सोमवार, 27 मई 2013

हर हत्या एक संभावना है

धरती को कोई झकझोरता है जोर से
तो अक्सर आसमान दरक जाता है
और एक ढहती हुई छत आ गिरती है सुबह के सीने पर
उसी सुबह कोई युवती बिलखती हुई देखती है
अपने दो चार सपनों को पिसते हुए
एक चिड़िया झुंझलाहट में आग लगा देती है
जतन से बनाए गए अपने घोंसले को
बारिश आने या अंडे रखने से ठीक पहले

अभी अभी जागे एक बच्चे की आंख से
काजल बह जाता है
और गहरे हो जाते हैं उसके गाल पर उगे धब्बे
मां सपने देखती है कि शहर सूख गया है
आंचल से कितना भी रगड़ो
कालिख नहीं छूटती

दूधिया जो दूध लाया है
उसका रंग कुछ काला है
सुबह की हवा का मिजाज विषैला है
जंगल में चूहे मारने गए कुछ बच्चों को
खतरा बताकर गोली मार दी गई है
एक बूढ़ा अपंग बाप जूझता अपनी पसलियों से
उन्हें कंधा देना चाहता है
काफी चीख मची है बस्ती में

चौड़ी सड़कों में दबे
बांध के पानी में समा गए
शहर के शोर में बिला गए
तमाम मुर्दे आज इकट्ठा हो गए हैं
उन्होंने अदालत लगा ली है
और इंसाफ पर अड़ गए हैं
हर हत्या एक संभावना हो गई है...।

3 टिप्‍पणियां:

Ritu Saxena ने कहा…

क्या कहूँ इस पर ... शब्द नहीं हैं मेरे पास। दर्द आँखों में उतर आया। बहुत उम्दा, दिल को चीर कर रख दिया इस रचना ने।

Ritu Saxena ने कहा…

क्या कहूँ इस पर ... शब्द नहीं हैं मेरे पास। दर्द आँखों में उतर आया। बहुत उम्दा, दिल को चीर कर रख दिया इस रचना ने।

AKG - अनुज कुमार ने कहा…

कविता एक यूटोपिया का निर्माण करती है, जिसके मूल में संभावना है एक बेहतर कल की, ऐसा कल जिसका गर्त में जाना हम देख पा रहे हैं, कुछ कर नहीं पा रहे, केवल इंतज़ार कर रहें है कि कुछ अच्छा और बेहतर हो. बहुत सही कविता है भाई.

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