सोमवार, 12 अगस्त 2019

प्राचीन काल का परमाणु परीक्षण और पोखरियाल का घोड़ा चतुर

एक हैं रमेश पोखरियाल निशंक और वे एक ही हैं. यह भारत देश का सौभाग्य है कि इस बार शिक्षा व्यवस्था की खटिया खड़ी करने का जिम्मा इनको दिया गया है. शायद सीधे सादे आदमी हैं इसलिए पार्टी के एजेंडे पर प्रतिबद्ध होकर लंबा फेंकते तो हैं, लेकिन बारूद ज्यादा डाल देते हैं, इसलिए वार लक्ष्य के पार निकल जाता है.

झूठ बोलने की मुश्किल यह है कि हर बार याद नहीं रहता कि पिछली बार क्या बोला था. रमेश पोखरियाल निशंक इसी फेर में फंसे हैं बेचारे. पिछली बार बीजेपी की सरकार आई तो संसद में बोले कि पहली बार दूसरी सदी में महर्षि कण्व ने परमाणु परीक्षण किया था. फिर बाद में ​बोले कि ऋषि कणाद ने परमाणु परीक्षण किया था. अब आईआईटी में जाकर बोल रहे हैं कि चरक संहिता वाले चरक ऋषि ने परमाणु और अणु की खोज की थी और नासा कह रहा है कि संस्कृत की वजह से बोलने वाला कंप्युटर बनेगा.
फोटो साभार: गूगल

एक तो यह अनमोल हीरा सिर्फ भारत के पास है जिसके मुखारविंद से सिर्फ और सिर्फ विज्ञान और परमाणु तकनीक की जानकारी झरती है. लेकिन हर बार भूल जाते हैं कि​ पिछली बार क्या कहा था, इसलिए एक पे नहीं रह पाते और घोड़ा चतुर घोड़ा चतुर करते रहते हैं.

सुना है कि ये साब दर्जनों किताबों के लेखक हैं लेकिन वे किताबें रद्दी में भी आठ रुपये किलो बिक सकी हैं या दीमकों ने उन्हें अपनी माटी ​में मिला कर 'वाल्मिीकि' बना दिया है, कौन जाने? बस इतना पता है कि इनके लिखे का जिक्र आजतक इस ब्रम्हांड में नहीं हुआ.

योग्यता के हिसाब से तो शिक्षा को बर्बाद करने के लिए निशंक जी एकदम सही आदमी हैं, लेकिन झूठ बोलने की इनकी ट्रेनिंग कमजोर रह गई. इन्हें देशहित में कुछ दिन के लिए संघ की शाखा में जाना चाहिए और राजेंद्र यादव के शब्दों में एकदम 'घाघ, घुन्ना और घुटा हुआ' झुट्ठा बनना चाहिए.

सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम बात यह है कि प्राचीन भारत का ज्ञान विज्ञान उपहास का पात्र नहीं है. उसने अपना लोहा मनवाया है. भारतीय दर्शन में हर विषय में गंभीर विचार हुआ है जिसका अपना वैश्विक महत्व है. हो सकता है कि किसी युग में हम तकनीकी रूप से बेहद वि​कसित रहे हों, लेकिन आज वहां नहीं है. उलूल जुलूल बातें कहने की जगह शोध कार्यों को बढ़ाना चाहिए. क्या कम्प्युटर साइंस और संस्कृत को लेकर भारत में कोई शोध हुआ है? क्या आधुनिक परमाणु तकनीक और वैदिक ज्ञान पर कोई प्रमाणिक शोध हुआ है जो दोनों का आपस में अनन्य संबंध स्थापित करे? अगर हुआ है तो भी, अगर नहीं हुआ है तो भी, निशंक जी को तुरंत इन पर काम शुरू करवाना चाहिए. अभी वे जगहंसाई करवा रहे हैं.

हाल ही में सरकार ने संसद को बताया है कि 'देश की 70 प्रमुख प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिकों के 2911 पद रिक्त हैं.

युवाओं को सुरक्षित भविष्य चाहिए. वे नौकरी की तलाश में इधर उधर भाग रहे हैं. उन्हें शोध करने में अपना भविष्य सुरक्षित नहीं दिखता. निशंक जी मानव संसाधन विकास मंत्री हैं. युवा शोध की तरफ जाएं, नई नई खोज करें, इसके लिए वे क्या कर रहे हैं? जवाब है कुछ नहीं. वे खुद ही इतिहासकार बन गए हैं.

भारत में दक्षिणपंथी राजनीति की यही विडंबना है कि वहां सर्वोच्च नेता से लेकर आम कार्यकर्ता तक सब इतिहासकार और वैज्ञानिक हैं. अमित शाह संसद में आजादी और कश्मीर का अनर्गल इतिहास बता रहे हैं. निशंक जी बाहर विज्ञान का गलत इतिहास बता रहे हैं. कार्यकर्ता व्हाट्सएप पर बाबर अकबर से लेकर सावरकर और नेहरू तक का इतिहास बता रहे हैं और सब मिलकर, इतिहास में लौटकर हिसाब बराबर कर लेने की तैयारी कर रहे हैं.

जिस वक्त बेरोजगार युवा यूपी में आत्महत्या कर रहे हैं, देश भर के प्रतियोगी छात्र रवीश कुमार को प्रोग्राम चलाने का मैसेज कर रहे हैं, दक्षिणपंथी चपेट में आए युवा लिंचिंग और कश्मीर में व्यस्त हैं, उस समय निशंक जी खुद ही इतिहास क्यों बता रहे हैं?

45 साल में सबसे निचले स्तर की रिकॉर्ड बेरोजगारी के दौर में निशंक का मंत्रालय शिक्षा और रोजगार को लेकर सुधार का कौन सा कदम उठाने जा रहा है? यह सब मत पूछिए. बस इतिहास पूछ लीजिए.

प्राचीन भारत का ज्ञान बहुत समृद्ध था तो यह गौरव की बात है. लेकिन आज के ज्ञान युग में आपके वैज्ञानिक या ऐतिहासिक दावों को अगर तार्किक, ऐतिहासिक व वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ पेश नहीं किया गया तो आप मूर्ख कहलाएंगे. दुनिया में जितनी महाशक्तियां हैं वे प्राचीन काल के गौरव के आधार पर महाशक्ति नहीं बनी हैं. वे अपनी आधुनिकतम आर्थिक और तकनीकी क्षमताओं के कारण महाशक्ति बनी हैं. संघ परिवार को यह बात कब समझ में आएगी?


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