किसी
नेता पर गंभीर किस्म के घोटाले में लिप्त होने का आरोप लगने से पहले ही उसे क्लीन
चिट कैसे दी जा सकती है? लेकिन भारतीय लोकतंत्र में यह संसदीय रवायत है कि किसी पर
आरोप लगने के साथ ही पार्टी और सरकारें उसे क्लीन चिट दे देती हैं. यह घोटाले से
निपटने का कांग्रेसी तरीका है. इसी तर्ज पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डीडीसीए मामले में अरुण जेटली पर लगे सभी आरोपों को
बेबुनियाद बता रहे हैं. मोदी ने संसदीय पार्टी मीटिंग में कहा, 'जेटली पाक साफ
हैं. जिस तरह हवाला घोटाले में लालकृष्ण आडवाणी बेदाग साबित हुए, वैसे ही जेटली भी
बेदाग होकर बाहर निकलेंगे.' अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष हैं. वे अपनी पार्टी लाइन
की मजबूरी के चलते कदाचार में शामिल लोगों का भी हर तरह से बचाव करेंगे, लेकिन
प्रधानमंत्री मोदी अपनी सामूहिक जवाबदेही को ताक पर रखकर बिना किसी जांच पड़ताल के
ही जेटली को क्लीन चिट कैसे दे रहे हैं?
भाजपा
सांसद और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद करीब आठ वर्षों से डीडीसीए में व्याप्त
भ्रष्टाचार पर आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन उनकी नहीं सुनी गई. अब दिल्ली सचिवालय
में छापे के बाद जब आम आदमी पार्टी ने भी इस घोटाले को उछाला तो यह मसला हंगामाखेज
हो गया. अंतर इतना रहा कि कीर्ति आजाद ने पार्टी लाइन को दरकिनार कर पहले की ही
तरह अपनी बात मजबूती से रखी. अब भाजपा कह रही है कि वे कांग्रेस से मिल गए हैं.
जिस आरोप के समर्थन में तमाम तथ्य और दस्तावेज मौजूद हैं, सरकार उसकी जांच कराने
से क्यों कतरा रही है?
कीर्ति
आजाद के लगाए आरोप गंभीर हैं और उनकी निष्पक्ष तरीके से जांच होनी चाहिए. आरोपों
के कुछ बिंदु ऐसे हैं जो गंभीर हैं:
डीडीसीए
की ओर से 14 ऐसी कंपनियों को लाखों रुपये भुगतान किए गए, जिनके पते फर्जी थे और
उनके बारे में जानकारियां गलत या अधूरी थीं.
फिरोजशाह
कोटला स्टेडियम के पुनर्निर्माण में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं हुईं.
निर्माण
कंपनियों को एक से ज़्यादा बार भुगतान हुए. एक ही पते और एक ही फोन नंबर वाली कई
कंपनियां थीं, जिनसे डीडीसीए के अधिकारियों के निजी संबंध भी जाहिर हुए.
इन
कंपनियों के पास पैन कार्ड जैसी बुनियादी चीजें तक नहीं थीं.
विकीलीक्स
और सन स्टार अख़बार ने दावा किया था कि डीडीसीए ने लैपटॉप और प्रिंटर किराये पर
लिए थे. एक लैपटॉप का प्रतिदिन किराया 16000 रुपए और एक प्रिंटर का किराया 3000
रुपए प्रतिदिन भुगतान किया गया.
कीर्ति
आजाद का आरोप है कि उन्होंने लगातार गड़बड़ियों की जानकारी तत्कालीन अध्यक्ष रहे
अरुण जेटली को दी, पर उन्होंने इस पर गौर नहीं किया.
कीर्ति
आज़ाद ने कई बार फ़िरोज़शाह कोटला के बाहर धरना दिया. इस मामले में बिशन सिंह
बेदी, मदन लाल, मनिंदर सिंह और दूसरे खिलाड़ी भी उनके साथ रहे. फिर भी इस बार उचित
कार्यवाही क्यों नहीं हुई?
कीर्ति
आजाद का इलजाम है कि खिलाड़ियों के चयन में पैसों का लेनदेन किया जाता है.
सवाल
उठते हैं कि क्या जेटली डीडीसीए के रोज़मर्रा के कामकाज से संबंधित थे? क्या
उन्होंने कथित भ्रष्टाचार करने वालों का बचाव किया?
कीर्ति
आजाद ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो वीडियो जारी किया उसमें जेटली बोलते सुने जा
सकते हैं कि 'डीडीसीए का अध्यक्ष होने के नाते ये मेरा दायित्व है कि जिन लोगों पर
आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं मैं उनका बचाव करूं.'
आम
तौर पर किसी घोटाले में लिप्त आरोपी कभी भी अपना अपराध कबूल नहीं करते. वे अंत समय
तक अपने को पाक-साफ बताते रहते हैं. जिस तरह जेटली वीडियो में कह रहे हैं कि मेरा
दायित्व है कि जिन लोगों पर आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं मैं उनका बचाव करूं,
प्रधानमंत्री मोदी भी वही कर रहे हैं. उनका दायित्व है कि वे अपने ताकतवर मंत्री
का बचाव करें. ऐसा करके केंद्र सरकार यह संदेश दे रही है कि जो ताकतवर है, उसपर
तमाम आरोपों के बाद भी आंच नहीं आ सकती. आरोपों में कितना दम है, यह तो जांच के
बाद ही सामने आ सकता है, लेकिन सवाल यह है कि सत्ता जब भ्रष्टाचार के आरोपी का
बचाव करेगी तो आरोपों की जांच कौन करेगा?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें