गुरुवार, 17 सितंबर 2015

इस सिस्टम में बोलना मना है

महाराष्ट्र और पश्‍चिम बंगाल के बाद अब उत्तर प्रदेश सरकार सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर आने वाली नागरिक टिप्पणियों से घबरा गई है. यह फिजूल की घबराहट ऐसी बौखलाहट में बदल गई कि एक दलित चिंतक कंवल भारती को सरकार की आलोचना में पोस्ट डालने पर गिरफ्तार कर लिया गया और अब उन पर रासुका लगाने तक की धमकी दी जा रही है. लेखक ने ऐसा क्या कह दिया कि गिरफ्तारी की नौबत आ गई, यह जानने के बाद कोई भी सिर्फ हैरान हो सकता है, क्योंकि लेखक को जिस-जिस टिप्पणी के लिए गिरफ्तार किया गया, उसमें सरकार की मात्र आलोचना भर थी. इस तरह की कार्रवाई का यह पहला मामला नहीं है. इसके पहले पश्‍चिम बंगाल में ममता बनर्जी का कार्टून बनाकर मित्र को ईमेल भेजने वाले जाधवपुर विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र और उनके मित्र को जेल भेज दिया गया था. शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाल ठाकरे की मौत के बाद मुंबई ठप हो जाने को लेकर एक युवती ने फेसबुक पर टिप्पणी की, तो उसे और उस पोस्ट को लाइक करने वाली एक अन्य युवती को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इसी तरह युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को उनके कार्टूनों के आधार पर देशद्रोह के आरोप में जेल भेजा गया और उनकी वेबसाइट को बंद कर दिया गया.
इन सभी मामलों को देखकर तो यही लगता है कि इस लोकतांत्रिक मूल्यों वाले देश में सरकारें नागरिकों के मूलभूत अधिकार-बोलने की आजादी का गला घोंटने को लेकर प्रतियोगिता कर रही हैं. सहज जिज्ञासा हो सकती है कि इन टिप्पणियों में ऐसा क्या था कि सरकारें ऐसी कार्रवाई करने को मजबूर हुईं? इसका जवाब है कि उपर्युक्त सभी मामले कोर्ट में टिक नहीं सके, क्योंकि इन सभी टिप्पणियों में प्रशासन या सरकार की सामान्य आलोचना भर थी, जिसे लेकर ऐसी असहिष्णु कार्रवाइयां की गईं. आज जब दुनिया भर में सोशल साइटों और विभिन्न इंटरनेट माध्यमों पर नागरिक सक्रियताएं ब़ढ रही हैं, लोग जागरूक हो रहे हैं, वे खुलकर सार्वजनिक मंचों से सरकारों की आलोचना करने लगे हैं, क्या इससे भारत में सत्ता पर काबिज लोग भयभीत हैं? इस तरह के हर मामले में प्रशासन की जबरदस्त फजीहत हुई, लेकिन यह सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है. उस पर तुर्रा यह कि समय-समय पर सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की बातें सरकारी महकमों में उठती रहती हैं. हालांकि, यह तब है, जब आज ज्यादातर नेता, मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय के भी आधिकारिक बयान ट्विटर पर जारी किए जाते हैं. हम सभी को यह पता है कि हम जिस तकनीकी युग में प्रवेश कर चुके हैं, वहां इंटरनेट और सोशल मीडिया पर नागरिकों की सक्रियता को अब रोका नहीं जा सकता. बावजूद इसके, सरकारें ऐसी हिमाकत भरी हरकतें कर रही हैं.
दलित चिंतक और लेखक कंवल भारती ने फेसबुक पर लिखा था-आरक्षण और दुर्गा शक्ति नागपाल, इन दोनों ही मुद्दों पर अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार पूरी तरह फेल हो गई है. अखिलेश, शिवपाल यादव, आजम खान और मुलायम सिंह इन मुद्दों पर अपनी या अपनी सरकार की पीठ कितनी ही ठोंक लें, लेकिन जो हकीकत ये देख नहीं पा रहे हैं, (क्योंकि जनता से पूरी तरह कट गए हैं) वह यह है कि जनता में उनकी थू-थू हो रही है और लोकतंत्र के लिए जनता उन्हें नकारा समझ रही है. अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और बेलगाम मंत्री इंसान से हैवान बन गए हैं. ये अपने पतन की पटकथा खुद लिख रहे हैं. सत्ता के मद में अंधे हो गए इन लोगों को समझाने का मतलब है भैंस के आगे बीन बजाना.
उनकी दूसरी टिप्पणी थी-आपको तो यह ही नहीं पता कि रामपुर में रमजान सालों पुराना मदरसा बुलडोजर चलवाकर गिरा दिया गया और संचालक को विरोध करने पर जेल भेज दिया गया, जो अभी भी जेल में ही है. अखिलेश सरकार ने रामपुर में तो किसी भी अधिकारी को निलंबित नहीं किया. ऐसा इसलिए, क्योंकि रामपुर में आजम खान का राज चलता है, अखिलेश का नहीं. इन टिप्पणियों को लेकर किए गए एफआइआर में दूसरी टिप्पणी के अंतिम में एक अतिरिक्त वाक्य है-आजम खान रामपुर में कुछ भी कर सकते हैं, क्योंकि यह उनका क्षेत्र है और उन्हें खुदा भी नहीं रोक सकता है. इसे लेकर आजम खान के सचिव फसाहत अली खान ने रामपुर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि कंवल भारती ने रमजान माह में, आजम खान को खुदा भी नहीं रोक सकता, ऐसा कहकर खुदा की तौहीन की है. उनकी इस टिप्पणी से सांप्रदायिक सौहार्द बिग़ड सकता है. कंवल भारती पर दो वर्गों में वैमनस्य फैलाने के आरोप में धारा-153 ए और धार्मिक भावनाओं का अपमान करने के आरोप में धारा-295 ए लगाई गई. पुलिस ने छह अगस्त की सुबह उन्हें उनके घर से गिरफ्तार कर लिया. हालांकि उन्हें जब कोर्ट पेश किया गया, तो कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए कहा कि फेसबुक पर टिप्पणी करना कोई अपराध नहीं है.
इस मसले पर लेखकों-कलाकारों के संगठन जन संस्कृति मंच की ओर से कहा गया कि भारती ने फेसबुक पर जो कुछ लिखा, उसे देखकर इस आरोप के फर्जीपन को समझा जा सकता है. जिस प्रदेश में दलितों पर भयावह अत्याचारों के खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज कराना दूभर हो, वहां जिस तत्परता के साथ भारती जैसे जुझारू दलित चिंतक के खिलाफ झूठे आरोप दर्ज कर कार्रवाई की गई. हाल के दिनों में, सोशल मीडिया पर टिप्पणी को लेकर कार्रवाई करने के कई मामले सामने आए हैं. सरकारें मानवाधिकार हनन और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने में एक-दूसरे से हा़ेड ले रही हैं. उत्तर प्रदेश सरकार कंवल भारती से माफी मांगे और उन पर दर्ज मुकदमा वापस ले. अन्य संगठनों ने भी आंदोलन की धमकी देते हुए कंवल भारती के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस लेने की मांग की है.
इसके पहले मुंबई में युवतियों और असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी के मामले में भी कोर्ट ने गिरफ्तारी के आधार को ही बेबुनियाद बताकर उन्हें जमानत दी थी. इन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने तल्ख प्रतिक्रिया दी थी. युवतियों की गिरफ्तारी पर काटजू ने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को लिखा-हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, न कि किसी तानाशाही व्यवस्था में. हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है. युवतियों ने मुंबई बंद का विरोध किया था, जो कोई अपराध नहीं है, बल्कि जिसने अपराध नहीं किया, उसे गिरफ्तार करना धारा 341 और 342 के तहत अपराध है. जिन पुलिसकर्मियों व अधिकारियों ने दोनों युवतियों की गिरफ्तारी की है, उन्हें निलंबित कर उनपर मुकदमा दर्ज होना चाहिए. युवतियों आईटी एक्ट की धारा 66-ए के तहत गिरफ्तार किया गया था. इसके दुरुपयोग पर सवाल उठाती एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई इसके बाद सरकार ने दिशा-निर्देश जारी किया कि ग्रामीण क्षेत्र में पुलिस उपायुक्त और महानगरों में पुलिस महानिरीक्षक से नीचे रैंक के अधिकारी इस धारा के तहत गिरफ्तारी का आदेश नहीं दे सकते.
भारतीय राजनीति की इस तरह की गैर सोची-समझी कार्रवाइयों को लेकर आम नागरिक को यह जिज्ञासा हो सकती है कि यदि सरकार के कामकाज की मर्यादित आलोचना पर भी जेल हो सकती है, तो लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी का क्या अर्थ है? यदि सत्ता में बैठे लोग कानून का मखौल उ़डाते हुए इस तरह की हरकतों को अंजाम देंगे, तो कानून का लागू किया जाना कौन सुनिश्‍चित करेगा?
(यह रिपोर्ट सितंबर, 2013 में चौथी दुनिया साप्ताहिक में छपी थी.)

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