गुरुवार, 17 सितंबर 2015

मीडिया और भारतीय मानस की संवेदनाएं

शीना बोरा मर्डर केस में मीडिया ने करीब पखवाड़ा भर खबर चलाई. लेकिन अच्छे दिनों की लहर में कितने हजार किसान मरे, इस पर मीडिया ने कोई चर्चा प्रसारित की, न कोई रिपोर्ट दिखाई. जब यह साल पूरा हो जाएगा तो सरकार आंकड़े जारी कर देगी कि इस साल इतने किसानों ने आत्महत्या कर ली. उसके बाद मामला खत्म हो जाएगा और क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो अगले साल के लिए आंकड़े जुटाएगा.
एक शीना बोरा, एक इंद्राणी मखुर्जी और सवा तीन लाख किसानों की आत्महत्या में आपकी हमारी दिलचस्पी से ही हमारा चरित्र तय होता है. हम हत्याओं से विचलित नहीं होते. हम प्यार, सेक्स और धोखा की कहानियों में मगन रहते हैं. इसलिए एक शीना बोरा एक महीने तक खबर बनती है लेकिन सवा तीन लाख किसानों की सरकारी हत्या पर एक दिन भी हंगामा नहीं होता. देश के नेतृत्व का चरित्र हमारा चरित्र है. उसे देखिए गौर से. हम सब सामूहिक रूप बिल्कुल वैसे ही हैं.
शीना बोहरा या इंद्राणी मामले से तीन लाख किसानों की आत्महत्या की तुलना कीजिए. सोचिए, अगर 20 साल में सवा तीन लाख किसानों की जगह सवा तीन लाख अमीर लोग मर जाएं तो क्या होगा? टेलीविजन पर आपने किसानों की आत्महत्या पर कितने दिन खबरें देखीं? शीना इंद्राणी पर? इन दोनों मसलों पर अखबारों के भी कवरेज देखिए.
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में हर महीने औसतन 69 किसान खुदकुशी कर रहे हैं. इस प्रदेश में इस साल जनवरी से मार्च तक 601 किसान आत्महत्या कर चुके थे. एक तिमाही में 601 तो तीन तिमाही में 1800. पूरे देश में यह आंकड़ा 3000 के पार होगा. यह अभी अनुमान है. आंकड़े अगली साल सरकार जारी करेगी. 2014 में देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की थी. एक साल में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा 20 प्रतिशत तक बढ़ा है. इस पर हमने कितना शोर सुना?
सोचिए, अगर 20 साल में सवा तीन लाख किसानों की जगह अमीर लोग मर जाएं तो क्या होगा? देश में गृहयुद्ध जैसी हालत हो जाएगी? हंगामा मच जाएगा. सरकार गिरने की नौबत आ जाएगी. मतलब यह देश सिर्फ अमीरों का है. मरना किसी को नहीं चाहिए. न अमीर को न गरीब को. लेकिन दोनों के मरने पर हम अलग अलग अनुपात में दुखी होते हैं. हमारी संवेदनाएं भी अमीरीपरस्त हैं.
सीरिया के एक बच्चे की लाश देखकर हम सब द्रवित हो गए. गुस्से में आ गए. क्योंकि उसकी फोटो इंटरनेट पर मिल गई. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल 'द लैंसेट' के मुताबिक, 2015 में भारत में पांच साल की उम्र पूरी करने से पहले 12 लाख बच्चों की मौत हो चुकी है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े कहते हैं कि भारत में हर साल कुपोषण के कारण पांच साल से कम उम्र वाले दस लाख बच्चे मर जाते हैं. यानी करीब साढ़े सत्ताइस सौ रोज. बच्चों की मौत के मामले में भारत पूरी दुनिया में सबसे ऊपर है. आप जानते ही हैं कि भारत आज ही कल में विश्वगुरु बनने वाला है और एक एक जोड़ा दस दस बच्चा पैदा करेगा.
अपने देश में गरीबी और तंगहाली के चलते जिन सवा तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की, उन सबके परिवार थे. अपने परिवार का पेट नहीं पाल सकने के अपराधबोध में उन्होंने आत्महत्या की. वे परिवार और भी बर्बाद हुए. अगर हम सब उनके लिए भी दुखी हुए होते तो किसानों की आत्महत्या के मामले में बढ़ोत्तरी नहीं होती! शायद आप सबकी संवेदना और गुस्से का ख्याल करके सरकारें कुछ करतीं.
इंटरनेट पर वायरल हुई तस्वीर देखकर जो आंसू बहते हैं, वे फैशनेबल आंसू हैं. वरना 20 करोड़ भूखे और हर साल दस—बारह लाख बच्चों की मौत पर हम आप इतने गुस्सा होते और इतना चीखते कि सरकारों के कान के परदे फट जाते.

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