गुरुवार, 17 सितंबर 2015

प्रधानमंत्री के नाम खुला खत

आदरणीय प्रधानमंत्री जी
नमस्कार!
कुछ दिन से बहुत परेशान हूं. दिमाग की नसें फटने लगी हैं. चुनाव से पहले आप कहते थे कि अच्छे दिन आने वाले हैं, लेकिन जबसे मैंने होश संभाला है, ऐसे दुर्दिन पहली बार देख रहा हूं. मुझे बहुत डर लगता है. आप कहेंगे क्यों? हाल में तीन बड़े लेखकों की हत्या कर दी गई. अभी अभी कन्नड़ लेखक कलबर्गी की हत्या के बाद केएस भगवान को दो बार धमकी मिली. अब ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त भालचंद नेमाडे को भी जान से मारने की धमकी मिली है. आपने जिस विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन किया, उसमें पूंजीपति थे, हमारे प्रतिष्ठित साहित्यकार नहीं थे लेकिन यह कोई मसला नहीं. हैरत यह है कि आप लगातार इन हत्याओं और धमकियों पर चुप हैं, आपकी सरकार भी, पार्टी भी और आपका संरक्षक संगठन आरएसएस भी. क्या अब हम आइएसआइएस के दौर में पहुंचेंगे? हत्याएं, खून—खराबा आदि तो पहले भी होता रहा है लेकिन इतना भयावह समय नहीं था कि बड़े बड़े लेखकों को सरेआम धमकी देकर मारा जाए. हमारी पीढ़ी जिस भारत में पैदा हुई, वह इतना भयावह नहीं था.
दूसरी डराने वाली बात तो सनातन है. आपके विकास के दावे की बात पीछे छूट गई है. अब पूरे देश में सिर्फ हिंदू—मुस्लिम, गाय—सुअर, मुर्गा—मुर्गी, बकरा—बकरी हो रहा है. कोई क्या खाएगा, यह कोई सरकार कैसे तय करेगी? सरकारें लोगों के किचन और बिस्तर में क्यों घुसना चाहती हैं? आपकी पार्टी के संतों का मन हरदम बच्चा पैदा करने में अटका रहता है. वे विकृति के शिकार हो गए हैं. यह और डरावना है. उनका इलाज कराने के साथ उनको यह समझाने की जरूरत है कि अगर 10—12 बच्चा पैदा करने वाली प्रजाति ताकतवर होती तो एक बार में 12 बच्चे देने वाला सुअर इस धरती का सबसे ताकतवर जानवर होता.
इन सबको अपनी सरकार के आंकड़े दिखाइए कि हर साल 10—12 लाख बच्चे डायरिया, निमोनिया और कुपोषण से मर जाते हैं और 20 करोड़ लोग रोजाना भूखे सोते हैं. उन सबका पेट भर गया तो देश अपने आप ताकतवर हो जाएगा.
तीसरी डराने वाली बात आपके चंडीगढ़ दौरे से जुड़ी है. आप पूरे देश में दौरे करते हैं, पर चंडीगढ़ में आपातकाल जैसी हालत क्यों हो गई? क्या चंडीगढ़ के श्मशानों और स्कूलों से भी आपको खतरा था? वहां पर इतने सारे लोगों को नजरबंद क्यों किया गया? लोगों को इस तरह नजरबंद करने की घटनाएं आपातकाल में हुई थीं, जिसकी कहानी आपकी पार्टी के पितृपुरुष आडवाणी जी अक्सर सुनाया करते हैं. किसी 77 साल के बूढ़े से आपको क्या खतरा उत्पन्न हो गया कि उसे रात को 11.30 बजे उनके घर से उठा लिया गया?
आपको बताना चाहता हूं कि मैंने आपको वोट नहीं दिया था, लेकिन आपसे यह सब कह रहा हूं क्योंकि इस लोकतंत्र के बारे में यह जानता हूं कि जनप्रतिनिधि समग्र जनता का होता है. आप उनकी भी सुरक्षा करें, जो आपकी पार्टी से नहीं हैं, जो आपकी विचारधारा से भिन्न विचार रखते हैं या जिनका खानपान आपसे भिन्न है. हमारे लेखक हमारी विरासत हैं. उन सबको मार दिया जाए तो पटेल या विवेकानंद की आसमान से ऊंची मूर्ति बनवाने का भी कोई लाभ नहीं होगा.
सोच रहा हूं क्या—क्या गिनाऊं. पूरे देश से एक ही दिन में इतनी सारी डरावनी खबरें आती हैं कि रोजनामचा बने तो हर दिन एक महाभारत लिख जाए. आप कहते थे कि आप भारत को आगे ले जाएंगे. यह तेजी से पीछे जा रहा है. हर दिन पिछले दिन से बुरा गुजरता है. महंगाई, बेरोजगारी जाने दीजिए, पहले देश जैसा था, इसे वैसा बने रहने देना ज्यादा जरूरी है. देश का ऐसा विकास न कीजिए जिसमें सब खान—पान की आदतों और आचार—विचार पर लड़ मरें. आप अपने भाषणों में इस देश से जितना प्यार जताते हैं, उसका एक टुकड़ा इस देश की जनता को दे दीजिए तो सब अपने—अपने तरीके से जी लेंगे. हो सके तो इस धरती को जीने लायक बनी रहने दीजिए. देश आपका बहुत शुक्रगुजार रहेगा.
आपका
एक नाचीज नागरिक

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