बुधवार, 25 मई 2016

सोशल मीडिया पर महिलाओं के साथ हो रही अभद्रता पर आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच का बयान

महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन के एक बयान के बाद सोशल मीडिया पर जिस तरह का तूफ़ान मचा हुआ है वह हमारे पितृसत्तात्मक समाज की लाइलाज़ हो चली बीमारी का घिनौना आईना है.यह एक ऐसा समाज है जिसमें सेक्स एक तरफ़ टैबू है तो दूसरी तरफ़ बलात्कार धीरे-धीरे अपवाद से नियम सी बनती जा रही कार्यवाही. जहाँ एक तरफ़ लोग यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते कहते नहीं अघाते वहीँ दूसरी तरफ़ माँ-बहन की गालियाँ भाषा का अभिन्न हिस्सा हैं. दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों के बीच महिला अधिकारों की बात करने वाली, साम्प्रदायिकता का विरोध करने वाली और आधुनिक जीवन मूल्यों का समर्थन करने वाली महिलाओं के लिए यही गालियाँ हैं और बलात्कार की धमकी. चाहे वह कांग्रेसी प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी हों या फिर वाम कार्यकर्ता कविता कृष्णन, सोशल मीडिया पर उन्हें यह सब सुनना पडा है, बार-बार सुनना पड़ा है. सबसे पहले हम अपने मंच की ओर से इन बहादुर महिलाओं और ऐसी तमाम दूसरी महिलाओं को सलाम पेश करते हैं और उनके संघर्ष में बिरादराना भागीदारी का अहद करते हैं.

फ्री सेक्स को लेकर कविता का बयान एकदम स्पष्ट था. उनकी माँ ने जिस बहादुरी से उस पर आई एक घटिया टिप्पणी का जवाब दिया, वह स्तुत्य है और महिला अधिकारों के संघर्ष की मज़बूत नींव की तरफ इशारा करता है जो चंद बददिमाग, बीमार और कुंठित लोगों के हमलों से झुकाने वाला नहीं. वहीँ इस पर ख़ुद को पत्रकार कहने वाले सुमंत भट्टाचार्य जैसे व्यक्ति का बयान उस कुत्सित पुरुषवादी सोच का परिचायक है जो सीधे मनु स्मृति से संचालित होता है. उस सोच का जो स्त्री को देह से इतर नहीं देखता, उस सोच का जो देवी और वैश्या की बाइनरी गढ़ता है. हम माननीय न्यायालय पर पूरा भरोसा करते हैं और हमें यक़ीन है कि कविता द्वारा दर्ज किये गए मुक़दमे के तहत इस व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलेगी.

मुक्त स्त्री हमेशा से परम्परावादियों की आँखों में रेत की तरह चुभती है. वे इंद्र की पूजा करते हैं और अहिल्या को पत्थर बना देते हैं. उन्हें यह समझ नहीं आयेगा कि बलात्कारी इंद्र का छल से किया सेक्स किस तरह अन-फ्री सेक्स था. किस तरह राजाओं के हरम में क़ैद महिलाओं के साथ हुआ सेक्स 'अन-फ्री' सेक्स था. किस तरह धर्म के नाम पर हिन्दुस्तान से अरब तक में हुए बेमेल विवाहों के फलस्वरूप हुआ सेक्स 'अन फ्री' सेक्स था/है. स्त्री की योनि और कोख के नियंत्रण के लिए पितृसत्ता ने उसके साथ जो भयावह अत्याचार किये हैं, स्त्री मुक्ति आन्दोलन उसे हमेशा हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए वचनबद्ध है और हम एक वामपंथी के रूप में उसके इस संघर्ष में हमेशा साथ हैं, सहभागी हैं, कॉमरेड इन आर्म्स हैं. हम मानते हैं कि अपने लिए पार्टनर चुनने का अधिकार पुरुष ही नहीं स्त्री का भी मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार है. पूँजीवादी बाज़ार की अराजकता और उसकी कोख से पैदा हुआ सेक्स ट्रेड, पोर्न जिसका ज़रूरी हिस्सा है, फ्री सेक्स नहीं केवल सेक्स ट्रेड है, जहां देह बिकने और ख़रीदे जाने वाली कमोडिटी में तब्दील कर दी जाती है. मुक्त प्रेम केवल एक मुक्त समाज में संभव है, उसे समझने और उसका सम्मान करने के लिए सबसे मूलभूत ज़रुरत है - लोकतांत्रिक विचार. जहाँ विवाह दो व्यक्तियों के प्रेम और सहकार से सहजीवन आरम्भ करने की जगह दो परिवारों के धार्मिक-जातीय-आर्थिक संस्कारों के तहत किये गए अनुबंध हों और अपने होने के साथ हर हाल में जीवन भर चलते जाने के नियम से बंधे हों, वहां पुरुष और स्त्री के बीच बराबरी के सम्बन्ध असंभव हैं. इसलिए बराबरी की यह लड़ाई आज सभी धर्मों और धार्मिक संस्थाओं, मध्यकालीन नियमावलियों, पितृसत्तात्मक परम्पराओं और आर्थिक गैर बराबरी की लड़ाई है.

आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच इस लड़ाई में भागीदार सभी संगठनों, फ़ोरमों और व्यक्तियों की आवाज़ में अपनी आवाज़ शामिल करता है.  

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