शनिवार, 11 अगस्त 2018

पिछले 70 साल में क्या हुआ?

पिछले 70 सालों में वह सब हुआ है, जिसकी आज के नेता कल्पना भी नहीं कर सकते.

अभी तक पूछा जा रहा था कि पिछले सत्तर सालों में क्या हुआ? अब पूछा जा रहा है कि पिछले चार सालों में क्या हुआ? पिछले चार सालों में जो हुआ है वह तो आप सभी जानते हैं. लेकिन पिछले सत्तर सालों में क्या हुआ, इस पर निगाह डालनी जरूरी है.

1947 में जब देश आजाद हुआ तब यह देश सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में था. दो देशों के बीच बड़ी संख्या में पलायन हो रहा था. पूरा देश छोटे छोटे रजवाड़ों में बंटा था. पाकिस्तान से साठ लाख शरणार्थी भारत आए थे, उनका पुनर्वास एक चुनौती थी. मुस्लिमों की सुरक्षा, हिंसा पर नियंत्रण, पाकिस्तान से युद्ध से बचाव, कम्युनिस्ट विद्रोह पर नियंत्रण, राजनीतिक स्थिरता, प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण, देश की सुरक्षा और स्थायित्व जैसी चुनौतियां थीं. 70 प्रतिशत जमीनों पर जमीदारों का कब्जा था. करीब करीब पूरा भारत अनपढ़ था. देश सूखा, महामारी, बीमारी, भुखमरी आर्थिक पिछड़ापन, गरीबी और सामाजिक विषमता से जूझ रहा था. अंग्रेजी विरासत में भारतीयों को एक खोखला और टूटा हुआ देश हम भारतीयों को सौंपा गया था.

1943 में बंगाल में सूखा के चलते करीब 30 लाख लोग मारे गए थे. देश की जीवन प्रत्याशा मात्र 32 साल थी. देश की जनता का अधिकांश हिस्सा दोनों वक्त खाना नहीं खा सकता था, दरिद्रता इस हद तक थी. विशाल समस्याओं के पहाड़ तो थे लेकिन नेहरू के अलावा तमाम महान नेताओं की फौज खड़ी थी. राष्ट्रीय आंदोलन की राष्ट्रवादी विरासत थी. सबने मिलकर इस देश को खड़ा किया.

इसके अलावा दो बड़ी चुनौतियां थीं. हिंदूवादी और संघ परिवारी तिरंगे की होली जला रहे थे, गांधी की हत्या करके मिठाइयां बांट रहे थे, आजादी को झूठा बता रहे थे, मनुस्मृति लागू करने की मांग कर रहे थे, तो दूसरी तरफ कम्युनिस्ट भी इस आजादी को नहीं मान रहे थे. फरवरी 1948 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आम क्रांति की घोषणा करते हुए उग्र आंदोलन शुरू कर दिया.

लेफ्ट विंग और राइट विंग में अंतर सिर्फ इतना था कि लेफ्ट विंग के लोग बढ़ चढ़ कर आजादी आंदोलन में शामिल थे, जबकि आरएसएस के हिंदूवादी शाखा लगा रहे थे. कांग्रेस में जो हिंदूवादी विचार के लोग थे, उनकी बात दीगर है.

तमाम समस्याओं के रहते हुए क्या हुआ?

इन समस्याओं से पूरा देश मिलकर लड़ा. देश की नींव की पहली ईंट के रूप में भारत का संविधान बना और लागू हुआ और भारतीय गणराज्य की स्थापना हुई. पांच सौ टुकड़ों में बंटे भूभाग का एकीकरण हुआ. सबके लिए एक समान कानून के शासन की स्थापना हुई. समता, बराबरी, शिक्षा, अभिव्यक्ति और जीवन के अधिकार सबके लिए सुरक्षित किए गए. राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया की स्थापना करते हुए राष्ट्रीय राजसत्ता को विकास एवं सामाजिक बदलाव के उपकरण के रूप में विकसित और सुरक्षित रखना सुनिश्चित किया गया.

भारतीयता की परिभाषा लिखी गई. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना हुई. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक क्रांति का आधार तैयार किया गया. कृषि, उद्योग, तकनीक, विज्ञान, यातायात, संचार और अर्थव्यवस्था का खाका तैयार हुआ. महिलाओं, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और वंचितों के लिए समान अधिकार की आधारशिला रखी गई. प्रेस की आजादी बहाल हुई. स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना हुई.

 देश में पांच आईआईटी की स्थापना हुई, आईआईएम बने. परमाणु उर्जा आयोग की स्थापना नेहरू के ही समय हो गई थी. एक देश के निर्माण की प्रक्रिया के साथ ही वह होमी भाभा के नेतृत्व में परमाणु उर्जा के बारे में भी सोच रहा था. एशिया का पहला परमाणु रिएक्टर 1956 में बंबई में काम करना शुरू कर चुका था. 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए इसरो की स्थापना की गई.

आजादी मिली तो देश में मात्र 18 विश्वविद्यालय थे. 1964 तक नेहरू सरकार ने 54 विश्वविद्यालय और 2500 कॉलेज खोले. आजादी के समय मात्र 16 प्रतिशत लोग साक्षर थे. आज कम से कम तीन राज्यों में सौ प्रतिशत शिक्षा दर है. शहरी विकास, ग्रामीण विकास, सामुदायिक विकास कार्यक्रम, पंचायती राज आदि की नींव रखी गई.

पिछले सत्तर सालों में वह वह हुआ, जिसके बारे में आप सिर्फ कल्पना कर सकते हैं और वह भी आपकी क्षमता से परे है. लगभग निरक्षर देश में महान नेताओं ने तय किया कि एक जनवादी और समान नागरिक अधिकारों पर आधारित समाज का निर्माण किया जाएगा और एक जनवादी राजनीतिक व्यवस्था के अंदर आर्थिक विकास होगा. अंबेडकर का नारा लगाना और इस बात को समझना दो अलग बाते हैं.

लोगों में लोकतांत्रिक चेतना विकसित करने के तमाम उपाय किए गए. लोगों में सुनहरे भविष्य की आकांक्षा जगाई गई. जातीय, धार्मिक और भाषाई टुकड़ों में बंटे देश को यथासंभव एकता के सूत्र में पिरोया गया. उद्योग, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, प्रशासन, कृषि, स्वास्थ्य, उत्पादन सबकी नींव रखी गई. 1951 में देश में कुल 18000 डॉक्टर थे. अधिकांश शहरों में रहते थे. अस्पतालों की संख्या मात्र 1900 थी. अधिकांश शहर भी बिना बिजली के थे. जलापूर्ति जैसा शब्द शायद किसी ने सुना हो.

लेकिन देश भर में बड़े बड़े बांध बनाए गए. विश्वविद्यालय खोले गए. उद्योगों की स्थापना हुई. वैज्ञानिक संस्थान खोले गए. सभी क्षेत्रों में तमाम संस्थाओं की स्थापना हुई. विदेश नीति की स्थापना हुई. भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अगुआ देशों में था. सरकारी नियंत्रण में बड़ी बड़ी कंपनियों की स्थापना हुई जिसे आज सरकार पूंजीपतियों को बेचने के लिए ललचा रही है. सिर्फ नेहरू ने अपने ही कार्यकाल में भारत को एक दरिद्र कुनबों के देश को एक विकासशील देश में तब्दील कर दिया था.

सत्तर सालों की बात जाने दें, सिर्फ नेहरू कार्यकाल में इतना हुआ कि उसके बाद वैसे विजन का कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ. कुछ हजार गांवों में बिजली पहुंचाने का गाना गाने के दौर में याद रखना चाहिए कि जिस नींव पर यह देश सुपर पावर बनने जा रहा है, उसकी नींव शुरुआती दस सालों में ही रख दी गई थी. पूरे भारत का निर्माण करने के लिए. बाद की पीढ़ी के नेताओं ने सिर्फ उस मजबूत नींव को दरकाने की ही कोशिश की, चाहे वह स्वनामधन्य दुर्गा बनीं इंदिरा गांधी हों, या विष्णु अवतार बने नरेंद्र मोदी.

समस्याएं इतनी थीं कि दुनिया भर के विद्वान कहते फिर रहे थे कि न तो आजादी, न ही लोकतंत्र भारत में लंबे समय तक रह पाएगा. देर सवेर भारतीय राजनीतिक व्यवस्था ढह जाएगी. 1960 में अमेरिकी विद्वान पत्रकार सेलिग एस हैरिसन भविष्यवाणी कर रहे थे कि 'बाधाएं करीब करीब पूरी तरह आजादी के जीवित रहने के खिलाफ हैं और मुद्दा यह है कि वस्तुत: क्या कोई भारतीय राजसत्ता बिल्कुल जीवित रह पाएगी या नहीं? (आजादी के बाद भारत, बिपन चंद्र)

1967 में टाइम्स अखबार के संवाददाता नेविल मैक्सवेल ने लेखों की सीरीज लिखी 'इंडियाज डिसिंटिग्रेटिंग डेमोक्रेसी', इसमें उन्होंने कहा कि 'एक लोकतांत्रिक ढांचे के अंदर भारत को विकसित करने का महान प्रयोग असफल हो गया है.' इसके बाद जब आपातकाल लगा तब भी यही बात कही गई कि भारत को लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का प्रयोग असफल हो गया है. लेकिन क्या आज कोई कह सकता है कि भारत लोकतांत्रिक देश नहीं है?

जब हमने 21वीं सदी में कदम रखा तो पूरी दुनिया में भारत के महाशक्ति बनने का रास्ता साफ हो गया था. भारत के सुपर पॉवर बनने की चर्चा तब शुरू हो गई थी जब मनमोहन सिंह की अगुआई में भारत अमेरिका से परमाणु समझौता कर रहा था. जाहिर है कि सुपरपॉवर बनने की आधारशिला गाय, गोबर, दंगा और लिंचिंग नहीं हो सकती. नेहरू से लेकर अब तक के सारे प्रधानमंत्री गोरक्षा करते और गोमूत्र के ब्रांड एंबेस्डर बन जाते तब तो फिरंगियों की भविष्यवाणी के मुताबिक, सच में यह देश निपट गया होता.

यह कहना बहुत आसान है कि फलां काम आजादी के सत्तर साल बाद पहली बार हो रहा है. लेकिन ठहर कर यह सोचना चाहिए कि सत्तर साल पहले हर काम पहली ही बार हो रहा था. किसी देश की यात्रा कर आना कठिन काम हो सकता है लेकिन विदेशों में एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता लेना निश्चित रूप् से कठिन काम रहा होगा. सिक्किम या अरुणालच में पहली बार जहाज उतार देना मुश्किल काम है, लेकिन जहाज सेवा और उड्डयन की शुरुआत उससे भी कठिन रहा होगा. आधी रात को किसी सरकारी नीति का उत्सव मनाना कठिन हो सकता है, लेकिन नीतियां बनाकर लागू करने लायक देश और व्यवस्था बनाना निश्चित तौर पर इससे कठिन काम रहा होगा.

तो भारत में पैदा होने को लेकर शर्मिंदगी महसूस न करें. खासकर विदेश जाएं तो यह न कहें कि भारत में पैदा होकर शर्म आती थी. इस देश का इतिहास अपनी लाख खामियों, कमजोरियों और कमियों के साथ महान है और उम्मीद है कि आने वाला कल आज से बेहतर होगा!





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