बुधवार, 3 जून 2015

अच्छे दिनों की संपूर्ण अडानी कथा

उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनी अडानी ग्लोेबल के खिलाफ 2000 करोड़ की अनियमितता का आरोप है लेकिन जांच एजेंसियों ने जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. खबरों के मुताबिक, भारी घोटाले की आशंका के बावजूद कस्टम और रेवेन्यू अधिकारियों ने अडानी की कंपनी के खिलाफ सबूत जुटाने के बावजूद जांच को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं, क्योंकि शायद वे अडानी और मोदी की करीबी से भयभीत हैं. सच क्या है यह जांच से ही पता चल सकता है. हर घोटाले में जांच से पहले सारे तथ्य अनुमान होते हैं.
जुलाई 2014 में सीबीआई ने अडानी की कंपनी के खिलाफ 2300 करोड़ का फ्रॉड केस दर्ज किया था. इसके बावजूद, नवंबर, 2014 में ही अडानी को 6000 करोड़ का सरकारी कर्ज दिया गया. जिस कंपनी पर सीबीआई केस दर्ज करे, उसे ही सरकार कर्ज दे, यह घोटाला तो नहीं है न? अडानी को लगातार अभयदान क्यों मिल रहा है? फेहरिस्त लंबी है.
छत्तीसगढ़ में अडानी इंटरप्राइजेज राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरकार के साथ ज्वाइंट वेंचर के तहत खनन कर रही है. कोयला घोटाला सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सारे कोल ब्लॉक को अवैध घोषित करते हुए 218 में से 214 रद्द कर दिए थे. ऐसे में राज्य सरकार द्वारा किए गए सारे ज्वाइंट वेंचर और कांट्रैक्ट अवैध माने जाएंगे. लेकिन अडानी की कंपनी ज्वाइंट वेंचर में खनन कर रही है. 2012 में सीएजी की रिपोर्ट थी कि नियमों में फेरबदल के चलते केवल छत्तीसगढ़ को 1549 करोड़ का नुकसान हुआ. यह खनन अबतक चल रहा है तो नुकसान कितना हुआ होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है.
राजा रानी की कहानी की ही तरह मोदी और अडानी की कहानी भी काफी पुरानी है. पूरा देश जानता है कि गौतम अडानी ने लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रचार के लिए फंडिंग की थी. प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए नरेंद्र मोदी अडाणी के हेलीकॉप्टर में सवार होकर गुजरात से दिल्ली आए थे. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही अडाणी साये की तरह उनके साथ फिर रहे हैं.
कुछ महीने पहले तक अडानी के कारोबार का टर्न ओवर 2002 के 76.50 करोड़ डॉलर से बढ़कर फिलहाल 10 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. संयोग से यह दौर नरेंद्र मोदी के सत्ता में लगातार मजबूत होते जाने का है. इस हफ्ते के आंकड़े कहते हैं कि पिछले एक साल में अडानी की संपत्ति में 48 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है.
मोदी ने अडानी से चुनाव में कितनी मदद ली, देश की जनता को यह नहीं मालूम, न ही यह मालूम कि बदले में वे कितना मूल्य चुका रहे हैं. लेकिन इस सच से कौन इनकार करेगा कि यह जिस धन का लेनदेन चल रहा है, वह जनता है. इतनी तेजी से एक व्यक्ति के पास धन इकट्ठा होना पूंजीवाद का लोकतांत्रिक मायाजाल है जो घोटालों और लूट को कानूनों की आड़ में वैध ठहराता है.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अडानी ग्रुप को 6000 करोड़ रुपए का लोन देना मंजूर किया. ऑस्ट्रेलिया के वेस्टरर्न क्वींसलैंड स्थित क्लेेरमोंट के करीब कारमाइकल में अडाणी माइनिंग प्रोजेक्टर है, जिसके लिए यह पैसा दिया गया. अडाणी के पास पहले से करीब 65 हजार करोड़ रुपए की देनदारी थी. उधर, बैंकों की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि कंपनियों को दिया गया कर्ज वसूलना मुश्किल हो रहा है. एसबीआई ने इस ऋण समझौते को लेकर किसी प्रकार का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है. अडाणी और एसबीआई के बीच यह समझौता बेहद गोपनीय तरीके से किया गया, जबकि कई बड़े वैश्विक बैंकों ने पर्यावरण कारणों के मद्देनजर इस उद्यम को लेकर सवाल उठाए थे, साथ ही क्रेडिट लिमिट बढ़ाने से भी इनकार कर दिया था. एसबीआई ने अडानी को ऐसे उद्यम के लिए ऋण देने का निर्णय लिया है, जिसका भविष्य क्या होगा, किसी को नहीं मालूम. देश की जनता का पैसा एक ऐसे उद्योगपति को राहत देने के लिए इस्तेमाल किया किया जा रहा है जिसने सत्ताधारी पार्टी को चुनावों में मदद की.
2002 में दंगों के बाद व्यापार जगत की संस्था कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज़ (सीआईआई) से जुड़े उद्योगपतियों ने हालात पर काबू पाने में ढिलाई बरतने के लिए मोदी की आलोचना की थी. तब अडाणी ने उद्योगपतियों को मोदी के पक्ष में करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने सीआईआई के समांतर एक और संस्था खड़ी करने की चेतावनी भी दी थी.
इसके बाद जैसे जैसे मोदी मजबूत हुए अडानी भी मजबूत होते गए. बाद में नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार पर आरोप लगा था कि उन्होंने अडानी समूह को भारत के सबसे बड़े बंदरगाह मुंदड़ा के लिए बड़े पैमाने पर कौड़ियों के भाव ज़मीन दी. मई, 2014 में सरकारी अधिकारियों ने बिजली बनाने के काम में आने वाले उपकरणों के आयात की क़ीमत को कथित तौर पर क़रीब एक अरब डॉलर बढ़ाकर दिखाने के लिए अडानी की कंपनी को नोटिस जारी किया था. फरवरी, 2010 में अडानी ग्रुप के प्रंबंध निदेशक और गौतम अडानी के भाई राजेश अडानी को कथित तौर पर कस्टम ड्यूटी चोरी के मामले में गिरफ़्तार भी किया गया था. मोदी की गुजरात सरकार पर अडानी को फायदा पहुंचाने संबंधी कई आरोप लगे, लेकिन न किसी की जांच हुई न ही वे दोनों ही प्रभावित हुए.
जुलाई 2014 में सीबीआई ने अडानी की कंपनी के खिलाफ 2300 करोड़ का फ्रॉड केस दर्ज किया था. इसके बावजूद, नवंबर, 2014 में ही अडानी को 6000 करोड़ का सरकारी कर्ज दिया गया. जिस कंपनी पर सीबीआई केस के साथ इतने सारे आरोप लगे, वह केंद्र की मोदी सरकार की सबसे चहेती कंपनी है.
यदि अध्ययन हो तो मोदी—अडानी की कहानी पूंजीवाद के इतिहास में क्रोनी कैपिटलिज्म की सबसे धांसू कहानी साबित होगी. अडानी पर आरोप कैसे भी लगें, वे प्रभावित नहीं होते. उन पर बहुत आरोप लगे लेकिन वे लगातार मजबूत होते गए. अब जब एक साल में ही उनकी संपत्ति 48 प्रतिशत बढ़ी है, जब वे देश के प्रधानमंत्री के सबसे करीबी हैं, तब उनका कुछ बिगड़ेगा, इसमें संदेह ही है. अडानी को यह अभयदान क्यों मिल रहा है? क्या यह मोदी जी को चुनाव में प्लेन मुहैया कराने व अंधाधुंध पैसा देने का ईनाम है? हालांकि, मोदी जी कह रहे हैं कि एक साल में कोई घोटाला नहीं हुआ. तो यह अडानी कथा क्या कहलाएगी? क्या यह 'भ्रष्टाचार मुक्त भ्रष्टाचार' है?
(नोट: इन सारी सूचनाओं का कोई गुप्त स्रोत नहीं है. सब सूचनाएं फुटकर तौर पर मीडिया में प्रसारित होती रही हैं.)

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