बुधवार, 23 सितंबर 2020

क्या गहरे अंधेरे में चला गया है दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र?

शाहीन बाग की दादी ने टाइम मैगजीन में जगह बनाई है. वे दुनिया के सौ प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल हुई हैं. जनता के ताकत की यही सुंदरता है कि वह हारकर भी जीत जाती है. दादी जिस कानून के खिलाफ धरने पर बैठी थीं, वह अभी बना हुआ है, लेकिन दुनिया यह जान गई है कि भारत लोकतंत्र के रास्ते पर जिस गति से आगे बढ़ा था, उसी गति से पीछे जा रहा है.

शाहीन बाग की प्रदर्शनकारी बिल्कीस बानो

जब देश में प्रचारित किया जा रहा था कि शाहीन बाग में बैठे लोग देश के खिलाफ षडयंत्र कर रहे हैं, तब बाकी दुनिया भी हमारी तरफ देख रही थी. एक काले कानून के विरोध का अंजाम कुछ न हुआ हो, लेकिन जिस बात से भारतीय जनता का एक वर्ग डरा हुआ है, दुनिया भी उसे वैसे ही देख रही है.

टाइम मैगजीन ने लिखा है, "लोकतंत्र के लिए मूल बात केवल स्वतंत्र चुनाव नहीं है. चुनाव केवल यही बताते हैं कि किसे सबसे ज़्यादा वोट मिले. लेकिन इससे ज़्यादा महत्व उन लोगों के अधिकारों का है, जिन्होंने विजेता के लिए वोट नहीं किया. भारत पिछले सात दशकों से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना हुआ है. यहां की 1.3 अरब की आबादी में ईसाई, मुसलमान, सिख, बौद्ध, जैन और दूसरे धार्मिक संप्रदायों के लोग रहते हैं. ये सब भारत में रहते हैं, जिसे दलाई लामा समरसता और स्थिरता का एक उदाहरण बताकर सराहना करते हैं."

पत्रिका ने लिखा है, "नरेंद्र मोदी ने इस सबको संदेह के घेरे में ला दिया है. हालांकि, भारत में अभी तक के लगभग सारे प्रधानमंत्री 80% हिंदू आबादी से आए हैं, लेकिन मोदी अकेले हैं जिन्होंने ऐसे सरकार चलाई जैसे उन्हें किसी और की परवाह ही नहीं. उनकी हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने ना केवल कुलीनता को ख़ारिज किया बल्कि बहुलवाद को भी नकारा, ख़ासतौर पर मुसलमानों को निशाना बनाकर. महामारी उसके लिए असंतोष को दबाने का साधन बन गया. और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र और गहरे अंधेरे में चला गया है."

कभी दुनिया इस बात के लिए भारत की तारीफ करती थी कि एक देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ और दुनिया का सबसे सफल लोकतंत्र बना. आपातकाल और उसके बाद तक कई बार दार्शनिक लोग कहते रहे कि 'भारत में इतनी विविधता है कि ये एक देश के रूप में बना नहीं रह सकता, ये ढह जाएगा'. लेकिन आजादी के पहले से ही नेहरू कह रहे थे कि भारत की विविधता ही भारत की खूबी है और भारत ने इसे सच साबित करके दिखाया.

आज भारत दुनिया भर में बदनामी झेल रहा है. कभी हमारे प्रधानमंत्री को 'डिवाइडर इन चीफ' लिखा जाता है, कभी लिखा जाता है कि "दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र और गहरे अंधेरे में चला गया है." धर्म के आधार पर नागरिकता देने का कानून पास करने वाले देश की तारीफ भी कौन करेगा?

हम दशकों तक धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान की आलोचना करते रहे. हम निष्कर्ष निकालते रहे कि धर्म किसी राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता. जो पाकिस्तान धर्म के नाम पर बना था, वह 25 साल बाद भाषा के आधार पर टूट गया था. लेकिन फिर आरएसएस की सांप्रदायिकत नीतियां कानून तय करने लगीं. विरोध प्रदर्शनों में दर्जनों लोगों के जान गंवाने के बावजूद सरकार पीछे नहीं हटी और सीएए पास किया गया जो धर्म के आधार पर नागरिकता तय करने का कानून है. 

जिस बुनियाद पर पाकिस्तान एक असफल देश बना हुआ है, आज 75 साल बाद उसी बुनियाद हम लोकतंत्र महल नहीं बना सकते. ये न सिर्फ मौजूदा भारतीय लोकतंत्र को नष्ट करेगा, बल्कि भारत को 75 साल पीछे पहुंचा देगा. सरकार को इस कानून पर आगे नहीं बढ़ना चाहिए.

1 टिप्पणी:

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

जी हाँ, अब भारत के नीति-नियंता उसी मार्ग पर चल रहे हैं जिस पर चलकर पाकिस्तान बना और बदनाम हो गया।

क्या मजदूरों और किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं?

एक तरफ करोड़ों की संख्या में नौकरियां चली गई हैं और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है. दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से किसानों और मजदूरों पर एक साथ ...