शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

भ्रष्टाचार से लड़ाई जनता को उल्लू बनाने के लिए लड़ी जाती है

भ्रष्टाचार एक ऐसी लड़ाई है जो भारत में जनता को उल्लू बनाने के लिए लड़ी जाती है। मजे की बात है कि नरेंद्र मोदी एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद, भ्रष्टाचार को ही मुद्दा बनाकर प्रधानमंत्री बने। वे आज भी लगभग अपने हर भाषण में भ्रष्टाचार पर जरूर बोलते हैं। लेकिन उनका पिछले छह साल का कार्यकाल यह गवाही देता है कि जनता को बहुत सफाई से उल्लू बना रहे हैं।
फोटो साभार: गूगल

पिछली बार सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने हथियार में दलाली को वैधानिक दर्जा दे दिया था। दूसरा कारनामा राफेल विमान की खरीद में हुआ। राजीव गांधी के कार्यकाल में बोफोर्स घोटाला हुआ था। उसके बाद की सरकारों ने किसी भी रक्षा खरीद के लिए बहुस्तरीय प्रणाली बनाई थी। इस प्रणाली को काफी पारदर्शी बनाते हुए सरकार ने नियम बनाए थे कि किसी भी रक्षा खरीद में सेना, संसद की सुरक्षा समिति, रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और मंत्रिमंडल की भूमिका होगी, लेकिन मोदी सरकार ने इन नियमों का पालन नहीं किया और ​राफेल की खरीद में जितने सवाल उठे, उनमें से किसी का भी जवाब नहीं दिया, न ही जांच कराई।

फिर इन्होंने लंबे आंदोलन के बाद बने लोकपाल को नहीं लागू होने दिया और अंततः उसमें संशोधन करके उसे कमजोर किया और फिर लागू किया। अब भारत का लोकपाल संस्था वजूद में तो है, लेकिन उसकी कानूनी स्थिति सीबीआई नामक 'पिंजरे के तोते' से अलग नहीं है, क्योंकि लोकपाल को जांच करने का अधिकार प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट के तहत है और इस एक्ट में संशोधन करके सरकार ने यह व्यवस्था कर दी है कि बिना सरकार की अनुमति के कोई जांच नहीं जा सकती।

कई मामलों में जहां भ्रष्टाचार का आरोप लगा, मोदी सरकार ने ऐसे किसी भी मामले की जांच नहीं कराई। चाहे वह सहारा बिरला डायरी हो, चाहे फ्री में जमीन बांटने का मामला हो, राफेल घोटाला हो, व्यापम घोटाला हो, चावल घोटाला हो या फिर चिक्की घोटाला। किसी की न कायदे से जांच हुई न मामला अंजाम तक पहुंचा।

व्यापम शायद दुनिया का एकमात्र घोटाला होगा जिसमें दर्जनों लोग मारे गए।

पहले आडवाणी और फिर मोदी ने स्विस बैंक में काले धन को मुद्दा बनाया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद भारत से बाहर एक भी अकॉउंट चिह्नित नहीं किए गए, उल्टा कई लोग जनता का हजारों करोड़ लेकर भाग गए। जनता की जेब पर डाका डाल कर नोटबन्दी कर दी, जिसका फायदा बताया गया कि आतंकवाद और नक्सलवाद खत्म हो जाएगा। नतीजा हुआ कि अर्थव्यवस्था अपने 20 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है, कश्मीर में जो हो रहा है आप देख ही रहे हैं। नक्सलवाद का क्या बिगड़ा है वह खुद घोषणा करने वाले पीएम साब ही जानते होंगे।

अगला वार हुआ भ्रष्टाचार विरोधी कानून प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट पर। राफेल सौदे के बाद सरकार ने इस एक्ट को बदल कर कमजोर कर दिया। अब सरकार में शामिल किसी आदमी की जांच तब तक नहीं हो सकती, जब तक सरकार अनुमति न दे। अब कौन भ्रष्टाचारी इतना बड़ा महापुरुष होगा जो भ्रष्टाचार करके अपने ही खिलाफ जांच का आदेश देगा? चोर को ही कहा गया है कि तुम चौकीदारी करो।

अगला निशाना बना आरटीआई कानून, जो लंबे संघर्ष के बाद जनता को कानूनी अधिकार के रूप में मिला था। मोदी सरकार ने उस संस्था को कमजोर क्यों किया? जवाब साफ है कि भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए। जनता सब बात को एक आवेदन से जान लेती थी, मोदी जी को यह अच्छा नहीं लगता था।

योजना आयोग को पिछली सरकार ने क्यों भंग किया था यह आजतक रहस्य ही है। उसकी जगह लेने वाले नीति आयोग ने सरकारी संपत्तियां बेचने की सिफारिश के अलावा आज तक क्या किया, कोई नहीं जानता।

सीबीआई, सीवीसी, आरटीआई, लोकपाल, प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट आदि को कमजोर करना, हथियार दलाली वैध करना और किसी भी घोटाले की जांच न होने का आपस मे गहरा संबंध है।

छह साल में ये स्पष्ट हो गया है कि एक पीएमओ के अलावा किसी मंत्रालय का कोई खास मतलब नहीं है। देश की सारी शक्तियां डेढ़ नेताओं और गुजरात कैडर के कुछ अधिकारियों द्वारा संचालित पीएमओ में एकत्र हो गई हैं। अब नया कारनामा होने जा रहा है कि तीनों सेनाओं का एक प्रमुख होगा।

कहने को मोदी के पहले भाषण से लेकर आज अंतिम भाषण तक में भ्रष्टाचार से लड़ने का कड़ा संकल्प मौजूद है।

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नेता में भगवान खोज रहे लोगों की नियति ही है अंत में उल्लू बनना। जो उल्लू बनकर खुश हैं उन्हें आप बधाई दे सकते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...