शनिवार, 28 मई 2011

भोर पहर

भोर पहर 
उतरती है धूप
गमले में लहराती 
किलकती पत्तियों पर 
लगता है उतरा है जीवन 
किसी की रगों के भीतर 
और खिल-खिल गया है 
पंखुड़ियों पर

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