रविवार, 23 जून 2019

क्या आप जानते हैं कि देश में सालाना कितने किसान मर रहे हैं?

हमारे सियासी गलियारे में जिसके नाम का नारा लगे, समझिए उसके दुर्दिन आ चुके हैं. किसानों के नाम पर न राजनीति नई है, न किसानों की खुदकुशी का सिलसिला नया है. 

महाराष्ट्र में पिछले चार साल में 12 हजार 21 किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों की कब्रगाह बन चुके महाराष्ट्र में पिछले चार साल से रोजाना 8 किसान खुदकुशी कर रहे हैं.राज्य में इस साल जनवरी से मार्च तक ही 610 किसानों ने आत्महत्या की है.
दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन के दौरान महाराष्ट्र का एक बच्चा. फोटो: रायटर्स 

महाराष्ट्र के राहत और पुनर्वास मंत्री सुभाष देशमुख ने विधानसभा को बताया है कि जनवरी 2015 से दिसंबर 2018 के बीच 12 हजार 21 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें से सिर्फ 6 हजार 888 यानी 57 फीसदी किसानों के परिजन ही आर्थिक सहायता पाने के योग्य पाए गए.

मंत्री जी ने बताया है कि राज्य में किसान आत्महत्या थम नहीं रही है. उनके हिसाब से पिछले चार सालों में हर साल औसतन 3,005 किसानों ने आत्महत्या की है.

महाराष्ट्र भीषण सूखे से जूझ रहा है और ऊपर से किसानों की आत्महत्या के आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं.

इस मामले पर लगातार लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ ने न्यूज क्लिक से बातचीत में दावा किया है कि 'सरकार द्वारा आत्महत्या को लेकर जारी आंकड़े बोगस हैं. ये आंकड़े एनसीआरबी ने नहीं जारी किए हैं. ये आंकड़े राजस्व विभाग के हैं. वास्तविकता में इससे कही ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है. 2014 के बाद से ही वास्तविक आत्महत्या का आंकड़ा पता नहीं चल रहा है. सरकार ऐसा मुआवजा देने से बचने के लिए कर रही है. जिन 12 हजार किसानों की मौत को स्वीकार कर रही है, उसमें से भी सिर्फ आधे लोगों को मुआवजा दिया गया है.'

पी साईनाथ कहते हैं,'इसका सीधा कारण वही है जो पिछले 20 सालों से चला आ रहा है. यानी कृषि संकट. महंगाई बढ़ने से कृषि लागत बढ़ गई है. न्यूनतम समर्थन मूल्य भी किसानों को नहीं मिल पा रहा है. किसानों को बैंक से क्रेडिट नहीं मिल रहा है. मजबूरन किसान साहूकारों की चपेट में आ जाते हैं. अब सरकार में बैठे लोगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह वास्तविक कारण जानना ही नहीं चाह रहे हैं. समस्या का हल निकालना तो दूर की बात है.'

21 जून को छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले से खबर आई कि बीजेपी किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता मोहन राम निराला ने ही फांसी लगाकर जान दे दी. खुदकुशी की वजह कर्ज बताई जा रही है. मोहन राम निराला बीजेपी किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष थे. इस मामले में बीजेपी ने दावा किया कि एक सुसाइड नोट मिला है, लेकिन पुलिस ने इस दावे को खारिज कर दिया.

बीजेपी नेताओं का कहना है कि निराला के शव के पास एक सुसाइड नोट मिला था. नोट में कर्ज से परेशान होकर खुदकुशी करने का जिक्र है. बीजेपी नेताओं का दावा है कि सुसाइड नोट में निराला ने 4 लाख रुपये का कर्ज लेने की बात कही है. बीजेपी ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी गठित की है.

आजतक की खबर में लिखा गया है कि बीजेपी कांग्रेस सरकार को घेरने की योजना बना रही है. लेकिन बीजेपी को यह याद रखना चाहिए कि इस वक्त केंद्र में उसकी सरकार है और किसानों की खुशहाली और दोगुनी आय का दावा पीएम खुद करते रहते हैं.

बीजेपी और कांग्रेस दोनों किसानों के साथ भद्दा मजाक कर रहे हैं. कांग्रेस शासित राज्यों में किसानों की कर्जमाफी का बड़ा शोर मचाया गया. पंजाब सरकार किसानों का कर्ज माफ करने का दावा कर रही है, लेकिन कर्ज माफी के नाम पर आए दिन किसानों के साथ मजाक भी होता रहता है. ताजा मामले में पंजाब के बरनाला के बड़बर गांव में कर्ज माफी के लिए किसानों की लिस्ट बनाई गई है, लेकिन इस लिस्ट में 13 जीवित किसानों को मृत दिखा दिया गया. इस पर किसानों ने एतराज जताया और कहा कि अगर सरकार को कर्ज माफ नहीं करना है तो न करे लेकिन कम से कम उन्हें कागजों में मरा हुआ तो ना दिखाए.

बड़बर गांव के किसान गुरमुख सिंह ने आजतक से कहा कि कर्ज माफी के नाम पर किसानों से पंजाब में सिर्फ मजाक किया जा रहा है. स्थानीय को-ऑपरेटिव सोसाइटी की ओर से जो कर्ज माफी की पहली किसानों की लिस्ट बनाई गई थी उसमें उन्हें कागजों में मृत दिखा दिया गया है. इसके बाद उन्होंने अपने जीवित होने के सबूत बैंक के सामने पेश किए और बड़ी मशक्कत के बाद अपना नाम दूसरी कर्ज माफी की लिस्ट में ऐड करवाया, लेकिन दूसरी लिस्ट में भी उन्हें एक बार फिर से मृत दिखा दिया गया है.

मजे की बात यह है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस किसानों के कर्ज को मुद्दा बना रही है और राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में बीजेपी भी इसे मुद्दा बना रही है. किसान दोगुनी स्पीड से मर रहे हैं और ये दोनों पार्टियां पब्लिक को मूर्ख बना रही हैं.

पी साईनाथ ने मुझसे एक इंटरव्यू में कहा था कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एक बहुत बड़ा घोटाला है. इससे सिर्फ बीमा कंपनियों को फायदा हो रहा है, किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा. उल्टा उनसे भी पैसा वसूला जा रहा है.

किसान संगठनों की समन्वय समिति में सक्रिय योगेंद्र यादव का दावा है कि 'इस देश में सभी तरह की सरकारें आई हैं. अच्छी, बुरी. लेकिन वर्तमान सरकार जैसी झूठी सरकार नहीं आई. नरेंद्र मोदी सरकार साफ़ झूठ बोलती है. ये जुमला चलाते हैं कि किसानों की आय दोगुनी कर देंगे. सरकार का कार्यकाल ख़त्म हो गया लेकिन अब तक इनको यह पता तक नहीं है कि किसानों की आय बढ़ी या नहीं बढ़ी.'

यादव के मुताबिक, 'सरकार की एक उपलब्धि है कि फसल बीमा योजना में सरकार का ख़र्चा साढे चार गुणा बढ़ गया लेकिन उसके दायरे में आने वाले किसानों की संख्या नहीं बढ़ी. फसल बीमा योजना के तहत किए गए किसानों के दावों की संख्या इस सरकार में घट गई है. सरकार कहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य उसने डेढ़ गुणा कर दिया है, ये पूरी तरह झूठ है.'

किसान आत्महत्याओं की कहानियां अंतहीन हैं. एक लेख में नहीं लिखी जा सकती हैं. आप चाहें तो कुछ देर चिंतन कर सकते हैं कि जिस देश में पिछले 20 साल में 3 लाख से ज्यादा किसानों ने कर्ज, सूखा, फसल बर्बाद होने और आर्थिक तंगी के चलते आत्महत्या की हो, उस देश की सरकार ने ​इन आत्महत्याओं का आंकड़ा ही जारी करना बंद कर दिया है.

2015 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चला था कि किसान आत्महत्या की दर 42 फीसदी बढ़ गई है. इसके बाद से सरकार ने आंकड़े नहीं जारी होने दिए. जब तक आंकड़े जारी हुए, त​ब तक खुदकुशी करने वाले किसानों की संख्या 10 से 15 हजार सालाना थी. आज यह 10 हजार है या 20 हजार, किसी को नहीं मालूम है.

समस्या का उपाय करने की जगह यह कोशिश की जा रही है कि समस्या पर बात ही न हो. जिस गति से किसान अपनी जान दे रहे हैं, कोई दूसरा देश होता तो वहां हाहाकार मच गया होता. लेकिन भारत की सियासत से ज्यादा संवेदनहीन भारत की जनता है. आप लिखेंगे कि कि इतनी बड़ी संख्या में किसानों ने खुदकुशी कर ली तो कोई 'सोशल मीडिया वीर' आकर कमेंट बॉक्स में आपके लिए गाली लिख देगा.

लेकिन ​अगर कोई इंसान जिंदा है तो उसे अपने आप से पूछना चाहिए कि जिस देश में सिर्फ एक राज्य में एक सरकार के कार्यकाल में 12 हजार किसान आत्महत्या कर लेते हैं, क्या वह देश सच में मजबूत देश कहलाएगा?


कोई टिप्पणी नहीं:

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...