कि अपने दामन से गांधी की हत्या का दाग धोने के लिए झूठ का पहाड़ कर चुका है.

यह सही है कि सावरकर क्रांतिकारी थे और अपनी गतिविधियों के लिए उन्हें सजा हुई, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों से लिखित में वादा किया कि वे क्रांतिकारी गतिविधियों से दूर रहेंगे और अंग्रेज सरकार के वफादार रहेंगे. इसे उन्होंने ताउम्र निभाया भी. 

अटल और आडवाणी की सियासी जोड़ी के प्रमुख रणनीतिकार रह चुके सुधींद्र कुलकर्णी ने ठीक ही कहा है कि 'सावरकर को हिंदुत्व रत्न कहा जा सकता है, लेकिन वह भारत रत्न पाने के हकदार नहीं है. वह एक देशभक्त थे, लेकिन एक आंशिक देशभक्त थे. मुस्लिमों से दुश्मनी रखने वाला एक सच्चा भारतीय नहीं हो सकता.' 

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