ऐसा कुछ नहीं घटा मेरे सामने
कि कोई महिला प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़कर पूछे-
आज़ादी से क्या मिला?
और प्रधानमंत्री मुस्कराकर कहे-
प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़ने की आज़ादी
ऐसा भी नहीं हुआ कि भगत सिंह से प्रेरित बच्चों ने
'दुर्गा' बन चुकीं प्रधानमंत्री को
न घुसने दिया हो अपने प्रांगण में
और उन्हें देशद्रोही भी नहीं कहा गया हो
हमारे समय में प्रधानमंत्री शोहदों का 'फॉलोवर' है
हत्यारों को नेताओं का संरक्षण है
एक विचारधारा है मजहबी उन्माद
इंसानों से घृणा को कहते हैं राष्ट्रवाद
विकास एक ब्लैक होल है जिसमें
सवा अरब इंसानों को कुदाया जा रहा है
नये भारत के सपने की खोह जाती है
एक मंदिर के प्रांगण में
जिसे उन्माद का सबसे पैना हथियार बना लिया गया है
क़ानून ऐसी हंसिया है जिससे
ताक़तवर चाहे दातून छीले
चाहे तो काट ले किसान की गर्दन
क्या कल यही दर्ज होगा हमारे समय के बारे में?
तवारीख़ में कैसे दिखेंगे हम
बर्बादी की पहली सीढ़ी के बारे में
क्या दर्ज होगा किताबों में
कोई बच्चा मुझसे पूछेगा-
हिंदुस्तान में लिंचिंग कब शुरू हुई?
गाय के लिए पहला आदमी कौन मारा गया सरकारी निगहबानी में?
या फिर
हिंदुस्तान में पहली बार मुर्दे पर मुकदमा कब दर्ज हुआ?
तब क्या कहेगी मेरी लरजती बूढ़ी ज़बान
क्या मैं अपनी आत्मा में एक कुटिल मुस्कान दबाकर
नेहरू का नाम बताऊंगा?
अगर वह पूछ ले-
यह नेहरू सौ साल बाद भी
हर काम का ज़िम्मेदार कैसे हुआ
तो क्या तवारीख़ 1955 में पैदा करेगी कोई काल्पनिक अख़लाक़
जिसे पाकिस्तानियों ने पीटकर मारा!
तो क्या जैसे प्रधानसेवक ने तक्षशिला को बिहार में ला पटका,
वैसे दादरी लाहौर में बताया जाया जाएगा,
या सबकुछ कहा जायेगा वैसे ही
जैसे घट रहा है!
एक बर्बर देश अचानक पैदा नहीं होता
वह धीरे धीरे बनता है लोगों के दिमाग में
फिर ज़मीन का वह टुकड़ा
होता जाता है ख़ौफ़नाक
जहां वे दिमाग चलते फिरते हैं
पहली बार ही कोई मंत्री पहनाता है हत्यारों को फूलों की माला
पहली ही बार कोई नेता कहता है
किसी बर्बर को भगत सिंह
अखबार कहते हैं यह तो फ्रिंज एलिमेंट हैं
और फ्रिंज बनाते जाते हैं मज़बूत मुख्यधारा
कितना अच्छा होता
कि मैं 1905 में पैदा होता
जब भगत सिंह को रही होती फांसी
उसी दिन मेरे गांव में
गोरों के नमक में सीझा कोई भूरा सिपाही
मुझे भी गोली मार देता
इंसानों के लिए कुर्बानी के दौर में
अच्छी होती है एक गुमनाम मौत
कम से कम यह न देखते हम
कि भगत सिंह और बिस्मिल के देश में पीट पीट कर मार दिया जाता है अखलाक़ों को
फिर इसके बाद सरकार किसी निर्दोष के हत्यारों को
भगत सिंह का वारिस कहती हैं!
मां को लिखे पत्र में
भगत सिंह का भय सच निकला
भूरा साहेब गोरे से ज़्यादा क्रूर निकला।
(15 जुलाई, 2018)
कि कोई महिला प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़कर पूछे-
आज़ादी से क्या मिला?
और प्रधानमंत्री मुस्कराकर कहे-
प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़ने की आज़ादी
ऐसा भी नहीं हुआ कि भगत सिंह से प्रेरित बच्चों ने
'दुर्गा' बन चुकीं प्रधानमंत्री को
न घुसने दिया हो अपने प्रांगण में
और उन्हें देशद्रोही भी नहीं कहा गया हो
हमारे समय में प्रधानमंत्री शोहदों का 'फॉलोवर' है
हत्यारों को नेताओं का संरक्षण है
एक विचारधारा है मजहबी उन्माद
इंसानों से घृणा को कहते हैं राष्ट्रवाद
विकास एक ब्लैक होल है जिसमें
सवा अरब इंसानों को कुदाया जा रहा है
नये भारत के सपने की खोह जाती है
एक मंदिर के प्रांगण में
जिसे उन्माद का सबसे पैना हथियार बना लिया गया है
क़ानून ऐसी हंसिया है जिससे
ताक़तवर चाहे दातून छीले
चाहे तो काट ले किसान की गर्दन
क्या कल यही दर्ज होगा हमारे समय के बारे में?
तवारीख़ में कैसे दिखेंगे हम
बर्बादी की पहली सीढ़ी के बारे में
क्या दर्ज होगा किताबों में
कोई बच्चा मुझसे पूछेगा-
हिंदुस्तान में लिंचिंग कब शुरू हुई?
गाय के लिए पहला आदमी कौन मारा गया सरकारी निगहबानी में?
या फिर
हिंदुस्तान में पहली बार मुर्दे पर मुकदमा कब दर्ज हुआ?
तब क्या कहेगी मेरी लरजती बूढ़ी ज़बान
क्या मैं अपनी आत्मा में एक कुटिल मुस्कान दबाकर
नेहरू का नाम बताऊंगा?
अगर वह पूछ ले-
यह नेहरू सौ साल बाद भी
हर काम का ज़िम्मेदार कैसे हुआ
तो क्या तवारीख़ 1955 में पैदा करेगी कोई काल्पनिक अख़लाक़
जिसे पाकिस्तानियों ने पीटकर मारा!
तो क्या जैसे प्रधानसेवक ने तक्षशिला को बिहार में ला पटका,
वैसे दादरी लाहौर में बताया जाया जाएगा,
या सबकुछ कहा जायेगा वैसे ही
जैसे घट रहा है!
एक बर्बर देश अचानक पैदा नहीं होता
वह धीरे धीरे बनता है लोगों के दिमाग में
फिर ज़मीन का वह टुकड़ा
होता जाता है ख़ौफ़नाक
जहां वे दिमाग चलते फिरते हैं
पहली बार ही कोई मंत्री पहनाता है हत्यारों को फूलों की माला
पहली ही बार कोई नेता कहता है
किसी बर्बर को भगत सिंह
अखबार कहते हैं यह तो फ्रिंज एलिमेंट हैं
और फ्रिंज बनाते जाते हैं मज़बूत मुख्यधारा
कितना अच्छा होता
कि मैं 1905 में पैदा होता
जब भगत सिंह को रही होती फांसी
उसी दिन मेरे गांव में
गोरों के नमक में सीझा कोई भूरा सिपाही
मुझे भी गोली मार देता
इंसानों के लिए कुर्बानी के दौर में
अच्छी होती है एक गुमनाम मौत
कम से कम यह न देखते हम
कि भगत सिंह और बिस्मिल के देश में पीट पीट कर मार दिया जाता है अखलाक़ों को
फिर इसके बाद सरकार किसी निर्दोष के हत्यारों को
भगत सिंह का वारिस कहती हैं!
मां को लिखे पत्र में
भगत सिंह का भय सच निकला
भूरा साहेब गोरे से ज़्यादा क्रूर निकला।
(15 जुलाई, 2018)
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