रविवार, 4 अगस्त 2019

भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का प्रचार झूठ पर आधारित है

यह बात मीडिया आपको नहीं बताएगा कि भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का प्रचार झूठ पर आधारित है.

18 जुलाई, 2015 को आउटलुक में एक खबर छपी. अरविंद पनगढ़िया ने एक कार्यक्रम में कहा था कि '15 साल से भी कम समय में हमारी अर्थव्यवस्था में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावनाएं बहुत प्रबल हैं.' यह व्याख्यान इंडियन इंस्टीट्यूट आफ बैंकिंग एंड फाइनेंस ने आयोजित किया था. इस खबर में ​कहा गया कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) सहित कई विश्लेषक यह अनुमान व्यक्त कर चुके हैं कि अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. वर्ष 2030 तक भारत की जीडीपी 10,000 अरब डालर तक पहुंच सकती है.

अब मोदी जी का लक्ष्य है कि 2025 तक 5000 अरब डॉलर की इकोनॉमी बनाएंगे. मतलब जो स्वाभाविक प्रगति थी, उससे भी कम का लक्ष्य रखा है. मंदी की आहट देखकर यह प्रचार किया गया है कि हम 2025 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बना देंगे.

भारत अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में पांचवें नंबर से फिसल कर सातवें पर पहुंच गया है. मौजूदा विकास दर 5.8 प्रतिशत है और 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कम से कम आठ प्रतिशत की विकास दर चाहिए, जबकि बाजार में मचा हाहाकार बता रहा है कि आने वाला समय और मुश्किल होगा.

पनगढ़िया ने उक्त कार्यक्रम में कहा था, 'वर्ष 2003-04 से 2012-13 के दशक के दौरान रपये में आई वास्तविक मजबूती पर यदि गौर किया जाये तो डालर के लिहाज से हमने सालाना 10 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की. इस रफ्तार से हम 2014-15 के दाम पर मौजूदा 2,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था को अगले 15 साल अथवा इससे भी कम समय में 8,000 अरब डालर तक पहुंचा सकते हैं, इसके साथ ही हम दुनिया की तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था जापान से आगे निकल सकते हैं.'

2003-04 से लेकर 2012-13 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था 8.3 प्रतिशत की अच्छी रफ्तार से आगे बढ़ी थी. यही वह दौर था जब गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों की संख्या में सबसे अधिक कमी आई. आज भारत की विकास दर 5.8 फीसदी पर अटकी हुई है और बाजार में जिस तरह की भगदड़ है, यह और नीचे जाएगी.

बेरोजगारी का प्रकोप शुरू हो गया है.

मारुति सुजुकी इंडिया ने 1,000 से ज्यादा अस्थायी कर्मचारियों की छंटनी कर दी है और नई भर्तियां रोक दी है. कंपनी अपने को मंदी से बचाने के लिए अन्य लागत कटौती उपायों की योजना बना रही है.

अनुमान है कि माह-दर-माह बिक्री गिरने और डीलरशिप पर इनवेंट्री बढ़ने के चलते आटो सेक्टर की हालत खस्ता हो चुकी है. वाहन कंपनियों की बिक्री निचले स्तर पर है. आने वाले महीनों में आटो सेक्टर से 10 लाख नौकरियां जा सकती हैं.

हुंडई, महिंद्रा, टाटा, बजाज आदि सबकी हालत खराब है. अर्थव्यवस्था की सुस्ती बढ़ रही है, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में नकदी का संकट बना हुआ है. मानसून की देरी से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी तेजी नहीं आ पाई.

बेरोजगारी अपने 45 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है. नोटबंदी ने सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले कुटीर, लघु और मझोले उद्योगों की रीढ़ तोड़ दी थी. वहां पर हालत और खराब ही हुए हैं. कारखाने बंद होने का सिलसिला जारी है और उत्पादन सिकुड़ रहा है जिसके चलते रोजगार छिन रहे हैं. देश में हस्तकला और छोटे छोटे पारंपरिक उद्योगों के लिए मशहूर इलाकों में मुर्दनी छा गई है.

जुलाई महीना भारतीय शेयर बाजार के लिए पिछले 17 साल का सबसे खराब महीना था.
5 जुलाई को आम बजट पेश होने के बाद शेयर बाजार धड़ाम हो गया और सरकार के 50 दिन पूरे होने तक शेयर बाजार में निवेशकों के 12 लाख करोड़ डूब गए.

एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार कह रहे हैं कि अब 'SBI की वित्तीय हालत को सुधारने के लिए केवल भगवान का सहारा ही बचा है.'

एचडीएफसी के दीपक पारेख कह रहे हैं कि 'मंदी साफ दिख रही है' आरबीआई गवर्नर कह रहे हैं कि 'अर्थव्यवस्था अनिश्चित दौर की ओर जा रही है.'

दर्जनों उद्योगपति ढहती अर्थव्यवस्था पर खुलकर चिंता जाहिर कर रहे हैं. अर्थशास्त्री सरकार को आगाह कर रहे हैं लेकिन सरकार ने इसका उपाय ढूंढने की तरह आपको 5 ट्रिलियन डॉलर का झुनझुना पकड़ा दिया है.

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एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...