मंगलवार, 8 मार्च 2011


सामंतशाही से उबरने का समय 

बीते महीने उत्तर प्रदेश् में मायावती ने जगह-जगह का दौरा किया जिसके चलते पूरे सूबे में खासी गहमा-गहमी रही। उनका काफिला जहां-जहां से गुजरा, वहां वहां पूरे दिन के लिए आपातकाल जैसी स्थितियां देखने को मिलीं। पूरा यातायात बंद कर दिया गया।
उनके दौरे के चलते शहर का ठप होना क्यों जरूरी है? मायावती को किससे डर है? जब वे शहर में आयें तो बाकी जनता अपने घरों से बाहर क्यों न निकले?
नेताओं के काफिलों की वजह से कई लोगों की जानें पहले भी जा चुकी हैं। दूसरे लोगों की तरह मायावती ने इस पर उदासीन रूख अपनाया और आगे से प्रशासन काफिले के दौरान किसी मरते हुए व्यक्ति को अस्पताल जाने से न रोके, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा।
बुलंदशहर में दलित-मसीहा मायावती के जिंदाबाद के नारे के पीछे एक दलित महिला की मौत हो गयी। क्यांकि वह काफिले के कारण अस्पताल नहीं जा सकती। इस पर कार्रवाई करने की जगह इस खबर को ही दबाया गया।
यह किसकी सवारी थी? एक चुने हुए जनप्रतिनिधि की कि किसी मध्यकालीन राजकुमारी की, जिसके काफिले के बीच कोई प्राणों की भीख भी नहीं मांग सकता?
मिर्जापुर के एक अस्पताल में मायावती के दौरे के दौरान एक मरीज की पानी के लिए आवाज लगाते हुए मौत हो गयी। सभी डाक्टर बहन मायावती के आवभगत में लगे हुए थे।
इसके अलावा मायावती जहां-जहां गयीं, वहां-वहां कुछ न कुछ अधिकारी या तो हटाये गये, या फिर उनका निलंबन किया गया। हालांकि, मायावती ने अपने पांच सालों के कार्यकाल में कभी इस बात का जिक्र नहीं किया गया कि अधिकारियों पर नेताओं की ओर से अनुचित दबाव नहीं डाले जायें। उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जहां के विधायक व सांसद स्कूलों में बंटने वाले भोजन से लेकर गरीबों में बंटने वाले अनाज तक में हिस्सा मांगते हैं।
दलित नेता की अगुआई में यदि तानाशाही-ठाकुरशाही अथवा सामंतशाही बरकरार है, जिसे सरकार मंत्री पद आदि देकर संरक्षण भी दे रही है, तो जनतंत्र का क्या होगा? ब्राहमण और ठाकुरों के अनुचित वर्चस्व का क्या बिगड़ेगा? और पहले से अब की स्थिति में अंतर क्या आया? कांगे्रस और बीजेपी से मायावती की बसपा किन अर्थों में अलग है?
पिछले दो तीन दिनों से सपा की सरकार विरोधी रैली और विपक्ष पर मायावती का डंडा काफी चर्चा में है। सपा का आंदोलन एक राजनीतिक अराजकता के सिवा और कुछ नहीं हो सकता। इससे पहले के सपाई कार्यकाल को हम अभी कहा भूले हैं। कोई औसत आदमी भी यही कहेगा कि बसपा का विकल्प सपा तो कभी नहीं हो सकती। क्योंकि उसके समाजवादी आदर्श एक परिवार के सदस्यों के हितों के आसपास ही सिमट गये हैं जिनकी रक्षा सुरक्षा के लिए अपराधियों तक का सहारा लेने में उसे कोई हिचक नहीं है।
पिछले कई नेताओं द्वारा बेखौफ बलात्कार की घटनाएं प्रकाश में आयीं और उन्हें जैसे तैसे ढांक मूंद कर रफा दफा कर दिया गया।
दिन प्रतिदिन की घटनाओं से क्या आपको लगता है कि उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र जैसी कोई चीज है?
उत्तर प्रदेश के उत्थान के लिए सूबे की जनता को अभी कितने बरस इंतजार करना होगा? और इंतजार किसके बूते? क्या अब उसके खुद उठ खड़े होने का समय नहीं आ गया है?

1 टिप्पणी:

तरुण भारतीय ने कहा…

भाई साहब अब हालत सब जगह एक जैसे ही बन चुके है ..इन सामंत शाहों को करारा जबाब जनता को ही देना पड़ेगा ...
आपका प्रयास बहुत अछा है

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...