गुरुवार, 22 मार्च 2012

पीड़ा! तू क्यों प्रिय हुई मुझे

पीड़ा! तू क्यों प्रिय हुई मुझे 
क्या सुख तुझमे जानू ना  
क्यों फिरूं खोजता, व्याधि, 
सभी की, अपने ही सर ले लूँ 
क्यों ढूँढूं आंसू के कतरे 
जो मिलें कहीं भी, पी लूँ 
यह पीड़ा ही अपनी संगी 
यह ही अब अपनी साथी है 
पीड़ा का चरम, अभी दुनिया का  
मिल पाना मुझको बाकी है 
आनंद है कैसा पीड़ा में 
पीड़ा! तू क्यों प्रिय हुई मुझे...

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