पिछले कुछ महीनों में राष्ट्रवादी फैक्ट्री के फूहड़ सिपाहियों ने जवाहर लाल नेहरू के कुछ पत्र जारी किए. हाल में सुभाष चंद्र बोस के बहाने नेहरू पर फिर अनाप शनाप कोशिश की गई. होता यह है कि भाई लोग फोटोशॉप पर एक पुराना पत्र तैयार करते हैं कि यह नेहरू का है. लेकिन हर बार पकड़े जाते हैं.
नेहरू बुरा प्रधानमंत्री हो सकता है, लेकिन वह भारत का निर्माता है. नेहरू नीतिगत गलतियां कर सकता है, भारत में संसदीय परंपरा की पहली ईंट रखने वाला व्यक्ति है. नेहरू को हम नापसंद कर सकते हैं, लेकिन वह योग्य अौर पढ़ा लिखा था. राजनीति के शीर्ष पर होकर भी उसने कई अमूल्य किताबें लिखीं. नेहरू की कोई एक किताब मूल्य के स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नब्बे साल के साहित्य से श्रेष्ठ साबित होती हैं. क्योंकि विविधता, लोकतंत्र, उदारता, बराबरी आदि मूल्यों की वाहक हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक किताब लिखी है जिसमें वे कहते हैं कि मैला ढोने वालों को ऐसा करके आध्यात्मिक सुख मिलता है.
हो सकता है कि नेहरू मूर्ख भी रहे हों, लेकिन उन्होंने तक्षशिला को बिहार में कभी नहीं ला पटका, न ही पूरे देश को झूठ के समन्दर में डुबाने की कोशिश की और न ही अपने भाषणों के कारण प्रधानमंत्री रहते हुए चुटकुला बने.
मध्यम मार्ग पर चलने वाला एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत बनाने में सबसे बड़ा योगदान नेहरू का है. नेहरू और गांधी बुरे नेता हो सकते हैं, लेकिन उनके भारत में सबके लिए जगह थी, उनकी नजर में न कोई कुत्ता था, न कोई कुत्ते का बच्चा.
ऐसे व्यक्ति को वे लोग बदनाम करना चाहते हैं जो जवाहरलाल की स्पेलिंग नहीं जानते. दुखद है कि वे ऐसी फिजूल की चर्चाओं में लोगों को उलझाए रखना चाहते हैं.
सही चीज के लिए लडि़ए. अपनी फ्रस्ट्रेशन इस तरह निकालने की कोशिश में आप पकड़े जाते हैं और आपकी फ्रस्ट्रेशन और ज्यादा बढ़ जाती है.
यदि नेहरू, गांधी, कांग्रेस, सुभाष सबको नकार दिया जाए तब सवाल उठेगा कि संघ ने क्या किया?
संघ के हिस्से में तीन उपलब्धियां हैं:
1. सावरकर का जेल में अंग्रेजों से माफी मांग कर छूट जाना और फिर पूरे आजादी आंदोलन में संघ का किसी तरह के संघर्ष से दूर रहना.
2. अपनी घृणास्पद मानसिकता को मूर्तरूप देते हुए गांधी की हत्या
3. आजादी के बाद भी देश को हिंदू-मुसलमान में बांटने की लगातार कोशिश. यह कमंडल से होते हुए गाय तक पहुंच चुकी है.
संघ जितना बड़ा और ताकतवर संगठन है, उसका देश के इतिहास में सबसे बड़ा योगदान हो सकता था. आजादी की लड़ाई में उनकी सारी ऊर्जा बर्बाद हुई, लेकिन उन्होंने उससे कोई सबक नहीं लिया. हिंदू—मुसलमान दो अलग देश हैं, यह द्विराष्ट्र सिद्धांत इतना खतरनाक साबित हुआ कि सरकारी आंकड़ों में दस लाख लोगों का खून बहा. देश के दो टुकड़े हुए, फिर धर्म के आधार पर बना पाकिस्तान ध्वस्त हो गया. संघ परिवारी अब भी धर्म के आधार पर देश बनाने की खब्त से बाहर आने को तैयार नहीं हैं.
नेहरू, गांधी, सुभाष और पटेल जैसे बड़े नेताओं के आगे संघ पूरा संगठन बहुत बौना और निष्प्रभावी हैं. उन्हें इन कुत्सित कोशिशों से उबर जाना चाहिए.
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ कथित नेहरू का पत्र जिसमें एक दर्जन से ज्यादा गलतियां हैं. |
हो सकता है कि नेहरू मूर्ख भी रहे हों, लेकिन उन्होंने तक्षशिला को बिहार में कभी नहीं ला पटका, न ही पूरे देश को झूठ के समन्दर में डुबाने की कोशिश की और न ही अपने भाषणों के कारण प्रधानमंत्री रहते हुए चुटकुला बने.
मध्यम मार्ग पर चलने वाला एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत बनाने में सबसे बड़ा योगदान नेहरू का है. नेहरू और गांधी बुरे नेता हो सकते हैं, लेकिन उनके भारत में सबके लिए जगह थी, उनकी नजर में न कोई कुत्ता था, न कोई कुत्ते का बच्चा.
ऐसे व्यक्ति को वे लोग बदनाम करना चाहते हैं जो जवाहरलाल की स्पेलिंग नहीं जानते. दुखद है कि वे ऐसी फिजूल की चर्चाओं में लोगों को उलझाए रखना चाहते हैं.
सही चीज के लिए लडि़ए. अपनी फ्रस्ट्रेशन इस तरह निकालने की कोशिश में आप पकड़े जाते हैं और आपकी फ्रस्ट्रेशन और ज्यादा बढ़ जाती है.
यदि नेहरू, गांधी, कांग्रेस, सुभाष सबको नकार दिया जाए तब सवाल उठेगा कि संघ ने क्या किया?
संघ के हिस्से में तीन उपलब्धियां हैं:
1. सावरकर का जेल में अंग्रेजों से माफी मांग कर छूट जाना और फिर पूरे आजादी आंदोलन में संघ का किसी तरह के संघर्ष से दूर रहना.
2. अपनी घृणास्पद मानसिकता को मूर्तरूप देते हुए गांधी की हत्या
3. आजादी के बाद भी देश को हिंदू-मुसलमान में बांटने की लगातार कोशिश. यह कमंडल से होते हुए गाय तक पहुंच चुकी है.
संघ जितना बड़ा और ताकतवर संगठन है, उसका देश के इतिहास में सबसे बड़ा योगदान हो सकता था. आजादी की लड़ाई में उनकी सारी ऊर्जा बर्बाद हुई, लेकिन उन्होंने उससे कोई सबक नहीं लिया. हिंदू—मुसलमान दो अलग देश हैं, यह द्विराष्ट्र सिद्धांत इतना खतरनाक साबित हुआ कि सरकारी आंकड़ों में दस लाख लोगों का खून बहा. देश के दो टुकड़े हुए, फिर धर्म के आधार पर बना पाकिस्तान ध्वस्त हो गया. संघ परिवारी अब भी धर्म के आधार पर देश बनाने की खब्त से बाहर आने को तैयार नहीं हैं.
नेहरू, गांधी, सुभाष और पटेल जैसे बड़े नेताओं के आगे संघ पूरा संगठन बहुत बौना और निष्प्रभावी हैं. उन्हें इन कुत्सित कोशिशों से उबर जाना चाहिए.
9 टिप्पणियां:
सही चीज के लिए लडि़ए. अपनी फ्रस्ट्रेशन इस तरह निकालने की कोशिश में आप पकड़े जाते हैं और आपकी फ्रस्ट्रेशन और ज्यादा बढ़ जाती है.
कृष्ण कांत जी राष्ट्रवादियों की जगह इन संगठनों को छदम राष्ट्रवादी कहना ज्यादा ठीक न होगा!
बहुत बढिया लेख
लम्पट संस्कृति के वाहक हैं।
लम्पट संस्कृति के वाहक हैं।
बहुत ही बढ़िया लेख ।
बहुत सटीक विश्लेषण....पर पब्लिक सब जानती है. ..इतिहास को बदला नहीं जा सकता है. ....
सटीक औऱ सामयिक विश्लेषण।
जब.बोलने को लब आज़ाद हैं तो क्या झूठ भी नहीं बोला जा सकता ?
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