मंगलवार, 27 सितंबर 2011

मुक्ति का सपना



रोज़ बदलता है दर्द का चेहरा 
रोज़ बदल जाते हैं रस्ते 
कायनात भी 
रोज़ बदलती है रंग 
चाँद बदल लेता है अपना जिस्म 
और मैं 
रोज़ मैं जनम लेता हूँ 
अपनी सार्थकता के लिए 
नए नए रूपों में 

बदलता है पल-पल सब कुछ 
नहीं बदलता तो बस 
मुक्ति का सपना 



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