शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

'संतन को सिर्फ सीकरी सो काम'

परसाई जी ने लिखा था कि 'धर्म जब धंधे से जुड़ जाए तो इसी को योग कहते हैं.' शास्त्रों में लिखा है 'आप्तवाक्यं प्रमाणम'. मतलब बाबा लोग जो भी कहते हैं वही प्रमाण है. अगर परसाई जी की बात को आप प्रमाण नहीं भी मानते तो कलियुग के 'कल्कि भगवान' को प्रमाण मानिए, जिनके यहां आयकर विभाग ने छापा मारा है.
स्वनामधन्य 'कल्कि भगवान' के यहां छापे में मिली 500 करोड़ की संपत्ति. 

स्वनामधन्य 'कल्कि भगवान' के आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापा मारकर 500 करोड़ की संपत्ति का पता लगाया है. खबर है कि 'कल्कि भगवान' के 40 ठिकानों पर छापा पड़ा है. इतने ठिकाने तो चंबल में ठाकुओं के नहीं होते, जितने कलियुग के 'कल्कि भगवान' के थे.

हमने ऐसे भगवानों की महिमा के बारे में सुना है जिनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. यहां ऐसे भगवान हैं जो अपनी मर्जी के विरुद्ध आयकर द्वारा खुद ही हिला दिए गए और उनकी अकूत संपत्ति की गाथा सुनकर उनके भक्त लोग भी हिल ही गए होंगे.

तो 'कल्कि भगवान' के ठिकानों से आयकर विभाग ने 18 करोड़ रुपये की कीमत के अमेरिकी डॉलर, 88 किलो सोना, 1271 कैरेट हीरा जब्त किया है. 'कल्कि भगवान' के ठिकानों से मिली कुल अघोषित संपत्ति को जोड़ कर 500 करोड़ बताया गया है.

इन स्वघोषित 'कल्कि भगवान' का नाम विजय कुमार है. उम्र 70 साल है. पहले एलआईसी में क्लर्क थे. फिर बाबा हो गए. देश में खूब कारोबार फैलाया. जमीनें खरीदीं, अकूत संपत्ति बनाई. पैसा हद से ज्यादा हो गया तो विदेशों में निवेश कर दिया. बाबा बहुराष्ट्रीय हो गए. अब इनका कहना है कि ये भगवान विष्णु का 10वां अवतार हैं.

उधर, वेंकैया जी नरेंद्र मोदी जी को भी विष्णु का अवतार बता चुके हैं. अब एक ही समय, एक ही भूमि पर विष्णु जी के दो अवतार हो जाएं तो यह विष्णु जी भी कैसे बर्दाश्त करेंगे. इसलिए उन्होंने आयकर विभाग को प्रेरित किया और छापा पड़ गया.

स्वनामधन्य 'कल्कि अवतार' से लेकर रामदेव तक, सबसने मिलकर यह सिद्ध किया है कि धर्म को धंधे से मिलाना ही योग है. बाबा रामदेव ने महर्षि पतंजलि का चूरण और चटनी के साथ महायोग करा दिया और अरबपति बन गए. उनके जैसे सैकड़ों बाबा हैं जिन्होंने धर्म का धंधे से योग कराने का सफल प्रयोग किया है. कई बाबा तो ऐसे महायोगी हैं जो सरकारों को अपनी जेब में रखते हैं.

हाल ही में ऋषिकेष जाना हुआ. वहां पर एक अजीज मित्र मिल गए. बोले चलिए आपको घुमाता हूं. वे मुझे एक हाहाकारी आश्रम में ले गए. आश्रम इतना बड़ा कि घूमते घूमते हांफा छूट गया. भव्य ​बिल्डिंगें बनी हैं. हजारों कमरे हैं. सब किराये पर उठाए जाते हैं. बाबा की कई करीबी शिष्याएं हैं जो विदेशी हैं. बाबा की विदेशों तक पहुंच है. वहां से विदेशी लोग आध्यात्म की खोज में आते हैं और आश्रम में दान के नाम पर भारी निवेश करके लौट जाते हैं.

गंगा किनारे बना यह आश्रम इतनी जमीन में फैला हुआ है जितने में कोई केंद्रीय यूनिवर्सिटी बन सकती है. ​उसी उत्तराखंड में तमाम इलाके हैं जहां बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं हैं. लेकिन बाबा के पास अकूत जमीन और अकूत संपत्ति है. विदेशों तक फैला हुआ धर्म का व्यवसाय है. नेता से लेकर अभिनेता तक सब उनके शरणागत आते हैं. नेता को वहां से वोट मिलता है और अभिनेता को वहां से नोट मिलता है.

अब कुटी बनाकर निर्जन में रहने और कंदमूल खाने वाले ऋषियों, संतों और साधुओं के जमाने लद गए. संत कबीर ने लिखा था, 'संतन को कहां सीकरी सो काम'. अब संतों की कटेगरी बदल गई है. अब के संत कहते हैं कि 'संतन को सिर्फ सीकरी सो काम'. उनको सीकरी में प्रवेश न मिले तो नई सीकरी बसा देते हैं और नये राजा बना देते हैं.

इस तरह 'आप्तवाक्यं प्रमाणम' के न्याय से परसाई जी की बात सच साबित होती है कि धर्म ​कलियुग में सबसे चोखा धंधा है और धर्म धंधे से जुड़ जाए, इसी को योग कहते हैं. 

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