सोमवार, 23 मार्च 2015

मनमोहन की चुप्पी, मोदी का शोर

जैसे मनमोहन की चुप्पी किसानों को लील रही थी, ठीक वैसे ही मोदी के भाषणों का शोर किसानों को लील रहा है. एक जनवरी से अब तक 200 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. एक जनवरी से 45 दिन के भीतर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में 93 किसानों ने आत्महत्या की. 
उरई में फसल बर्बाद होने के सदमे में नरेंद्र कुशवाहा 35 ने कल सोमवार को आत्महत्या कर ली. रविवार को मध्य प्रदेश के खंडवा में एक किसान ने आत्महत्या कर ली. पिछले हफ्ते हमीरपुर के कुनैठा गांव के किसान इंद्रपाल ने बढ़ते कर्ज और फसल की बर्बादी से परेशान होकर खेत में फांसी लगा ली. हमीरपुर के ही सुमेरपुर परहेटा के 68 वर्षीय किसान राजाभैया तिवारी को खेत में दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई. उन्नाव के पूराचांद निवासी विरेंद्र सिंह को दिल का दौर पड़ने से खेत में ही मौत हो गई. 
आप याद कर सकते हैं कि विजय माल्या जैसे उद्योगपति खुद को दिवालिया घोषित करते हैं तो भारत सरकार अरबों देकर उन्हें उबार लेती है. मोदी जब तीन देशों की यात्रा में अपना पिटारा खोले धन लुटा रहे हैं, अमेरिकी कंपनियों के लिए 1500 करोड़ का बीमा पूल बना रहे हैं, अडानियों को क़र्ज़ दे रहे हैं, तब देश में किसान कर्ज और फसल बर्बाद होने के कारण खुदकुशी कर रहे हैं. जब हमारे प्रधानमंत्री दुनिया भर के धनपशुओं से कहते फिर रहे हैं कि हमारे यहां आओ, सस्ती जमीन, बिजली, पानी सब देंगे और धंधा डूबने नहीं देंगे, तब हमारे लिए खून पसीना बहाकर रोटी उगाने वाला किसान आत्महत्या कर रहा है.
हम आप जब तक मनुष्य रहेंगे, तब तक कार या बुलेट ट्रेन का डिब्बा नहीं खाएंगे. न यूरेनियम खाएंगे. न मेक इन इंडिया के तहत बने कल पुर्जे खाएंगे. हम आप रोटी ही खाएंगे जो किसान उगाते हैं. एक जनवरी से अबतक 200 किसानों ने कर्ज और फसल बर्बाद होने के चलते आत्महत्या कर ली है. 
फसलें बर्बाद होती हैं तो किसानों को सदमा लगता है. उनकी आंखों में गरीबी का अंधेरा छा जाता होगा. उनके जेहन में भूखे बच्चों की चीखें सुनाई देती होंगी. कर्जदाता का डंडा उनका दिल दहलाता होगा. वे भय से फांसी लगा लेते हैं. फिनायल पी लेते हैं. वे रोज की मौत से डरकर ही मौत को गले लगा लेते हैं.
किसी देश में इससे बुरा कुछ नहीं होता कि कोई गरीबी, कर्ज या भूख से मर जाए. यह सामान्य बात नहीं है कि उदारीकरण लागू होने के बाद से देश के सरकारी रिकॉर्ड में करीब तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की. इन आंकड़ों के साथ भी राज्य सरकारें बाजीगरी करती हैं, यह बात पी साईनाथ साबित करते रहे हैं. किसान कर्ज से मरता है तो सरकारें उसे बीमारी से हुई मौत साबित करने का प्रयास करतीं हैं. संसद में बदजबानी करने वालों में से कोई एक नेता नहीं है जो पूरे दम से कह सके कि मेरे देश के किसानों, अब फांसी लगाना और फिनायल पीना बंद करो. तुम्हारी फसलें बर्बाद हो जाएंगी तब भी तुम्हारे बच्चों को मरने नहीं देंगे. 
जब आपका प्रधानमंत्री दुनिया भर के उद्योगपतियों को औद्योगिक सुरक्षा का भरोसा दिला रहा है, तब फांसी लगा रहे किसानों को सांत्वना देने वाला कोई नहीं है. हमारे सांसद कुछ अश्लील टिप्पणियों और बहसों में व्यस्त हैं. किसानों और गरीबों के लिए क्या मूक मनमोहन, क्या वाचाल मोदी! कोई अंतर नहीं आया.
मैं शर्मिंदा हूं कि इन मौतों पर बात कर सकने लायक नेतृत्व हमारे पास नहीं है.
प्रधानमंत्री ने कॉरपोरेट को सुरक्षा देने के लिए अपनी पूरी 'स्किल' लगा दी है. पूंजीपतियों ने इसे अपने 'स्केल' पर खूब सराहा है. किसानों के मरने की 'स्पीड' वैसे ही बनी हुई है. महाराष्ट्र में 1 जनवरी, 2015 से 27 फरवरी, 2015 के बीच औरंगाबाद क्षेत्र के 135 किसानों ने आत्महत्या की. इस बीच दस साल कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने एक कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना की जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया. दोनों ने एक दूसरे की तारीफ की, एक दूसरे को किसान हित चिंतक बताया और इन मौतों का कोई जिक्र तक नहीं किया. सरकारी रिकॉर्ड में शरद पवार के कृषि मंत्री रहते करीब दो लाख किसानों ने कर्ज और गरीबी से आत्महत्या की. इस बात का भी कोई जिक्र नहीं हुआ. 
इन परिस्थितियों के बीच गाय बचाने का सरकारी अभियान जोरों पर है. किसान मरता है तो मरने दो. गाय बचा लो. गाय में धरम है इसलिए लोगों को मूरख बनाया जा सकता है. अफीम खाए लोगों का झुंड गाय बचाने दौड़ पड़ा है. इस झुंड को कोई बताओ कि क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने जो तीन लाख किसानों की आत्महत्याएं दर्ज की हैं, उनपर आपकी सरकार बात तक करने को तैयार नहीं है. आप भी मौन रहिए. किसानों के मरने में उन्माद नहीं है. उसमें मूर्खता की हद तक ईसाई या मुस्लिम विरोध नहीं है. किसानों की खुदकुशी के नाम पर कोई दंगा भी नहीं हो सकता. अलबत्ता मुर्गी की गर्दन को गाय की गर्दन बताकर दंगा एकदम संभव है. आपका धरम इंसानों को मरने देता है, गाय बचाने दौड़ लेता है. इस भीड़ में आप भी शामिल हो सकते हैं.

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