सोमवार, 25 जनवरी 2016

संघ परिवार का सुभाष प्रेम

इंडियन आर्मी जब भारत की ओर कूच करने वाली थी, उसके पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रंगून में रेडियो पर भाषण दिया था. इस भाषण में उन्होंने गांधीजी को 'फादर ऑफ नेशन' यानी राष्ट्रपिता बताया था और आईएनए के सैनिकों से कहा था कि जब भी आप भारत की सीमा में दाखिल होंगे, आपका 'कमांडर इन चीफ' मैं नहीं रहूंगा, बल्कि गांधीजी रहेंगे.
गांधी और सुभाष 36 का आंकड़ा था. घनघोर विरोध के बावजूद नेताजी, गांधी जी को फादर आॅफ नेशन बोल रहे थे. आज आप सरकार आलोचना करने पर राष्ट्रद्रोही करार दिए जाते हैं और प्रताड़ना झेलते हैं.
संघ परिवार को सुभाष बाबू तो कभी मिले नहीं, लेकिन सर्वसुलभ गांधी मिले जिनकी उन्होंने हत्या कर दी. तिरंगे को नकार दिया. संविधान को नकार दिया. आजादी को नकार दिया. उन्होंने भगवा झंडा और हिंदू राष्ट्र मांगा. यह हुज्जत आजादी की लड़ाई में नाखून तक न कटवाने के बावजूद थी. जिन्ना की मुस्लिम लीग को मुस्लिम राष्ट्र चाहिए था, सावरकर और गोलवलकर के संघ को हिंदू राष्ट्र चाहिए था. नास्तिक जिन्ना ने मुसलमानों को मुस्लिम राष्ट्र के लिए बहकाया. नास्तिक सावरकर ने हिंदू राष्ट्र की थ्योरी दी. जिन्ना सफल हुए, लेकिन संघ को सफलता नहीं मिली. संघ का वह अभियान तब सफल नहीं हुआ लेकिन अब तक चल रहा है. कभी नमाज नहीं पढ़ने वाले, बीफ, पोर्क, दारू सबका सेवन करने वाले जिन्ना को जब मुस्लिम राष्ट्र मिल गया तब उन्होंने पाकिस्तानियों से कहा, अब हिंदू मुसलमान सब अपने अपने पूजाघरों में जाने को आजाद हैं. संघ परिवार हिंदू राष्ट्र का अभियान भी चलाता है और लोकतंत्र का सबसे बड़ा ​पुरोधा भी बनता है. ​इस देश में जिस पार्टी और संगठन को मुसलमानों से सबसे ज्यादा दिक्कत है, उसके लोग पाकिस्तान और बांग्लादेश को भारत में मिलाकर अखंड भारत की बात करते हैं.
इन्हीं पाखंडों और विरोधाभासों की वजह से भारत की जनता ने इन्हें नकार दिया था. चार—पांच दशक गुजर जाने के बाद संघ परिवार ने जनता को मूर्ख बनाने की रणनीति अपनाई और सबसे बड़े राष्ट्रवादी हो गए. जिस संघ के नागपुर मुख्यालय पर कुछ साल पहले तक तिरंगे की जगह भगवा फहराया जाता था, उस संघ के लिए अब राष्ट्रीय झंडा और राष्ट्रगान उपद्रव का जरिया है. तिरंगे और राष्ट्रगान के बहाने लेकर संघी रोज ही देशभक्ति का प्रमाण पत्र बांटते फिरते हैं.
मोदी की अगुआई में अब संघ परिवार आंबेडकर, गांधी, भगत सिंह, पटेल, सुभाष—सबके नाम का नारा लगाता है. लेकिन आंबेडकर के विचारों को मानने वाले एक संगठन के पीछे पूरी सरकार पड़ जाती है. एक युवा के खिलाफ पूरी सरकार खड़ी हो जाती है और वह आत्महत्या कर लेता है. फिर उनका नेता आंसू भी टपका देता है. गांधीवादी संदीप पांडेय को नक्सली और देशद्रोही कहकर बीएचयू से बाहर कर दिया जाता है. सुभाष और भगत सिंह में विश्वास करने वाले साई बाबा को जेल में डाल दिया जाता है. उनकी गिरफ्तारी को गलत कहने पर अरुंधति राय पर मुकदमा करने का आदेश पारित हो जाता है. राजनीतिक उन्माद का विरोध करने वालों को सरेआम गालियां दी जाती हैं. आंबेडकर फाउंडेशन को आंबेडकर साहित्य प्रकाशित करने की इजाजत नहीं दी जाती. किस थ्योरी के तहत देश भर में प्रतिष्ठित और विश्वसनीय पत्रकारों की जमात को देशद्रोही, नक्सली और कांग्रेसी घोषित कर दिया गया, इस पर जरा सोचिएगा. रजत शर्मा और सुधीर चौधरी को छोड़कर पूरा मीडिया राष्ट्रद्रोही और कांग्रेसी हो गया तो यूपीए सरकार के दस साल के कार्यकाल में घोटाले हेडिंग कैसे बनते रहे?
आंबेडकर, भगत सिंह, गांधी और सुभाष में से कौन सांप्रदायिक था? कौन मुसलमान शब्द तक से घृणा करता था? सुभाष के विचारों, योगदान और कार्यों पर चर्चा न करके सिर्फ उनकी रहस्यमय मौत पर चर्चा करना, फर्जी चिट्ठियां और फोटोशॉप्ड आइटम वायरल करना संघियों के 90 साला कुत्सित अभियान का हिस्सा भर है. वे नेहरू गांधी पर हजारों फोटोशॉप प्रसारित कर चुके हैं.
संघ परिवारी आजादी आंदोलन के नायकों से कितना प्यार करते हैं, यह अब भी आप नहीं जानते तो आप बहुत भोले हैं और मूर्ख बनाये जाने के लिए अभिशप्त हैं. उन्हें तो ​उन्माद फैलाने के कारण चाहिए, मंदिर नहीं, तो गाय सही. गोडसे नहीं, तो सुभाष सही.
संघ परिवारी किसी से ज्यादा प्रेम दिखाएं तो उनपर शक कीजिए. उनसे जिनका भी विरोध है, वह इसी कारण है कि उनका मकसद बेहद कुत्सित है. वरना दीगर विचारधाराओं का सम्मान इस देश की विरासत में है. उनकी विचारधारा ही इस देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है. सबसे बड़ा इसलिए कि वे मुख्यधारा की राजनीति में हैं और बहुसंख्या को प्रभावित कर सकते हैं. ऐसी विचारधारा से होशियार रहने की जरूरत है जो अपने पार्टी नेता के विरोध को राष्ट्रद्रोह बताती हो, जो लोकतांत्रिक चर्चाओं को नक्सलवाद बताती हो.  

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