सुबह के ग्यारह बज रहे थे और बैंक में काफी भीड़ थी। लोग आपस में धक्का-मुक्की कर रहे थे। काउंटर खुले थे और कामकाज करीब-करीब नहीं हो रहा था। एक काउंटर पर एक कर्मचारी लोगों को पैसे बांट रहा था और दूसरा बैठा भीड़ से हंसी-ठहाका कर रहा था। यह मेरे गृह जनपद गोंडा जिले के एक कस्बे में स्थित ग्रामीण बैंक का दृश्य था, जहां मैं अपने दादा जी के साथ बैंक से पैसा निकालने गया था और इंतजार में लगी लाइन का हिस्सा था।
उन दोनों कर्मियों को देखकर मुङो भी वहां मौजूद बाकी लोगों की तरह गुस्सा आ रहा था कि ये सरकारी कर्मचारी होते ही कामचोर हैं। हर कोई परेशान था। ज्येष्ठ की दोपहरी तप रही थी और लोग पसीने -पसीने थे। एक बुजुर्ग महिला, जिसकी उम्र करीब 90 साल के आसपास थी, बैठी हांफ रही थी। उसे उसका पोता गोद में लेकर आया था। वह चार सौ रुपये का निकासी फार्म भरकर बैठी थी और वहां आने को लेकर पछता रही थी। एक महिला जिसकी हाल ही में शादी हुई थी, लोग उसे घूर रहे थे और वह खड़ी-खड़ी कुढ़ रही थी। एक लड़की जो अपने बात-व्यवहार से पढ़ी-लिखी और शहरी लग रही थी, वह दूर से ही से चिल्लाई- क्या सर! कुछ काम धाम भी होगा या नहीं? गप्प मार रहे क्लर्क ने कहा- मैडम सिस्टम खराब है। वह लड़की बोली- मुङो पता है कि ‘सिस्टमज् खराब है। पूरे देश का ‘सिस्टमज् खराब है तो आपकी क्या बात? क्लर्क बोला- आज आप जाइए। कल आइएगा। मैनेजर साहब होंगे। आप अपनी शिकायत दर्ज कराइएगा। मैं भी आपका साथ दूंगा। वह लड़की खड़ी उसे घूरती रही और कहीं नहीं गई। अब तक मैं भीड़ से गप्प मार रहे क्लर्क के और नजदीक आ गया। उससे थोड़ी सी बातचीत के बाद पता चला कि उसने शराब पी रखी है। वह भीड़ को देखकर जसे घबरा रहा था और हर व्यक्ति को यही बता रहा था कि सिस्टम खराब है। अंतत: उसने अनुपस्थित बैंक मैनेजर को फोन मिलाया और कहा कि साहब बिना कंप्यूटर के काम नहीं चल सकता। कम से कम इसे अब ठीक करा दीजिए। उसने झल्ला कर फोन रख दिया। अब तक नशा उसपर पूरी तरह तारी हो चुका था। उसने सामने खड़ी भीड़ से कहा- देख रहे हो? यह दशा है। दफ्तर में छह साल से एक कंप्यूटर नहीं लगा है और राहुल गांधी अभियान चला रहे हैं। वोट पाने और पार्टी बढ़ाने का अभियान। आएं तो बता देना कि तुम्हें क्या चाहिए। इस दौरान मैं सोच रहा था कि नशे में शायद आदमी ज्यादा प्रसंगश: बातें करता है।
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