सुरजीत पातर की एक कविता-
मेरी माँ को मेरी कविता समझ न आई
बेशक वोह मेरी माँ बोली में लिखी थी
वो तो केवल इतना समझी
बेटे की रूह को दुःख है कोई
पर इसका दुःख मेरे होते आया कहाँ से
कुछ और गौर से देखी
मेरी अनपढ़ माँ ने मेरी कविता
देखो लोगों
कोख के जाए
माँ को छोड़
दुःख कागज़ को बताते है
मेरी माँ ने कागज़ उठा सीने से लगाया
शायद ऐसे ही कुछ
करीब हो मेरा जाया
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